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क्यों उस बेटी को बार बार यह महसूस कराया जाता है कि वह कुछ भी कर ले, उसकी तुलना हमेशा एक बेटे के साथ करी जाएगी? वो बेटा नहीं, बेटी है आपकी...
क्यों उस बेटी को बार बार यह महसूस कराया जाता है कि वह कुछ भी कर ले, उसकी तुलना हमेशा एक बेटे के साथ करी जाएगी? वो बेटा नहीं, बेटी है आपकी…
“ये हमारी बेटी नहीं बेटा है बेटा” – ये वाक्य हम सब ने कई बार सुना है बहुत से अभिभावकों के मुंह से। एक गर्व तो होता है उनके चेहरों पे। पर कुछ तो ऐसा होता है कि मैं जब जब ये सुनती हूं, मैं असहज हो जाती हूं।
कुछ तो ऐसा होता है उस सन्देश में, उस गर्व में जो मेरे दिल में खुशी से ज्यादा एक दर्द का एहसास देता है।
बहुत सोचा पर दिल का वह भारीपन नहीं गया। अपने आप से पूछा कि क्या मुझे किसी के गर्व से, किसी की उपलब्धियों से जलन है? ये बात मुझे अस्वीकार है, पर अपने विचारों को बहुत खंगाला। यह जानने के लिए की क्या यह मेरा अहम है कि कुछ और।
आज इतने सालों बाद कुछ समझ में आया है, जो मैं आप सब के सामने कुछ सवालों के रूप में रखना चाहती हूँ।
क्या जब अभिभावक यह कहते हैं कि यह हमारी बेटी नहीं बेटा है बेटा तो क्या वह दुनिया को इस बात का संकेत नहीं दे रहे हैं कि वह अपना जीवन एक कमी के साथ बिता रहे हैं। उन्हें एक बेटे की इच्छा थी पर वह एक बेटी से गुजारा कर रहे हैं जो एक-आध मौकों पे उन्हें गर्व का अहसास दिलाती है।
जब वह कहते हैं कि हमारी बेटी तो बेटों की तरह हमारी सेवा करती है तो इस बात की उन्हें कैसे गारंटी होती है कि अगर उनका बेटा होता तो वह ऐसे ही सेवा करता? करता भी के नहीं इस बात की भी कोई गारंटी नहीं।
क्यों वह अपनी बेटी को बेटी की तरह स्विकार नहीं कर पाते?
क्यों उस बेटी की उपलब्धियों को, उसकी सेवा भाव को एक ऐसे इंसान से तोलते हैं जो वहां है ही नहीं और शायद होगा भी नहीं?
क्यों उस बेटी को बार बार यह महसूस कराया जाता है कि वह चाहे कुछ भी कर ले, उसकी तुलना हमेशा एक बेटे के साथ ही करी जाएगी, जैसे बस एक बेटा ही होता है जो हर काम का एक श्रेष्ठ मापदंड रख सकता है।
क्यों नहीं वह गर्व से कह सकते कि यह हमारी बेटी है, हमारी बेटी हमारा नाम ऊंचा कर रही है, हमारी बेटी हमारी बहुत सेवा करती है, हमारा बहुत ख्याल रखती है।
यह कहना इतना भी कठिन नहीं है। बेटी के किए हुए हर काम को, उसकी सेवा को मान ही तो मिलेगा । इतने सम्मान पर, इतनी मान्यता पर तो उसे भी हक है।
यह उम्मीद रखना अतिशयोक्ति होगी जब कोई अभिभावक यह कहें कि उनका बेटा बिल्कुल एक बेटी की तरह उनका ख्याल रखता है, बिल्कुल एक बेटी की तरह उनसे प्यार करता है, उनकी सेवा करता है, पर यह उम्मीद रखना कुछ ज्यादा नहीं कि एक बेटी को बेटी ही माने, उसे वैसे ही स्वीकार करें?
मेरी आज तक की असहजता का कारण तो मुझे समझ आ गया पर विचार धारा कब बदलेगी, उसे सोच कर मेरे मन की असहजता थोड़ी और बढ़ गई है। आशा करती हूं कि ये विचारधारा जल्दी बदलेगी।
मूल चित्र : Sadman Chaudury from Pexels, via Canva Pro
Ruchi is a new person who has dared to break all walls of monotony in life, a dreamer, a learner and likes to derive inspiration in all situations she is into. Recently plunged into a read more...
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