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पता नहीं क्यों मैं सोचती बहुत हूँ…

सासु माँ से लेकर नाते रिश्तेदारों तक, भाई भतीजों से लेकर अपनी मित्रों तक, सबकी दिक़्क़त क्यों मुझे मेरी सी लगती हैं।

सासु माँ से लेकर नाते रिश्तेदारों तक, भाई भतीजों से लेकर अपनी मित्रों तक, सबकी दिक़्क़त क्यों मुझे मेरी सी लगती हैं।

मैं सोचती बहुत हूँ।
हर काम करते करते, सबसे बात करते करते,
पता नहीं क्यों मैं सोचती बहुत  हूँ। 

बिस्तर पर लेट कर भी मैं सोती नहीं,
नींद में भी मैं सोचती बहुत हूँ।
पूरे घर की चिंता को अपने कंधों पे टाँगे, 
दूध वाले से लेकर बच्चों के भविष्य तक,
सासु माँ से लेकर नाते रिश्तेदारों तक, 
लेन देन से लेकर महीने के राशन तक,
भाई भतीजों से लेकर अपनी मित्रों तक ,
पता नहीं क्यों ये मेरे दिमाग़ में चलते हैं।
सबकी दिक़्क़त क्यों मुझे मेरी सी लगती हैं।

एक एक पैसे बचा के अपने शौक़ दबा के,
हर पैसे का हिसाब उँगलियों पे लगाती हूँ। 
पता नहीं मै इतना सोचती क्यों हूँ। 

सब आज की बात करते हैं और मैं बस कल की सोचती हूँ।
कहीं आँगन में फैली मिर्चों ना उड़ जाएँ,
कहीं बारिश में कपड़े ना भीग जाएँ,
बिटिया समय से घर लौट आए,
पता नहीं मैं इतना सोचती क्यों हूँ। 

मन में इक आशंका लिए ये ना हो गया हो वो ना हो गया हो, 
मन्नत पे मन्नत माँगती हूँ।
किसी से कह लूँ तो कम सोचूँ।
किसी की कुछ सुन लूँ तो कम सोचूँ।
कुछ बातें मन में बोझ सी होती है।
पता नहीं मैं इतना सोचती क्यों हूँ।

मूल चित्र: FacebookApp via Youtube

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About the Author

SHALINI VERMA

I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...

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