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साइको थ्रिलर द वुमन इन द विंडो की नायिका को क्या आप समझ पाते हैं?

फिल्म द वुमन इन द विंडो में हर पल नया मोड़ आता है, जो क्राइम, थ्रिलर और मनोविज्ञानिक रूप में कहानी को रोचक बना देता है।

फिल्म द वुमन इन द विंडो में हर पल नया मोड़ आता है, जो क्राइम, थ्रिलर और मनोविज्ञानिक रूप में कहानी को रोचक बना देता है।

कुछ हफ्ते पहले नैटफिलिक्स पर जो राइट निर्देशित फिल्म रिलीज हुई, द वुमन इन द विंडो, जो एक साइको थ्रिलर जैसी कहानी है।

फिल्म इसी नाम की साल 2018 में आई बेस्ट सेलर उपन्यास पर आधारित है, जिसके लेखक है ए.जे.फिना। उपन्यास भी साइको थ्रिलर के बेताज बादशाह कहे जाने वाले अल्फ्रेड हिचकांक के मशहूर फिल्म ‘रेयर विड़ों’ के कुछ समानता दर्शाती थी, वैसे ही इस फिल्म पर भी इसका प्रभाव है।

फर्क बस इतना है कि एक महिला के लिए उसके घर के खिड़की के मायने अलग हो जाते हैं। कहानी में एक महिला बाहर की दुनिया देखने के लिए अपने घर की खिड़की का इस्तेमाल करती है, जो पूरी कहानी का मुख्य यूएसबी है।

पूरी कहानी में थ्रिलर को इस तरह से बुना गया है कि हर पल एक नया नज़रिया सामने आता रहता है। यही सबसे बड़ा कारण बनती है पूरी फिल्म खत्म होने तक आप कुर्सी पर जमें रहेंगे का और कहानी के थ्रिलर से रोमांचित होते रहेंगे। 

क्या कहानी है द वुमन इन द विंडो की

डां आना फ़ॉक्स (एमी एडम्स) बच्चों की मनोवैज्ञानिक डाक्टर है, जो एगोराफोबिक है। वह टाउनहाउस के सड़क के एक तरफ वाले घर में रहती है। वह अपने पति एड (एंथोनी मैकी) और बेटी से अलग रहती है और अपने मानसिक स्वास्थ्य पर पेशवर डाक्टर से सलाह लेती है, क्योंकि एगोराफोबिक होने के कारण वह अपने घर के बाहर निकलने में अलगाव और डर के कारण एन्जाइटी की शिकार हो जाती है।

आना के घर के बेसमेंट में डेविड (व्याट रसेल) रहता है जो उसमें मौजूद अस्थिरता को नोटिस करना है और बीमारी से निकलने में मदद करता रहता है।

उसके सामने वाले घर में एलिस्टेयर रसेल (गैरी ओल्डमैन) अपने बेटे ईथन रसेल (फ्रेड हेचिंगर) अपनी बीवी (जूलियन मूर) के साथ रहने आते है।

ईथन आना को पसंद करता है, ईथन की माँ भी आना से मिलती है और दोनों में दोस्ती हो जाती है। अचानक एक दिन अन्ना अपने घर के खिड़की से रसेल के घर में  देखती है कि उसके नए दोस्त को एक अज्ञात हमलावर ने चाकू मार दिया है।

इसके बाद पूरी कहानी में हर पल एक नया-नया मोड़ आता है, जो क्राइम, थ्रिलर और मनोविज्ञानिक रूप में आगे बढ़ती कहानी को रोचक बना देती है।

मर्डर किसका होता है, मर्डर किसने किया है, आना अपने एगोराफोबिक बीमारी के साथ सही अपराधी तक पहुंच पाती है या नहीं, यह जानने के लिए आपको द वुमेन इन द विंडो देखनी होगी।

https://www.youtube.com/watch?v=WpZmXH_j-BI

क्यों देखनी चाहिए द वुमन इन द विंडो?

द वुमन इन द विंडो उपन्यास और उसका फिल्मी प्रस्तुतीकरण पर हिचकाकीयन प्रभाव से मुक्त नहीं है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। परंतु, यह फ़िल्म एक महत्वपूर्ण बिंदू के तरफ इशारा करती है, जिसको हमेशा से ही किसी भी क्राइम के जांच में इग्नोर किया जाता है, खासकर अगर मुख्य गवाह महिला हो तो।

अपनी स्टोरी टेंलिग में डिरेक्टर यही बताना चाहता है कि किसी भी क्राइम को समझने के लिए गवाह के जीवन में चल रहे उतार-चढ़ाव को आधार बना कर शक करना सही नहीं है, खासकर मुख्य गवाह अगर महिला हो तो।

महिलाओं के जीवन में मानसिक तनाव या मानसिक उलझन के कई कारण हो सकते है। खासकर तब जब वह आत्मनिर्भर हो या आत्मनिर्भर नहीं हो तब भी। किसी भी महिला का मानसिक परेशानीयों से गुजरना और जीवन को समाज के तयशुदा मान्ताओं को तोड़कर जीना जिसमें शराब पीना और अन्य तरह के गतिविधी भी शामिल हो, तो उसको आधार नहीं बनाया जाना चाहिए।

इसलिए उपन्यास के लेखक और फिल्म के निर्देशक ने फिल्म का नाम रखा है द वुमन इन द विंडो। अपने एक मात्र इस नज़रिये के कारण ही पूरी कहानी और उसका फिल्मी प्रस्तुतीकरण हिचकॉक के प्रभाव से बाहर निकल आती है और महिलाओं के मनोविज्ञान के साथ खड़ी हो जाती है। 

कलाकारों का अभिनय रोचकता बढ़ाती है

द वुमन इन द विंडो के फिल्मी प्रस्तुतीकरण में सबसे मुख्य बात है हर कलाकार के चेहरे पर हर पल आने वाला बदलाव। वह इतनी तेजी से बदलता है और समान्य हो जाता है कि यह चौंका देता है। वह कहानी में आ रहे बदलावों के अनुसार स्वयं को प्रस्तुत करता है, इसलिए कहानी का कई मुख्य पात्र ही अपराधी महसूस होने लगते है।

बार-बार लगता है कि सब एक क्राइम को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं और आना फॉक्स के एगोराफोबिक होना ही क्राइम को रच रहा है क्यूँकि सबकुछ तो एकदम से समान्य है।

निर्देशक ने अपने डारेक्शन में आना फॉक्स की काल्पनिकता को मुख्य अपराधी बनाने की हर कोशिश की है, जिसमें वह कुछ हद तक कामयाब भी होते है। साथ ही साथ निर्देशक इस बात का भी ख्याल रख रहे है कि उनको अपनी स्टोरी टेलिग में कहना क्या है? इन दोनों के बीच में संतुलन बनाना ही कहानी के थ्रिलर संस्पेस को बढ़ाता है और रोचक बनाता है।

मूल चित्र: Stills from Movie Woman in the Window

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