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माँजी, आपकी बहु बेटा पैदा करने वाली मशीन नहीं है…

किसने कहा वंश बेटे चलाते हैं? वंश तो बहू चलाती है, जो अपने गर्भ में एक नये जीवन को संचारित करती है वो भी अपने शरीर की सुधबुध खोकर।

किसने कहा वंश बेटे चलाते हैं? वंश तो बहू चलाती है, जो अपने गर्भ में एक नये जीवन को संचारित करती है वो भी अपने शरीर की सुधबुध खोकर।

मंदिर में चल रही आरती की आवाज सुनकर मेरी तंद्रा टूटी। आसपास देखा तो सभी लोग मंदिर में दर्शन करने जा चुके थे और मैं मंदिर की सीढ़ियों पर खड़ी हिम्मत जुटा रही थी। लग रहा था पता नहीं किस मुँह से देवी माँ के मंदिर में जाऊं। आखिर मैं मंदिर आई ही क्यों? पर फिर हिम्मत करके चली गई।

मैं अनन्या, माता पिता की बड़ी बेटी और ससुराल में बड़ी बहू। मेरे पति का नाम रमन है, जिनसे मेरी शादी तीन साल पहले ही हुई हैं। हम लोग भी आम मध्यमवर्गीय परिवार की तरह है। जहां एक सास है जिसे अपनी बहू में कमी ही कमी नजर आती है। एक ससूर है जो सास के खिलाफ बोल नहीं पाते। एक शादीशुदा ननद हैं और एक पति है, जो अपनी मां के खिलाफ बोल नहीं सकता।

और, और भी बहुत कुछ जो नॉर्मल परिवार में नहीं होता। जैसे सास, जो पोते का मुंह देखने के लिए आज तक जिंदा है (शायद पैदा ही पोते की ख्वाहिश लेकर के हुई थी)। पति है, जो कहीं के राजा महाराजा भी नहीं है, लेकिन वंश चलाने के लिए उन्हें लड़का ही चाहिए। जैसे लड़का नहीं हुआ तो उनका साम्राज्य खत्म हो जाएगा। ससुर है पर उनका होना ना होना बराबर है। सासू मां के गुस्से से देखते ही चुपचाप बैठ जाते है, अपने लिए भी नहीं बोल पाते।

मैं बहुत खुश थी जब शादी के कुछ ही महीनों बाद मैंने कंसीव किया। लेकिन मेरी ये खुशी ज्यादा दिन तक नहीं रही। क्योंकि मेरी सास सुबह-शाम पोते की रट लगाए रहती। मैंने अपने पति से बात की, पर उनका भी यही मानना था कि लड़का ही होना चाहिए। मुझे डर लगने लगा था कि कही लड़की हो गई तो?

फिर कुछ दिनों बाद पता चला कि यह लोग बच्चे का लिंग पता करना चाहते हैं। मैंने अपने माता-पिता से भी इस बारे में बात की, पर हर माता-पिता साथ दे यह जरूरी भी तो नहीं। बस उन्होंने भी मुझे साफ कह दिया कि जैसा तुम्हारे पति और सास कह रहे है, वैसा कर लो।

मैं अगर कुछ भी कहती तो ये लोग मुझे परेशान करना शुरू कर देते। उस तीन महीने की गर्भावस्था में मैंने इतनी प्रताड़ना सहन कर ली कि अब तो मुझ में हिम्मत ही ना बची थी। पता नहीं क्यों? पर मानसिक तौर पर मैं अपने आप को मजबूत ही नहीं कर पाई। नहीं लड़ पाई मैं अपनी उस नन्ही सी जान के लिए, जिसने अभी  दुनिया में कदम भी नहीं रखा था।

आखिर मुझे मजबूरन मेरे पति और सास के साथ जाना पड़ा। लिंग जांच के बाद पता चला कि गर्भ में पल रही एक बेटी है। बस फिर क्या था? मेरा अबॉर्शन करवा दिया गया और बेटी से पीछा छुड़वा लिया गया। और मेरे ही हाथों उस कन्या भ्रूण को रास्ते में फिकवा दिया गया। मेरे शरीर का एक हिस्सा मैंने निकलवा करके फेंका था, पर इसकी मेरी सास और मेरे पति के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी।

पर उस अबॉर्शन के बाद में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से ही कमजोर हो चुकी थी। पर धीरे-धीरे जिंदगी वापस अपने ढर्रे पर आने लगी थी। अब मेरे मन में मेरे पति, मेरी सास और मेरे परिवार के लिए कोई सम्मान नहीं बचा था।

अब दोबारा मुझे पता चला कि मैं मां बनने वाली हूं। पर इस बार मैंने घर में किसी को भी ना बताने की ठान ली। लेकिन गर्भावस्था है, कभी छुपी रहती है क्या? लगातार होती उल्टीयों ने सब कुछ जाहिर कर दिया।

जबसे मेरी सास और पति को पता चला है तब से वे लोग मुझसे नाराज है। और मुंह फुलाए ही लिंग परीक्षण के लिए मुझे ये लोग लेकर जा रहे हैं। पर उससे पहले मंदिर में माता रानी को माथा टेकने आए हैं यह कहकर कि माता रानी ने मेरे मंसूबों पर पानी फेर दिया और इस बार तो बेटा ही दे। अन्यथा माता रानी के आशीर्वाद से कन्याभ्रूण हत्या कर दी जाएगी। (कोई इतना घटिया कैसे सोच सकता है यकीन ही नहीं होता)

वही, मंदिर में एक जोड़ा हाथ जोड़े माँ से विनती कर रहा था, “हे माँ! शादी को बारह साल हो गए पर हमारी गोद आज तक सुनी हैं। माँ, अब तो हमारी गोद भर दे।”

उन्हें देखकर एक पल मन में यह विचार आया कि ये लोग संतान के लिए तरस रहे हैं और एक मैं हूं।

पता नहीं क्यों, मंदिर में माता रानी को देखते ही अचानक से मुझ में हिम्मत कहां से आने लगी। और यह लगने लगा कि माता रानी ने मुझे दूसरा मौका दिया है, इसे मैं ऐसे नहीं जाने दूंगी। मैं अपनी संतान को जन्म देकर ही रहूंगी।

बस, फिर क्या था? मैने मंदिर में ही मेरी सास और पति को मना कर दिया कि मैं अब लिंग परीक्षण के लिए नहीं जाऊँगी। वहाँ बहस करने में उन लोगों की बेइज्जती होती इसलिए वो लोग मुझे घर ले आए। पर घर आते ही उन लोगों ने हंगामा शुरू कर दिया। साथ ही मेरे माता पिता को भी बुला लिया।

“देखिए आपकी बेटी को, अपनी मनमानी करने में लगी हुई है।”

“क्या हुआ समधन जी?”

“आपको तो पता ही है कि मुझे सिर्फ पोता ही चाहिए, इसलिए आज लिंग परीक्षण के लिए जा रहे थे। पर इसने तो मंदिर में ही तमाशा शुरू कर दिया।”

“ये क्या सुन रहे हैं हम अनन्या। तुमने ऐसी हरकत की?”

“देखिए पापा जी, पहले तो इसने छिपाया और अब देखो, क्या तमाशा कर रही हैं। मुझे तो बेटा ही चाहिए। आखिर मेरा भी तो वंश बढ़ना चाहिए। अगर इसे मंजूर नहीं है तो इसे अपने साथ ले जाइए। कुछ दिन वहां रहेगी तो अकल ठिकाने आ जाएगी।” अब की बार रमन ने कहा।

“अनन्या माफी मांगो इनसे अभी। समझदार हो कर ऐसी हरकत करती हो। अब हमारा काम धंधा देखें या तुम्हारे ससुराल को संभालें?” पिता ने गुस्से से कहा।

“मैं क्यों माफी मांगू पापा? क्या गलती की है मैंने? ये लोग माता रानी के मंदिर में माथा टेक करके बेटियों को मारते हैं। और आप कहते हो माफी मैं मांगू? वंश चलाने के लिए बेटा चाहिए इन्हें, कहाँ के राजा महाराजा है ये लोग? किसने कहा वंश बेटे चलाते हैं? वंश तो बहू चलाती है, जो अपने गर्भ में एक नये जीवन को संचारित करती है। अपने शरीर की सुध बुध खोकर भी एक नए जीवन को जन्म देती है। पालती हैं पोसती हैं। फिर भी उसका नाम तक नहीं होता। अगर इतने ही वंश का अभिमान है तो बिना औरत के बच्चे को जन्म देकर दिखाओ।

पर किसको कहूं मैं? हैरानी तो इस बात की होती है कि पुरुष ही नहीं यहाँ तो औरतें भी आप लोगों के साथ खड़ी हो गई। जिस सास और मां को मेरी मजबूरी समझनी चाहिए थी वे तक मुझे समझने को तैयार नहीं। रमन तुम्हारा वंश तुम नहीं, मैं चलाती हूं। बस मैंने फैसला कर लिया है। मुझे कोई लिंग परीक्षण नहीं करवाना। आपसे जो हो सकता है आप वह कीजिए, जो मुझसे हो सकेगा वही मैं करूंगी।”

अनन्या के संकल्प को देखकर कोई कुछ भी नहीं कह पाया। कुछ महीने बाद अनन्या ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। हालाँकि सास और रमन कुछ दिन तो नाराज रहे, लेकिन बेटियों से कोई कब तक नाराज रह सकता है। आज वही बेटी परिवार की जान है।

मूल चित्र: Still from TVC Episode E7S18, YouTube 

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