कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

पारुल खख्खर की 14 लाइन की शव वाहिनी गंगा और हजारों-लाखों अपशब्द

पारुल खख्खर की कविता शव वाहिनी गंगा सिर्फ एक माध्यम था उनका अपनी मन की तकलीफ को व्यक्त करने का लेकिन ट्रोल्स ने इसे कोई और ही रूप दे दिया। 

पारुल खख्खर की कविता शव वाहिनी गंगा सिर्फ एक माध्यम था उनका अपनी मन की तकलीफ को व्यक्त करने का लेकिन ट्रोल्स ने इसे कोई और ही रूप दे दिया। 

सोशल मीडिया पर महिलाओं की मौजूदगी और उनकी अभिव्यक्ति हमेशा से ही एक बड़े समुदाय, जो मूल रूप से पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवहार का समर्थक है, उनको कचोटती रही है।

हाल के सालों में पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवहारों का एक समूह सोशल मीडिया पर महिलाओं के स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर अश्लील भाषाओं और अभद्र टिप्पणीयों के साथ इस तरह का व्यवहार करता है कि कई महिलाओं को अपना सोशल मीडिया अकाउंट ही डिलीट करना पड़ा या सोशल मीडिया को ही छोड़ना पड़ता है।

ज़ाहिर है सोशल मीडिया पर महिलाओं की अभिव्यक्ति के अपने खतरे हैं जो कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं।

दो दिन पहले  सोशल मीडिया पर पारुल खक्कर की कविता के इतने शेयरिंग और ट्रोलिग के बाद उनको अपना फेसबुक आईडी बदलना पड़ा और इंस्टाग्राम को बंद करना पड़ा। पारुल खक्कर के साथ भी वही हो रहा है जो सोशल मीडिया पर ट्रोल आर्मी की फौज करती है।

कौन हैं पारुल खख्खर और क्या है उनकी कविता शव वाहिनी गंगा?

गुजरात के एक बेहद समान्य परिवार की समान्य घरेलू महिला हैं पारुल खख्खर, जो घर के घरेलू काम के साथ-साथ गुजराती भाषा में कविताएं लिखती हैं, खासकर राधा-कृण्ण की भक्ति कविताएं।

पिछले दिनों गंगा में कोरोना महामारी से मरे हुए लोगों के शव गंगा में जब तैरते हुए दिखे, तो उनका कवि मन झकझोर गया। वह इतनी अधिक आहत हुईं कि उन्होंने अपने आहत मन के तकलीफ को 14 लाइन की कविता “शव वाहिनी गंगा” शीर्षक से लिखा और उसको अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर कर दिया।

कहते हैं आहत और प्रसन्न मन के गहराईयों से जो शब्द निकलते हैं, उनमें बहुत शक्ति होती है। ऐसा इस लिए भी होता है क्योंकि उन शब्द-ऋचाओं में शब्द शक्ति के गुण अमिद्या, लक्षणा और अभिव्यंजना तीनों के गुण होते हैं।

पिछले दिनों गुजराती कवियत्री पारुल खख्खर की कविता “शव वाहिनी गंगा” में शब्द शक्ति के तीनों गुण मात्र 14 लाइन की कविता में कुछ इस तरह से अभिव्यक्त हुए कि मात्र 48 घंटे में 28 हजार गालियां-अपशब्दों से भरी टिप्पणियां उनको सोशल मीडिया पर मिले।

एक लाख से ऊपर लोगों ने इस कविता को अपने सोशल मीडिया अकाउंट में शेयर किया। अब आननफानन में इस कविता का अनुवाद असमी, हिंदी, तमिल, मलयालम, भोजपुरी, अंग्रेजी, बंगाली और अन्य भाषाओं में इसका अनुवाद हो रहा है। जल्द ही विदेशी भाषाओं में भी इसका अनुवाद हो तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।

महिलाओं का जीवन और सोशल मीडिया बुलिंग

सोशल मीडिया पर लिख रही औरतों के हिस्से में गालियां, फब्तियां मिलते रहना धीरे-धीरे समान्य बात होती जा रहा है।

हालांकि, यह कोई नई बात नहीं है कि हर दिन यही देखने और सुनने की आदत घरेलू जीवन में या फिर कामकाजी महिला के रूप में हो सुनने को मिलते ही रहता है। यह रोज़मर्रा के जीवन में एक अग्रि-परीक्षा के तरह से ही है, जो गुज़र जाता है।

कभी खाने में नमक की शिकायत तो कभी बच्चों या घर के बुर्जुग के देखभाग में चूक तो कभी फेलियर के ताने। मेट्रों में बुलिंग, रिक्शा पर घूरना, बोलने पर खुद ही सुनना, कभी अपने कपड़ों पर, कभी अपने व्यवहार पर।

कभी-कभी यह बढ़ जाता है तो घरेलू हिंसा-यौन हिंसा या हिंसा के अन्य रूप में उनके ऊपर घटता है। जब  महिलाएं इसका प्रतिरोध करती हैं तो वह “मी टू” के रूप में सामने आता है तो कहीं इसके दूसरे रूप में।

अच्छी बात यह है कि आज महिलाएं इसके विरोध में बोलने लगी हैं, अपनी बात अभिव्यक्त करने लगी हैं। यह बात और है कि यह प्रतिरोध बहुत ही सीमित है।

महिलाओं का यह प्रतिरोध जब शब्द-ऋचाओं के रूप में होता है तो उसका महत्व बढ़ जाता है क्योंकि शब्द-ऋचाओं की शक्ति सबसे अधिक मजबूत होती है।

सदियाँ बीत जाती हैं, पर शब्द-ऋचा मौजूद रहती हैं। वे अमर हो जाती हैं, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंच जाती हैं और अपने को अभिव्यक्त करती हैं। इसलिए जरूरी है कि महिलाएं हौसला न खोएँ और खुद को व्यक्त करती रहें और भावी पीढ़ियों को अपने अभिव्यक्तियों से सजग और सचेत बनाएँ।

उनकी शब्द-ऋचा कभी न कभी तो समाज को अपनी जिम्मेदारी लेने के लिए मजबूर करेंगी ही। कभी न कभी तो वह पुरुष समाज को खूबसूरत पुरुष बनने के लिए मजबूर करेगा, जो स्त्रियों का सबसे प्यारा मित्र होगा। वह अपनी बेटी, बहन, पत्नी, मां या आस-पास की महिलाओं के लिए वह बेहतर इंसान बनने का प्रयास करेगा।

महिलाओं से बस इतनी सी इल्तिजा है कि वे डटे रहें, अपनी अभिव्यक्ति और शब्द-ऋचाओं के शक्ति के साथ…

मूल चित्र : DW/EcoBusiness.com

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

240 Posts | 734,301 Views
All Categories