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एक मामूली स्त्री की कहानी द ग्रेट इंडियन किचन यह संदेश देने में सक्षम है कि हर किसी को स्वअस्तित्व की लड़ाई स्वयं ही लड़नी पड़ती है।
आज बहुत दिनों बाद अमेज़न प्राइम वीडियो पर एक मलयाली फ़िल्म “द ग्रेट इंडियन किचेन” देखी।
आपको बता दूँ अधिकांश मलयालम फ़िल्में ज़मीन से जुड़े हुए मुद्दों और हमारे आपके जीवन में घटने वाले क़िस्सों को बख़ूबी दर्शाती हैं। ये फिल्में हमारी हिन्दी फ़िल्मों की तरह लार्जर देन लाइफ़ या कल्पनालोक में विचरण नहीं करातीं।
हाँ, तो मैं बात कर रही थी फ़िल्म “द ग्रेट इंडियन किचेन” की।
जब मैंने इस फ़िल्म को देखना शुरू किया तो मेरे मन में विचार था कि यह किसी बड़े से संयुक्त परिवार की कहानी होगी, जिसमें बड़ी सी रसोई होगी जहाँ विभिन्न पकवानों की ख़ुशबू बिखरती होगी।
इस फ़िल्म को देखने का एक कारण यह भी था कि मैं देश में उच्चतम साक्षरता वाले राज्य केरल की प्रबुद्ध सामाजिक व्यवस्थाओं को फ़िल्म के रूप में देखना चाहती थी। मुझे लगता था कि शिक्षा से मनुष्य की सोचने समझने की शक्ति विकसित होती है और वह रूढ़िवादी विचारधाराओं से बाहर निकलता है।
परन्तु, आशा के विपरीत यह कहानी है एक ऐसी स्त्री की, जिसके पाँवों में रूढ़िवादी सोच की बेड़ियाँ पहना दी गई हैं। ठीक ही कहा है किसी ने, सिर्फ डिग्री से आप एडुकेटेड नहीं होते।
एक ऐसी साधारण भारतीय स्त्री की जिसे आप अपने इर्द गिर्द चारों ओर देखते हैं। यह स्त्री अपनी रसोई में उठने वाली सुगन्ध से नहीं बल्कि गंदगी से उठती दुर्गन्ध से परेशान है।
आज के ज़माने की पढ़ी लिखी स्त्री जो बिना किसी ग़लती के पति को केवल इसलिए सॉरी बोलती है, कि उसका पति उससे नाराज़ न हो जाए।
एक स्त्री जो पढ़ी लिखी तो हो पर टेबल मैनर्स और फ़ोरप्ले के बारे में बोलने का साहस न करे।
खाने की मेज़ से सबकी जूठन साफ करती स्त्री, गैस का चूल्हा होते हुए भी लकड़ी के चूल्हे पर भोजन बनाती स्त्री, वॉशिंग मशीन होते हुए भी हाथ से कपड़े धोती स्त्री, क्योंकि पुरुषों का मानना है कि घर के सभी सदस्यों की पसंद नापसंद का ध्यान रखना घर की स्त्री का दायित्व है ।
नायिका की पढ़ी लिखी पोस्ट ग्रेजुएट सास ने यह दायित्व निभाया था तो अब नायिका को भी निभाना चाहिए।
नायिका का अध्यापक पति कॉलेज में आदर्शवादिता की बड़ी बड़ी बातें करता है परन्तु घर में उसे पत्नी के रूप में केवल एक चाबी से चलने वाली बेज़ुबान गुड़िया चाहिये।
विवाह के पश्चात स्त्रियों को मायके का सहारा मिलना भी मुश्किल है, नायिका की पढ़ी लिखी माँ भी बेटी को ससुराल में ही रहने की सलाह देती है क्योंकि सुसंस्कृत बेटियाँ ससुराल में ही अच्छी लगती हैं।
हमारे समाज में ऐसी स्त्रियों का प्रतिशत बहुत अधिक है जो बिना घरवालों की मर्ज़ी के एक फ़ेसबुक पोस्ट भी नहीं डाल सकतीं। जो अपने पति से अपनी पसंद नापसंद नहीं कह सकतीं। जिनकी हैसियत उनके पति के लिए मन बहलाने का सामान भर होती है। इसलिए हमारे समाज की हर स्त्री को नायिका का किरदार जाना पहचाना लगता है, अपना सा लगता है।
फ़िल्म का क्लाइमेक्स इतना अप्रत्याशित व सकारात्मक है कि मन आनन्दित हुए बिना नहीं रह पाता। किसी भारी भरकम सामाजिक बदलाव का संदेश नहीं पर पूर्णतया अभिभूत करने वाला ।
साथ ही फ़िल्म यह संदेश देने में सक्षम है कि यदि आप स्वयं की सहायता नहीं करते अथवा स्वयं के लिए खड़े नहीं होते तो दूसरा कोई भी आपकी सहायता नहीं कर सकता। हर किसी को स्वअस्तित्व की लड़ाई स्वयं ही लड़नी पड़ती है।
नायिका के रुप में निमिशा सजायन बिलकुल अपने पड़ोस की ही लड़की लगती हैं जो अपने बेमिसाल अभिनय से प्रभावित करती हैं ।
जिन्हें मानसिक अत्याचार ( हाँ अत्याचार केवल शारीरिक ही नहीं होते जिनमें थप्पड़ की गूँज सुनाई पड़ती हो, मानसिक भी होते हैं जो स्त्री की गरिमा व आत्मविश्वास को छिन्न भिन्न कर देते हैं) को ढोती स्री का मार्मिक चित्रण देखने में दिलचस्पी हो वे यह फ़िल्म अवश्य देखें।
फ़िल्म द ग्रेट इंडियन किचन मलयालम में है परन्तु इंग्लिश सब्टायटल्ज़ के साथ भाषा की अज्ञानता नहीं अखरती। कुछ लोगों को फ़िल्म धीमी लग सकती है परन्तु इस धीमेपन या एकरसता का भी अपना ही आनन्द है ।
कुल मिलाकर एक मस्ट वॉच मूवी जिसकी रेटिंग मेरी तरफ से 8.4/10 है।
मूल चित्र: Stills from Movie The Great Indian Kitchen
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