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मेरी उत्सुकता भी बढ़ गई, “हाँ माँ बताओ ना, मैं कौन सी लोरी सुनती थी?” माँ ने झिड़कते हुए कहा, “अब 40 की उम्र में तुम लोरी सुनोगी?”
भला हो इस लॉक डाउनलोड का जिसकी वजह से महाभारत देखना अब हमारी दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। इस लॉकडाउन में कम से कम बच्चों ने प्लेस्टेशन, मोबाइल का साथ छोड़ दादी नानी की कहानियों का साथ तो अपनाया।
रात 9:00 बजते ही बच्चे भी माँ के साथ टीवी के आगे आसन लगाकर बैठ जाते हैं। नानी और बच्चे बहुत ही तल्लीनता से एक घंटा महाभारत देखते हुए साथ में बिताते हैं।
महाभारत तो चलती ही जाती है और साथ-साथ बच्चों के सवाल भी और नानी को भी बच्चों के सवालों के जवाब देने में बहुत ही आनंद आता है।
“ब्राम्हण कौन होते हैं?”
“राक्षस कैसे बनते हैं?”
“पूतना इतनी बुरी क्यों थी?”
“कृष्ण जी का मुँह क्या सही में इतना बड़ा था कि पूरा ब्रह्मांड उसमें समा गया?”
ऐसे कई सवालों के जवाब नानी खुशी-खुशी दे देती है। और मैं बगल में बैठी बैठी यही सोचती रहती हूँ कि माँ किस सागर से इतनी सहनशीलता और इतना सारा स्नेह समेट कर लाती है।
पर आज कुछ अलग सा हुआ नन्हे कन्हैया को टीवी में यशोदा मैया से लोरी सुनकर सोता हुआ देख भोला अथर्व अपनी मीठी सी जुबान से पूछ बैठा, “नानी आप मम्मी को कौन सी लोरी सुनाती थीं?”
सवाल सुनकर मेरे कान भी चौकन्ने हो गए। भला मुझे क्यों नहीं याद कि माँ कौन सी लोरी सुनाती थी? आजकल बेड टाइम स्टोरीज़ के ट्रेंड में हम लोरी की मिठास ही भूल गए हैं।
मेरी उत्सुकता भी बढ़ गई, “हाँ माँ बताओ ना, मैं कौन सी लोरी सुनती थी?”
माँ ने झिड़कते हुए कहा, “अब 40 की उम्र में तुम लोरी सुनोगी?”
“अरे 40 की हो जाऊँ या 80 की आपके लिए तो हमेशा ही आपकी छोटी सी बिटिया ही रहूँगी ना। बताओ ना।”
अथर्व भी बोल उठा, “बताओ ना नानी प्लीज़”
माँ ने हँसते हुए कहा, “अरे तुम्हारी मम्मी को तो कभी नींद ही नहीं आती थी। पूरे टाइम बस इधर-उधर भागती रहती थी। और जब सुलाने ले जाओ तब भी दुनिया भर की बातें करती रहती थी।”
माँ बात करते-करते कहीं खो गईं। शायद मेरे बचपन की बातें उन्हें यादों की के गलियारे में ले गयीं थीं।
“बताओ ना नानी!” अथर्व की आवाज़ से माँ फिर वर्तमान में वापस आ गईं।
माँ फिर बताने लगी, “हमारे ज़माने में कहाँ फिल्मों के गाने होते थे। हम तो वही गाते थे जो हमने बचपन में सुना था।”
बात करते-करते अथर्व ने नानी की गोदी में सर रख लिया था ।
और माँ अपनी स्नेह भरी मीठी सी आवाज़ में गाने लगीं, “सोजा बारै बीर…”
अथर्व को लोरी पसंद तो आ रही थी पर फिर भी उसका चंचल बालमन एक सवाल पूछना चाहता था। उसने बोला, “नानी, बस एक आखरी सवाल पूछूँ?”
माँ ने हंसते हुए कहा, “बिल्कुल अपनी माँ पर गया है। पूछो अपना आखरी सवाल।”
अथर्व ने बाल सुलभ उत्सुकता से पूछा, “यह कौन सी भाषा है और आपको किसने सिखाई?”
माँ ने हँसते हुए जवाब दिया, “यह हमारी मातृभाषा है बुंदेलखंडी मतलब मेरी मदर टंग। और यह मुझे मेरी माँ सुनाती थीं, मैंने तुम्हारी माँ को सुनाई और अब तुम्हें भी सुना रही हूँ। अच्छी लगेगी तो बताना फिर मैं रोज़ सुनाया करूंगी।”
और माँ फिर से गुनगुनाने लगी, “सो जा बारै बीर…”
सुनते सुनते नन्हे अथर्व को कब नींद आ गई पता ही ना चला। अब महाभारत की तरह यह लोरी भी हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गई है।रात होते ही अथर्व नानी के पीछे लग जाता है, “नानी ‘बारै बीर’ वाली लोरी सुनाओ ना।”
लोरी वो सुनता है और मैं बचपन के पलों को एक बार फिर से जी लेती हूँ। कभी लोरी के साथ, कभी माँ की सुरीली आवाज के साथ और कभी उस आवाज़ में भरे सुकून के साथ।
शुक्रिया लॉक डाउन तुम्हारा तुमने मुझे मेरे सुरीले सौंधे बचपन से वापस मिलवाया।
मूल चित्र: Popxo Via Youtube
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