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बहु, एक टुकड़ा आलू का पराँठा खिला दो

जिन पोते-पोतियों को इतना लाड लड़ाया, वो भी अम्मा से मिलने नहीं आते। और जिससे हमेशा गुस्सा रहे, आज वही बुरे वक्त में उनके साथ खड़े हुए हैं।

जिन पोते-पोतियों को इतना लाड लड़ाया, वो भी अम्मा से मिलने नहीं आते। और जिससे हमेशा गुस्सा रहे, आज वही बुरे वक्त में उनके साथ खड़े हुए हैं।

“अरे! मुन्ना देख तो, रसोई में से आज तो बहुत ही अच्छी खुशबू आ रही है। कहीं बड़की बहू आलू के पराठे तो नहीं बना रही है।”

“मैं नहीं जाऊंगा अम्मा। कल ही ताई जी ने बहुत डांट लगाई थी जब मैं ताऊ जी के कहने पर चाय का झूठा बर्तन रखने किचन में गया था। उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं है कि कोई उनकी रसोई में आए।”

“अरे, तू डरता क्यों है? जाकर कह देना कि एक टुकड़ा आलू का पराठा अम्मा को भी दे दो। बहुत इच्छा हो रही है आलू का पराठा खाने की। और वैसे भी मैं सास हूँ तेरी ताई जी की।”

“कुछ भी कहो अम्मा। मैं तो नहीं जाऊंगा। आपको पराठे खाने की इच्छा हो रही है तो दोपहर को माँ जब घर पर आएगी, तब आपके लिए बनवा दूंगा।”

“अरे, इच्छा तो अभी हो रही है और तू दोपहर को बनवाएगा। अपनी दादी की बिल्कुल बात नहीं मानता।”

इतना कहकर अम्मा उदास होकर दूसरी तरफ मुंह करके लेट गई। अम्मा को उदास देखकर दस वर्षीय वीर का भी मन नहीं लगा। आखिर हिम्मत करके अपनी ताई जी की रसोई की तरफ चल दिया। उसे दरवाजे पर खड़ा देखकर उसकी ताई जी ने उसे घूर कर देखा, “क्यों आया है यहाँ पर? क्या चाहिए तुझे?”

“ताई..जी…वो..”

अपनी ताई जी को यूँ घूरता देखकर एक बार तो वीर की जुबान भी हलक में ही अटक गई। पर अम्मा का उदास चेहरा ध्यान में आते ही फिर हिम्मत जुटा करके बोला, “ताई जी, वो, अम्मा को आलू के पराठे खाने की बहुत इच्छा हो रही थी। अगर आपने बनाया है तो एक टुकड़ा दे दो। वो आलू के पराठे के एक टुकड़े से ही खुश हो जाएगी।”

“कोई आलू के पराठे नहीं बने हैं यहाँ पर। तुझे शर्म नहीं आती कल इतना डाँटा था, फिर भी चला आया मुँह उठाकर। और वो तेरी अम्मा, उनके हाथ पैर कब्र में चले और आलू के पराठे खाने की इच्छा हो रही है। जाकर कह दे कुछ नहीं है मेरे पास। इतनी ही इच्छा हो रही है तो अपनी छोटी बहू से बनवाकर खाओ। चल भाग यहां से।”

वीर चुपचाप अपना सा मुंह लेकर के आ गया। पर बड़ी बहू इतनी जोर से चिल्लाई थी कि अम्मा के कानों में उसके चिल्लाने की आवाज साफ सुनाई दे गई थी। अम्मा की आंखों में आँसू आ गए। अम्मा की आंखों में आँसू देख कर वीर बोला, “अम्मा तू रोती क्यों है? कहा ना दोपहर को माँ जब घर वापस आएगी तो मैं तेरे लिए आलू के पराठे बनवा दूंगा। तू फिकर ना कर।”

अम्मा कुछ बोल ना पाई। बस वीर के सिर पर हाथ रख कर उसे ढेरों आशीर्वाद देने लगी। पर रह रहकर उन्हें अपनी बीती बातें याद आने लगी। यह वही अम्मा है जो कभी वीर और उसकी माँ से बहुत नफरत किया करती थी।

अम्मा के दो बेटे थे अमित और अजीत। पैसे टके के मामले में भी कोई कमी नहीं थी। अमित का विवाह जहाँ मधु के साथ हुआ था, वही अजीत ने अम्मा की मर्जी के खिलाफ जाकर रीना से प्रेम विवाह किया था। बस यही बात अम्मा को खटक गई थी। उन्होंने जहाँ मधु को सिर आंखों पर बिठाया, वही रीना को कभी भी अपनाया नहीं।

मधु के दोनों बच्चों को अम्मा सर आँखों पर बिठाये रखती, वही वीर के सिर पर कभी भी प्यार से हाथ तक नहीं रखा। जब वीर पाँच साल का था, तो एक एक्सीडेंट में अजीत की मृत्यु हो गई। उसके बाद तो अम्मा जी ने रीना को परेशान करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। अम्मा जी और मधु ने मिलकर रीना को नौकरानी ही बना कर रख दिया।

आखिर थक हार कर रीना ने अपने स्वाभिमान के लिए एक स्कूल में नौकरी कर ली। जिस पर भी मधु और अम्मा ने काफी बखेड़ा खड़ा किया था। पर इस बार रीना झुकने को तैयार नहीं हुई तो उसने घर छोड़ दिया।

जब जग हंसाई हुई, तो रीना और वीर को घर वापस तो ले आए, पर घर के पिछले हिस्से में दो कमरे दे दिए रहने के लिए। फिर भी अम्मा और मधु के स्वभाव में कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। आए दिन वो रीना को परेशान करने के कोई ना कोई तरीके जरूर ढूंढती रहती।

पर कहते हैं ना, वक्त की गति न्यारी होती है। आप अपने कर्मों का फल इसी धरती पर हासिल करते हो। एक दिन सीढ़ियों से उतरते समय अम्मा का पैर फिसल गया और वह गिर गई। उसके बाद तो अम्मा आज तक पूरी तरह से खड़ी ना हो पाई। आज भी लाठी टेककर ही चलती है।

दो दिन तो जैसे तैसे मधु ने सेवा चाकरी की, पर दो दिन बाद ही अम्मा जी को रीना के पास यह कहकर छुड़वा दिया कि वह भी इस घर की बहू है। अम्मा के लिए उसके भी कुछ फर्ज हैं। साथ ही थोड़ा बहुत खर्चा देकर अपने फर्ज से इतिश्री कर ली। तबसे अम्मा रीना और वीर के पास ही है।

जिन पोते-पोतियों को इतना लाड लड़ाया, वो भी अम्मा से मिलने नहीं आते। और जिससे हमेशा गुस्सा रहे, आज वही बुरे वक्त में उनके साथ खड़े हुए हैं। आज अम्मा को बहुत पछतावा होता है। लेकिन अब कर भी क्या सकते हैं। बस इतना जरूर है कि आज अपनी छोटी बहू और अपने पोते के लिए दिल से दुआ जरूर निकलती है।

साथ ही साथ एक निर्णय भी कि मरने से पहले पहले कम से कम इस प्रॉपर्टी में तो इनको बराबर का हिस्सा मिल जाए। जो कि अम्मा को पूरा विश्वास है कि उनके मरने के बाद रीना और वीर को नहीं दिया जाएगा।


मूल चित्र: Methi Ke Ladoo Short Film Via Youtube

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