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माँजी, अगर बेटा घर के काम करे तो बेचारा क्यों?

"बेचारा मेरा बेटा, दिन भर बच्चों से परेशान रहता है। बहुत थक जाता है बहू। रात को ज़रा इसके पैरों की मालिश तो कर देना।"

“बेचारा मेरा बेटा, दिन भर बच्चों से परेशान रहता है। बहुत थक जाता है बहू। रात को ज़रा इसके पैरों की मालिश तो कर देना।”

“क्या बताऊँ, दिन भर महारानी ऑफिस में रहती है और बेचारा मेरा बेटा दोनों बच्चों की देखभाल करता है”, सीमा की सास अपनी बहन से बहू की शिकायत करते हुए बोली।

“दीदी क्या करोगी? आजकल की बहुएं काम काज के चक्कर में घर गृहस्थी ही भूल गई हैं!” उषा जी की बहन भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए बोली।

उषा जी के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा परिवार सहित मुंबई में रहता है और छोटा बेटा उनके साथ दिल्ली में ही रहता है। छोटा बेटा एक प्राइवेट फर्म में काम करता था पर एक दिन अचानक उसकी नौकरी चली गई।

सीमा काफ़ी परेशान रहने लगी। वो पति की मदद करना चाहती थी पर बच्चे छोटे थे तो वो मजबूर हो जाती। इसी बीच उसकी सरकारी नौकरी लग गई। सीमा और उसके पति काफ़ी खुश हुए कि अब उनकी  परेशानियां कम हो जाएंगी पर वो भविष्य की चुनौतियों से अनजान थे।

सीमा घर के सारे काम काज करके ऑफिस जाती, दिन का खाना भी बना देती। ऑफिस से आते ही किचन में घुस जाती, बच्चों का होमवर्क कराती।

इतना करने के बाद, फिर भी यही सुनने को मिलता, “बेचारा मेरा बेटा, दिन भर बच्चों से परेशान रहता है। बहुत थक जाता है बहू। रात को ज़रा इसके पैरों की मालिश तो कर देना।”

सीमा फिर भी कुछ न बोलती क्यूंकि वो जानती थी कि बहस करने से कोई फ़ायदा नहीं है।

एक दिन सीमा घर के सारे काम निपटा कर ऑफिस जा रही थी कि उषा जी ने उसे टोका, “सीमा, शाम को जल्दी घर आ जाना। मेरी कुछ सहेलियां बरसों बाद मुझसे मिलने आ रही हैं। रात को खाना खा कर ही जाएंगी।”

“ठीक है माँ, आ जाऊंगी”, यह कह कर सीमा ऑफिस चल दी।

शाम को ऑफिस से आने में सीमा को कुछ देर हो गई। वो भागती दौड़ती घर की तरफ़ लपक रही थी कि उसने उषा जी को कहते हुए सुना, “आजकल की बहुएं, काम करने की आज़ादी दो तो सर पर चढ़ जाती हैं। बच्चों को पति के भरोसे छोड़ कर ऑफिस में गुलछर्रे उड़ाती हैं। बेचारा मेरा बेटा, बहुत बर्दाश्त करता है।”

इतने बात सुन कर सीमा के आँखों से आँसूं बह निकले। वो चुपचाप घर के अंदर चली गई और मेहमानों के लिए खाना तैयार करने लगी।

मेहमानों के जाने के बाद सीमा अपनी सास के कमरे में गई और बोली, “माँ जी, आपका बेटा अगर दिन में बच्चों को देखता है तो मैं भी ऑफिस में काम करती हूँ। अगर वो बर्दाश्त करता है तो मैं भी तो बहुत कुछ सहती हूँ।

आपके बेटे की नौकरी चली गई और मैं घर चला रही हूँ तो क्या वो अपने ही बच्चों की देखभाल नहीं कर सकते?

अगर वो दिन में थक जाते है तो क्या मैं नहीं थकती हूँ?

अगर मेरी जगह आपकी बेटी होती तो क्या आप ऐसा ही सोचती?

मर्द घर के काम करे तो बेचारा और औरत बाहर का काम करे तो आवारा? आख़िर ये दोहरा व्यवहार क्यों?

मैं कल ही नौकरी से इस्तीफा दे देती हूँ और अपने बेटे को बोल देना कि वो जल्द से जल्द अच्छी नौकरी ढूंढ ले।”

सीमा की बातें उषा जी के अंतरात्मा को भेद गयीं और उन्हें  अपनी ग़लती का एहसास हो चला।

बहू से हाथ जोड़कर कहने लगी, “बेटा मैंने कभी तेरी परेशानियों की तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया। पति पत्नी एक दूसरे के पूरक हैं। अगर तुम बाहर काम कर सकती हो तो मेरा बेटा भी घर गृहस्थी के कामों में तेरा हाथ बंटा सकता है।”

काश! उषा जी की तरह हर सास एक कामकाजी औरत का दर्द समझ सकती।

मूल चित्र : Still from Ghadi Detergent ad, YouTube

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