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मत बांधों स्वयं को किसी लक्ष्मण रेखा से, आसमान देख रहा है राह तुम्हारी, उठो पंख फैलाओ, ऊंची उड़ान भरो तुम।
मत बांधों स्वयं को किसी लक्ष्मण रेखा से, आसमान देख रहा है राह तुम्हारी, उठो पंख फैलाओ, ऊँची उड़ान भरो तुम।
हमेशा सीता जैसी सरल नहीं,
अब द्रोपदी जैसी प्रचंड बनो तुम।
कब तक मौन बैठोगी,
उठो लड़ो तुम।
क्यों सहोगी चुपचाप रहकर सारी यातनाएँ?
तुमसे जो प्रश्न करें, तुम भी उनसे प्रश्न करो अब,
समाज के इन ठेकेदारों से प्रश्न करो तुम।
मत बांधों स्वयं को किसी लक्ष्मण रेखा से,
आसमान देख रहा है राह तुम्हारी।
उठो ऊंची उड़ान भरो तुम।
कब तक देखोगी राह कृष्ण की,
समाज के मनचलों से लड़ने को स्वयं सिद्धा बनो तुम।
मौन छोड़ो अब संवाद करो तुम।
अपने लिए स्वयं उठो लड़ो तुम।
तुम स्त्री हो, इस बात पर गर्व करो तुम।
मूल चित्र: Still from Show Anupama
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