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बहु, जो भी करना मेरे मरने के बाद करना…

“देख लो बेटा, मुझे तो यह सब पसंद नहीं है। अभी से अपनी मनमर्जी चला रही है। बड़ों का तो कोई लिहाज ही नहीं है।”

“देख लो बेटा, मुझे तो यह सब पसंद नहीं है। अभी से अपनी मनमर्जी चला रही है। बड़ों का तो कोई लिहाज ही नहीं है।”

“देख लो बेटा, मुझे तो यह सब पसंद नहीं है। अभी से अपनी मनमर्जी चला रही है। बड़ों का तो कोई लिहाज ही नहीं है।”

“पर मैंने ही कहा था दिव्या को सूट पहनने के लिए।”

“अच्छा, अब तुम भी इतने बड़े हो गए हो कि अपनी मां की बात काटने लगे हो? जब मैं मर जाऊं उसके बाद अपनी मनमर्जी करना। चुपचाप जाकर अपनी बीवी से कहो कि जाकर साड़ी पहने, तो ही घर के बाहर कदम रखें। समझे?”

“ठीक है माँ।”

मोहन अपनी माँ को कुछ भी ना कह पाया पर अपनी पत्नी को जाकर इतना ज़रूर कह दिया कि सूट की जगह साड़ी पहन ले। अक्सर यही होता था जब भी दिव्या कुछ नया आजमाती है तो सासू माँ कमला जी को हमेशा समस्या ही रहती थी।

दिव्या की शादी मोहन से सात महीने पहले ही हुई थी। नई दुल्हन की तरह दिव्या के भी कई अरमान थे, जो ससुराल में आकर चकनाचूर हो गए।

कमला जी तो बहुत ही ज्यादा टिपिकल सास थी। जिनके अनुसार बहू को हमेशा मर्यादा में रहना चाहिए और ये मर्यादा शायद उनकी खुद की बनाई हुई थी।

एक बहू को सुबह जल्दी सबके उठने के पहले उठना चाहिए और सबके सोने के बाद ही सोना चाहिए। दिन में सोने का तो सवाल ही नहीं उठता। सबके खाना खाने के बाद खाना खाना चाहिए। घर का सारा काम बहू की जिम्मेदारी होती है। यहां तक कि घर में काम करें तो चप्पल भी नहीं पहननी चाहिए।

परिवार के साथ बहू को बैठने का कोई अधिकार नहीं। कहीं बाहर भी जाए तो अकेली ना जाए। और भी बहुत कुछ। घर के लोग भी छुपकर दिव्या की मदद करते थे, लेकिन सामने बोलने की हिम्मत किसी की नहीं थी।

अगर किसी भी एक नियम की अवहेलना हो जाती तो उस दिन कमला जी सब का खाना खाना दुश्वार कर देती। उनका एक ही तकिया कलाम था, “जो भी करना है मेरे मरने के बाद ही करना।” इसलिए बेचारी दिव्या भी बस घर परिवार में सिमट कर रह गई थी।

वक्त यूं ही बीतता गया। दो साल बाद दिव्या की ननद की शादी पक्की हुई, तब भी दिव्या की शॉपिंग कमला जी ने ही की। दिव्या कोई भी सामान अपनी मर्जी का ना ला सकी। दिव्या की बड़ी तमन्ना थी कि एक लहंगा तो वह अपनी मर्जी का ले, पर ऐसा ना हो सका।

जब उसने यह बात मोहन को बताई तो मोहन ने कहा, “जब हम तुम्हारे मम्मी पापा के घर न्योता देने जाएंगे तो तुम अपनी माँ के साथ बाजार जाकर लहंगा खरीद लेना। और यहां आकर कह देना कि तुम्हारी माँ ने विदाई में दिया है। बस इस बात का ध्यान रखना कि माँ को पता ना चले।”

दिव्या ने ऐसा ही किया पर पता नहीं कैसे कमला जी को पता चल गया। और उसके बाद उन्होंने बहुत बखेड़ा खड़ा कर दिया। उन्होंने दिव्या को वह लहंगा ये कहकर पहनने तक नहीं दिया, “मैं मर जाऊं तो मेरी अर्थी पर पहन लेना।”

आखिर मन मार कर दिव्या ने वो लहँगा अपनी ननद को ही गिफ्ट कर दिया।

वक्त यूं ही बितता गया, पर कमला जी के स्वभाव में कोई फर्क नहीं आया। कुछ सालों बाद दिव्या के देवर मदन की भी शादी हो गई और नेहा, दिव्या की देवरानी बनकर घर में आ गई। दिव्या सीधी-सादी थी, वही नेहा तेजतर्रार स्वभाव की थी।

कुछ दिन तो सब ठीक रहा पर नेहा को इतना तो समझ में आ ही गया था कि इस घर में रहना है तो कमला जी के अनुसार रहना पड़ेगा। साथ ही साथ उसे यह भी पता चला कि किस तरह से दिव्या अपना मन मार कर इस घर में रह रही है। उसने कई बार दिव्या को समझाने की कोशिश की थी कि “भाभी आवाज उठाइए” पर दिव्या ने कभी भी हिम्मत नहीं की।

एक दिन मदन और नेहा ने पिक्चर जाने का प्रोग्राम बनाया। उस दिन नेहा सूट पहनकर कमरे के बाहर आई तो उसे देखकर कमला जी के तन बदन में आग लग गई, “बहु यह क्या हरकत है?”

कमला जी के जोर से चिल्लाने की आवाज सुनकर पूरे घर के लोग बाहर आ गए।

“क्या हुआ माँजी?”

“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई सूट पहनकर बाहर आने की। अभी के अभी सूट बदल कर आओ।”

“पर इसमें क्या खराबी है? शरीर तो पूरा ढका हुआ है!”

“मुझे नहीं पता। अभी के अभी सूट बदलकर साड़ी पहन कर आओ। यह जो मन मर्जी करनी है मेरे मरने के बाद करना।”

“मैं नहीं बदलूंगी सूट। आपको चिखना है, चिल्लाना है, जो करना है, करिए।”

कमला जी को नेहा से इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने पास रखी छड़ी उठाई और नेहा की तरफ लपकी, “तेरी इतनी हिम्मत कि मुझसे जुबान लड़ाती है। अभी फोन करती हूं तेरे बाप को। आ करके लेकर जाएगा तुझे। कभी दिव्या ने भी मुझे पलट कर जवाब नहीं दिया। तेरी हिम्मत कैसे हो गई जो मुझे जवाब दिया। जो भी करना है मेरे मरने के बाद करना।”

“कब मर रही हैं आप?” अचानक से दिव्या के यह कहते ही पूरे कमरे में सन्नाटा पसर गया।

“क्या कहा बहु तुमने?”

“यही कि कब मर रही हैं आप? इतने सालों से मैं आपके मरने का इंतजार कर रही हूं पर आप हैं कि मरती ही नहीं। बहुए भी इंसान होती है, उनकी भी कुछ इच्छाएं होती है। लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए हमें आपके मरने का इंतजार क्यों करना पड़ रहा है? आप जैसी औरतें कभी भी अपनी बहुओं की इच्छाओं को समझ नहीं पातीं। मर्यादा के नाम पर झूठे ढकोसलों में आपने हमको बांध कर रख दिया।”

“बहु तुम अपनी सास के लिए ऐसा कैसे कह सकती हो?”

“मैं तो आप ही के मुंह से सुनती आ रही हूं। आप ही कहती है ना जो करना मेरे मरने के बाद करना। आप ही की बोली है जो शायद बहूएँ  आपके मरने का इंतजार कर रही हैं।”

आज दिव्या के मुंह से यह सब सुनकर पूरा परिवार दंग रह गया। वही कमला जी के मुंह से बोल तक ना फूटा।

आखिर दिव्या ने गलत भी क्या कहा। वही तो कहती रहती थी जो करना है मेरे मरने के बाद करना।

मूल चित्र: PCRA via youtube

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