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इस पतझड़ तुमने भी,छोड़ दिया बहुत कुछ। छोड़ दिया, सुनना कि तुम्हें क्या पहनना है और क्या नहीं, कैसे बोलना है, किससे बात करना है, कैसे चलना है?
कभी रूठती, कभी मानतीकभी सपनों की उड़ान भरतीकभी तो अपने दूधिया हंसी सेपूरा घर गुंजायमान करती,तुम! हां! तुम ही तो धुरी हो, अपने घर की।
कभी नज़र दौड़ाई है, अपने घर में कितुम्हारे बिना कितना अधूरा,कितना सूना, कितना बियाबान सालगता है यह घर।
कभी पतझड़ के पेड़ को देखा है,कितना उजाड़ सा लगता है?और फिर जब उसी पेड़ पर,नव पल्लव आने लगते हैं,तो वही पेड़ नव पल्लवों से लदा,मुस्कुरा उठता है।
तो उठो!अब तुम्हारे मुस्कुराने का समय आ गया है,अब दुनिया को बताने का समय आ गया है,कि इस पतझड़ तुमने भी,छोड़ दिया बहुत कुछ।
छोड़ दिया, सुनना कि तुम्हे क्या पहनना है और क्या नहीं,छोड़ दिया सुनना कि तुम्हे सांस कैसे लेनी है,छोड़ दिया सुनना कि तुम्हे कैसे हंसना है,कैसे बोलना है, किससे बात करना है, कैसे चलना है?
कि इस पतझड़ के बाद, तुम, सिर्फ तुम रहोगी,जैसे जीना है, वैसे जियोगी,कि इस पतझड़ के बाद,तुम मुस्कुराओगी।
मूल चित्र: Rahul Dogra via Pexels
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