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बाबा,आप हो तो सब कुछ है,आप नहीं तो कुछ भी नहीं…

सपने में भी बाबा का त्याग याद आ रहा था। कैसे उन्होंने अपनी पेंशन बचाकर मेरे कॉलेज फीस भर मुझे आगे की पढ़ाई कराई थी।

सपने में भी बाबा का त्याग याद आ रहा था। कैसे उन्होंने अपनी पेंशन बचाकर मेरे कॉलेज फीस भर मुझे आगे की पढ़ाई कराई थी।

“वैशाली! देख बाबा तेरे लिए क्या लाए बाज़ार से।”

“बाबा, इतने सारे रंग! ये सब मेरे लिए बाबा? आप कितने अच्छे हैं।” 

“क्या आप भी! वैशू को बिगाड़ रहे। कल को उसको पराए घर जाना है, अभी से सीमित साधनों में रहना सीखना होगा उसे”, पद्मा, वैशाली की माँ ने कहा। 

“तो क्या हुआ पद्मा, जब तक अपने घर है तब तक तो सांस लेने दो‌ उसे। और वैसे भी लोग आएंगे मेरी बेटी के लिए रिश्ता लेने, इतनी काबिल बनाऊंगा उसे मैं”, दिनेश बाबू ने अपनी पत्नी से कहा। 

“वैशाली! वैशाली! बेटा जा डाक्टर साहब बुला रहे”, अतीत से जैसे किसी ने उसे धकेला। 

वेंटिलेटर पर लेटे बाबा का चेहरा एक पलक निहार वैशाली डाक्टर की बोली दवाई लाने चली गई।

“आई! आई! मैं इस स्कूल में जाऊंगी। इतना बड़ा स्कूल आई।” वैशाली उस नन्ही बच्ची को देख अतीत के गलियारों में पहुंच गई। 

“अरे बाबा! ये तो उस स्कूल का फार्म है ना बड़े वाले? मैं कब से जाऊंगी बाबा?” 

“कब से क्या वैशू कल से जाना है, तैयारियां कर ले। अब तो मेरी वैशू पढ़ लिखकर बड़ी वकील बनेगी देखना पद्मा।” 

“मेरी वैशू, मेरी वैशू, क्यों इतना पैसा बहा रहे? कल‌ को दहेज के लिए क्या बचेगा? मेरी तो सुनते नहीं आप। सरकारी स्कूल भी जा सकती है। जितनी चादर उतने पैर फैलाएं तो अच्छा।” 

“मैडम? ओ मैडम? आपकी दवाएं।” वैशाली अपने आंखों के आंसू को छुपाते, सीधे बाबा के कमरे में गई। 

“आप जल्दी से ठीक हो जाओ बाबा। तुम हो तो सबकुछ है, तुम नहीं तो कुछ नहीं।” 

“कैसे पल बीत रहे आपके बिना मैं ही जानती हूं। काश उस दिन मैं चली जाती मार्केट, तो ये सब ना होता आपके साथ। मेरी ताकत आप हो बाबा। नहीं संभालन पा रही आपके बगैर, प्लीज़ जल्दी ठीक हो जाओ।” 

वैशाली के सिर पर हाथ फेरते हुए आई ने उसको थोड़ी देर आराम करने के लिए बोला, तो‌ वो वहीं पर बैठे सो गई। सपने में भी बाबा का त्याग याद आ रहा था। कैसे उन्होंने अपनी पेंशन बचाकर मेरे कॉलेज फीस भर मुझे आगे की पढ़ाई कराई थी। हमेशा एक बेटे की तरह पाला किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी। अपने शजर को ऐसी हालत में देख कौन‌ ना कमज़ोर पड़े।

तभी अचानक वैशाली के सिर पर गर्माहट महसूस हुई। उसकी आंख खुली तो देखा सामने पापा कुछ बोलना चाह रहे थे। शायद उन्हें होश आ चुका था। वैशाली भागकर डाक्टर को बुलाई। रुटीन चेकअप से पता चला अब खतरे से बाहर हैं दिनेश बाबू। सबकी जान में जान आई। 

इधर‌ कुछ दिन बाद वैशाली अपने बाबा का हाथ पकड़ बोली, “अबकी बार तो इतने दिन चुप रहे। फिर कभी ना होने दूंगी बाबा। आपके बिना आपकी वैशाली कुछ नहीं।” 

“अरे! मेरी वकील साहिबा, इतनी जल्दी केस में थक गई? अभी तो समय लंबा है।” ठहाके के साथ वैशाली अपने बाबा के गले लग गई। 

पाठकों! अपने किसी प्रिय का बीमार होना हमें अंदर तक हिला देता है। इसलिए हर पल एक-दूजे के साथ आनंद लें। अपने माता-पिता को आपके लिए किए गए संघर्षों को कभी ना भूलें।


मूल चित्र: Tanishq Via Youtube

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