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शादी के दिन एक रस्म होती है, इस रस्म में जेठ अपने भाई की बहू को चुनरी ओढ़ाते हैं और उसके बाद से वो दोनों एक दूसरे को छू नहीं सकते।
कहते हैं , विवाह केवल दो लोगों का ही नहीं बल्कि दो परिवारों और दो संस्कृतियों का मिलन होता है। कुछ अज़ीज रिश्ते छूटते हैं, तो कुछ अनमोल रिश्ते जुड़ते भी हैं। ससुराल में जेठ को बड़े भाई का स्थान तथा देवर को छोटे भाई का स्थान प्राप्त है। सास ससुर माता-पिता का स्थान के लेते हैं, ननद या देवरानी जेठानी बड़ी और छोटी बहनों के रूप में होती हैं।
दिया पांच भाई बहनों के साथ खेलकर बड़ी हुई थी, इसलिए उसे हमेशा से ही भरा पूरा परिवार पसंद था। जब दिया की शादी तय हुई तो उसे पता चला कि उसके पति तीन भाई हैं, एक बड़े एवं एक छोटे और दिया के पति मंझले थे। मन में एक ही बात का अफ़सोस था कि, काश एक ननद भी होती। फिर भी वो देवर-जेठ तो हैं, ये सोचकर खुश हो जाती थी।
शादी के दिन एक रस्म होती है चुनरी डालने की, इस रस्म में जेठ अपने भाई की बहू को चुनरी ओढ़ाते हैं और उसके बाद से वो दोनो एक दूसरे को छू नहीं सकते।
दिया जब ससुराल आई तो उसने सबके पैर छुए, जब वह अपने जेठ के पैर छूने उनकी ओर बढ़ी, तो पीछे से एक आवाज़ आई। दिया ने घूंघट उठाकर पीछे मुड़कर देखा तो ,ये उसकी चाची सास थीं।
“अरे, ये क्या करने जा रही थी तुम? अभी तो जेठ को अपने छू लेतीं। अनर्थ हो जाता ये तो।”
“मैं तो भईया के पैर छू रही थी।”
“हां तो छू लो लेकिन दूर से जमीन को। ये जेठ हैं तुम्हारे, तुमको इन्हें छूना नहीं चाहिए।” भईया ने चाची को समझाना चाहा पर चाची ने एक न सुनी।
दिया को जेठ को छू नहीं सकते, ये बात बड़ी अटपटी सी लगती थी। वह उनके लिए चाय, खाना, पानी सब दूर से ही रख देती थी। पर उसको यह छुआ छूत का भेदभाव अच्छा न लगता। वह सोचती कि ये मेरे बड़े भाई की तरह हैं, तो इन्हें छूने में हर्ज ही क्या है।
जेठ भी उसे छोटी बहन की तरह ही मानते थे और इस दकियानूसी विचारधारा से वो भी सहमत न थे, लेकिन घर में बुआ सास, चाची इन सबसे उलझने की हिम्मत उनमें भी न थी।
देखते-देखते दिया के विवाह को दो साल बीत गए। एक बार उसके जेठ का मोटरसाइकल से एक्सीडेंट होने के कारण घुटने में काफ़ी चोट लग गई। साथ ही गांव में एक शादी थी जिसमें सबको जाना था, पर जेठ जी और दिया नहीं जा सकते थे, क्योंकि जेठ जी को चोट लगी थी और दिया मां बनने वाली थी, उसे डाक्टर ने सफ़र करने से मना किया था। तय हुआ कि दिया और उसके जेठ घर रहेंगे आउट परिवार के बाकी सदस्य शादी में चले गए।
अगले दिन सुबह जब दिया भईया के लिए चाय लेकर उनके कमरे में गई, तो देखा कि वो बाथरूम जाने के लिए उठ नहीं पा रहे हैं। कोशिश करते पर चोट की वजह से उठ न पाते। दिया से ये सब देखा न जा रहा था, उसको लग रहा था, कि ये कैसी असमर्थता है कि मैं यहां होकर भी इनकी कोई मदद नहीं कर पा रही हूं।
एक पल को जी चाहता कि वो अपने जेठ को सहारा देकर उठने में मदद करे, लेकिन दूसरे ही पल उसे बुआ सास और चाची सास का क्रोध से भरा चेहरा याद आ जाता।
इस बीच जेठ जी बार बार कोशिश करने पर भी उठ नहीं पा रहे थे, तब दिया से देखा न गया और उसने अपना हाथ जेठ जी की ओर बढ़ा दिया। जेठ जी दिया के हाथ का सहारा पाकर उठ खड़े हुए। फ्रेश होकर दोनों ने एक साथ चाय पी और ढेर सारी बातें की।
गांव से आने के बाद जब यह बात सबको पता चली, तो खूब हंगामा हुआ। सबने मुंह फुलाए, “जेठ को छू लिया, इतना बड़ा पाप कर दिया, अब ज़रूर कुछ अनिष्ट होकर रहेगा।”
फिर दिया हिम्मत करके सबके सामने आई और बोली, “देखिए मैं इन्हें भईया बोलती हूं, वो भी पूरे मन से, तो इस रूढ़िवादिता के चक्कर में क्या मैं इन्हे ऐसे ही परेशान होने के लिए छोड़ देती क्या? मैं नहीं मानती ये सब बेकार की बातें, ये मेरे भाई जैसे हैं और मैं इन्हें दिल से बड़ा भाई मानती हूं। मैं दिल के रिश्ते मानती हूं, समाज के पाखंड के कारण मैं उन्हें छोड़ नहीं सकती हूं।”
तब से लेकर आज तक दिया अपने जेठ के पैर छूकर आशीर्वाद लेती है, उन्हें चाय भी देती है, उनसे खूब बातें भी करती है। जेठ जी भी दिया को अपनी छोटी बहन की तरह ही प्यार करते हैं।
और हां, कोई अनिष्ट भी नही हुआ बल्कि आपसी बातचीत से रिश्ते और भी गहरे हो गए हैं।
मूल चित्र : Still from serial Mehendi Hai Rachne Waali, YouTube
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