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कॉलोनी और नातेदारी वालों में एक बार फिर कानाफूसी शुरू हो गई, "बच्चा पैदा किए बिना कोई भी औरत संपूर्ण नहीं होती।"
कॉलोनी और नातेदारी वालों में एक बार फिर कानाफूसी शुरू हो गई, “बच्चा पैदा किए बिना कोई भी औरत संपूर्ण नहीं होती।”
“3 साल हुए शादी को, अब तक गोद नहीं भरी।”
“कितनी अभागी लुगाई है! अपने आदमी को औलाद का सुख नहीं दे पाई।”
“कहीं इसका पति बच्चे की चाह में दूसरी शादी न कर ले।”
पार्क में औरतों की कानाफूसी सुनकर राशि मायूस हो गई और घर की तरफ तेज़ क़दमों से चल पड़ी। पीछे पीछे पति राकेश भी आ गया।
“क्या राशि! तुम क्यों लोगों की बातों पर ध्यान देती हो? इस समाज की तो प्रवृति ही है औरत पर ऊँगली उठाना।” राकेश उसे समझाने लगा, “तुम्हें इतना बुरा लगता है तो सच्चाई बता देती कि कमी मुझमें है। मेरा इलाज चल रहा है। तुम तो पूरी तरह से माँ बनने के काबिल हो।”
“नहीं नहीं! यह क्या कह रहे हैं आप? मैं किसी को भी मौका नहीं दूंगी आप की बुराई करने का। आप मेरा इतना ख्याल रखते हैं, मुझसे प्यार करते हैं। आप में तो मेरी पूरी दुनिया समाई है। मैं आपको बदनाम नहीं कर सकती।” राशि भावविभोर होकर बोली।
“जब मुझसे इतना प्यार करती हो तो मेरी बात मानो और इन सब बातों को नज़रअंदाज़ करो। सब ठीक हो जाएगा।”
राकेश के पिता उसके बचपन में ही गुज़र गए थे। माँ ने ही बड़ा किया। पिछले साल पोते की अधूरी ख्वाहिश लिए वह भी चल बसी। राकेश और राशि एक दूसरे के पूरक थे। पर फिर भी उन्हें संतान की कमी तो खलती ही थी। वो कहते हैं न, हर काम अपने समय पर होता है।
कुछ वक़्त बाद डॉक्टर का इलाज सफल हुआ और राशि गर्भवती हो गई। ख़ुशी से उसके पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। माँ बनने के एहसास के साथ उसकी झोली आनंद से भर गई थी। अपने अंदर एक नवजीवन का संचार उसे परम सुख महसूस करवा रहा था।
राकेश और राशि ने बहुत समझदारी और सावधानी से अपने जीवन के बदलाव को व्यतीत करना शुरू किया। घर के बड़ों की सलाह लेते, डॉक्टर के बताए हर निर्देश का पालन करते। राकेश के ऑफिस जाने के बाद राशि अकेली न रहे, इसके लिए उन्होंने घर की साफ़ सफ़ाई करने वाली लड़की दिया को पूरे दिन के लिए काम पर रख लिया।
तीसरे महीने में डॉक्टर ने अल्ट्रासोनोग्राफी के लिए बुलाया था। दोनों उत्साह और आशंका की मिली जुली अनुभूति के साथ हस्पताल पहुंचे।
रिपोर्ट देखकर डॉक्टर चिंतित लग रही थी, “बच्चे की धड़कन नहीं है। गर्भपात करवाना होगा।”
दामन में आई ख़ुशी इतनी जल्दी छिन जायेगी, यह उन्होंने कभी नहीं सोचा था। कोई और रास्ता नहीं था, इसलिए गर्भपात करवाना पड़ा। शारीरिक रूप से यह काफी पीड़ादायी होता है, लेकिन राशि की मानसिक पीड़ा इससे कहीं अधिक थी। डॉक्टरों ने उसके दोबारा माँ बनने की उम्मीद न के बराबर बताई थी।
राकेश अपने दर्द को आढ़ देकर राशि को सांत्वना देता, “हम उस भगवान की मर्ज़ी को कभी न जान पाएँगे। उसने कुछ तो सोचा ही होगा हमारे बारे में।”
धीरे धीरे वे दोनों इस मानसिक आघात से बाहर आने की कोशिश करने लगे। दिनभर दिया राशि का ख्याल रखती, वो बहुत साफ़ मन की थी और उसे बहन की तरह मानती थी। अपने मोहल्ले की बातें करके राशि के दिमाग को व्यस्त रखती, उसे उदास नहीं होने देती।
एक दिन इसी तरह बातें करते हुए कहने लगी, “आपको पता है जीजी! कल सड़क पर एक बस पलट गई। कितने सारे जन परलोक कूच कर गए। म्हारे पड़ोस के दोनों मर्द बीर ख़त्म हो गए, बची तो उनकी 6 महीने की बेेटी। बताओ अब कोई रिश्तेदार भी ना है ऐसा, किसके सहारे जीएगी? ऊपर वाला भी गजब है, लोग बालक को तरसे हैं और जे अभागन माँ बाप को तरसेगी।”
दिया की यह बात राशि के मन में बैठ गई। उससे रहा न गया तो शाम को राकेश को लेकर दिया के मोहल्ले चल दी उस बच्ची को देखने। वहाँ जाकर पता चला कि कोई दूर का रिश्तेदार आया है, और उसे अनाथ आश्रम छोड़ देगा। राशि और राकेश का दिल पसीज गया, उनके मन मस्तिष्क में एक ही बात आ रही थी, उस बच्ची को गोद लेने की।
क़ानूनी और कागज़ी कार्यवाही संपूर्ण कर वे उस नन्ही बच्ची को अपने आँचल में समेटे घर ले आए। राशि ने बरसों से तड़पती अपनी ममता उस बच्ची पर उड़ेल दी। लेकिन कॉलोनी और नातेदारी वालों में एक बार फिर कानाफूसी शुरू हो गई।
“बच्चा पैदा किए बिना कोई भी औरत संपूर्ण नहीं होती।”
“जन्म दिए बिना भी भला कोई माँ बन सकती है, दूसरे का जन्मा तो दूसरा ही होता है।”
“गोद लेना ही था तो अपनी जात बिरादरी में से लड़का लेती। नीची जात की, और वो भी लड़की!”
इस बार राशि ने जवाब देने की ठान ली थी। बच्ची का नामकरण समारोह रखा गया। पड़ोसी और करीबी रिश्तेदारों को बुलाया गया।
सब का आदर सत्कार करने के बाद राशि ने अपनी बात कहनी शुरू की, “एक स्त्री बहुत सारे प्रेम के रिश्ते निभाती है, फिर माँ बनने पर ही वह पूर्ण क्यों कहलाती है? आदमी के लिए तो समाज ने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया। जहाँ तक प्यार और ममता की बात है तो वो दिल से आती है।
पिता बच्चे को जन्म नहीं देता, तो क्या उसका प्यार औलाद के लिए कम हो जाता है? मेरे गर्भ से बच्चा दूर होना, फिर इस बच्ची का आना, सब भगवान की मर्ज़ी है। और बच्चे तो स्वयं ईश्वर का रूप होते हैं, उनकी कोई जाति नहीं होती, जैसा ढालो वैसे बन जाते हैं। नवरात्रि में हम कंजक पूजन करते हैं, फिर अपने घर में बेटी के जन्म या लड़की गोद लेने से परहेज़ क्यों?”
किसी के पास भी राशि के सवालों का जवाब नहीं था।
“प्यार बाँटने और सीख लेने का नाम ही ज़िंदगी है। हमें अपनी दकियानूसी सोच बदलनी ही होगी। मैंने अपनी बेटी का नाम किरण रखा है, यह मेरे नवजीवन की आशा की किरण है। ईश्वर का अनमोल उपहार है।”
अगले दिन कॉलोनी के वार्षिक समारोह में राशि के चेहरे की दमक और पैरों की थिरक देखते ही बनती थी। वह मंत्रमुग्ध होकर नाच रही थी। बेटी को बाहों में लिए राकेश मुस्कुरा रहा था, वह जानता था कि समारोह तो एक बहाना था, राशि तो अपनी ममता का जश्न मना रही थी।
पाठकगण, यह एक काल्पनिक कहानी है। बच्चे को जन्म देने का एहसास सबसे अलग होता है, लेकिन बच्चा गोद लेने पर किसी माँ की ममता कम नहीं हो जाती। समाज एक दूसरे को परस्पर जोड़ने का काम करता है और साथ ही साथ हमें सिखाता है सब के साथ चलना, न कि किसी को नीचा दिखाना।
आप सब की राय मेरे लिए बहुमूल्य है। कमेंट करना न भूलिएगा।
मूल चित्र : Still from You’re doing okay, Mom/Best for Baby, YouTube
I am dental surgeon by profession and a writer by passion. read more...
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