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उस बुजुर्ग महिला ने कृष्णा को कुछ कपड़े ला कर दिए जिन्हें पहनकर मानो कृष्णा को ऐसा लगा कि उसके अच्छे कपड़े पहनने का सपना आज पूरा हो गया।
कृष्णा एक छोटे से कस्बे में रहने वाली लड़की, जिसकी आंखों में कई लाखों सपने रोज उगते और रोज है उनके पंख काट दिए जाते।
आज अचानक कृष्णा की माँ घर का सामान जल्दी-जल्दी बोरे में भरकर पैक कर रही थी। कृष्णा पास की झोपड़ी में बच्चों के साथ खेल रही थी और उसे बार-बार माँ की पुकार सुनाई पड़ रही थी, “कृष्णा कहाँ हो जल्दी आओ।”
दौड़ती हुई कृष्णा जैसे ही अपनी झोपड़ी में पहुंची माँ को इस तरह से समान बोरे में भरते हुए देख कर बोली, “यह क्या माँ हम फिर क्या यह घर छोड़ कर जा रहे हैं?”
कृष्णा की बात का सही सही उत्तर ना देते हुए माँ ने कहा, “जल्दी से तुम भी मेरी मदद करो और हमें एक घंटे के अंदर यहां से निकलना है।”
हताश कृष्णा समझ गई कि फिर बाबा ने कुछ गड़बड़ी कर दी है और हमें यह घर छोड़कर जाना पड़ेगा।
फिर नई जगह, नए लोग, यह सोचते हुए कृष्णा अपनी माँ की मदद में लग गई।
कुछ ही मिनट बाद दोनों एक टेंपो में बैठकर शहर की तरफ निकल पड़े।
रास्ते में कृष्णा ने माँ से पूछा, “माँ, और बच्चों की तरह हमारा एक स्थाई घर क्यों नहीं है?”
उसकी माँ ने अपनी बेटी के सर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा मैं, तुम्हारे बाबा, यहां तक कि तुम, हम सब फुटपाथ पर ही पैदा हुए और फुटपाथ पर ही मर जाएँगे, हम लोग इतने किस्मत वाले नहीं कि हमारा कोई अपना एक घर हो।”
कुछ घंटों बाद, शहर की सीमा के पास टेंपो वाले ने दोनों को उतार दिया जहां पहले से कृष्णा के पिता जी खड़े थे। कृष्णा को प्यार करते हुए वह बोले, “कृष्णा मैं तुम्हें एक बड़ी सी कोठी में छोड़ कर आ रहा हूँ। क्योंकि उस कोठी की मालकिन को 24 घंटे के लिए एक 13 से 15 साल की लड़की की जरूरत है, वह हमें अच्छा पैसा भी देंगी, तुम्हें अच्छे कपड़े के साथ भरपेट खाने-पीने को भी मिलेगा।”
“पर बाबा मैं तो आप लोगों के साथ रहूंगी ना”, बड़ी मासूमियत से कृष्णा अपने पिताजी की तरफ देखने लगी।
बेबस माँ-बाप दोनों एक दूसरे को देखते हुए बोले, “बेटा तुम्हारी नौकरी के चक्कर में ही हम अपनी पहली जगह छोड़ कर आए हैं। जैसे ही हम दोनों में से किसी को अच्छा काम मिल जाएगा हम तुम्हें कोठी से ले आएंगे। चलो देर मत करो मैं तुम्हें वहां छोड़ देता हूँ। फिर हम दोनों अपने लिए कोई ठिकाना ढूंढें।”
कृष्णा बहुत कुछ कहना चाहती थी लेकिन कुछ नहीं कह पाई और चुपचाप से अपने माँ -बाबा के साथ चलने लगी।
जैसे-जैसे कृष्णा कदम बढ़ाती वह अपने एक-एक सपने को याद करती, वह बस में बैठकर अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने जाना चाहती थी, पैरों में घुंघरू बांध कर नाचना चाहती थी, अपने जन्मदिन में बड़ा सा केक काटना चाहती थी, साफ-सुथरे सुंदर कपड़े पहनना चाहती थी, पैरों पर अच्छे-अच्छे जूते पहन वह भी इठलाना चाहती थी। एक आम लड़की की तरह वह अपने जीवन जीना चाहती थी। लेकिन गरीबी के कारण यह आधारभूत इच्छाएं भी उस के लिए सपने जैसी थी।
यह सब सोचते-सोचते वह कब उस कोठी के दरवाजे पर पहुंच गए जहां उसके पिताजी उसे छोड़कर कुछ देर में चले जाएंगे, उसे पता नहीं था।
दरवाजे से एक गोरी-सुंदर सी, अच्छे कपड़े पहने हुए एक महिला निकली उसे देखकर कृष्णा को ऐसा लगा मानो कोई परी आकर खड़ी हो गई हो।
कृष्णा को देखते हुए उस महिला ने कहा, “बाबूराम यह है तुम्हारी लड़की।”
“हाँ जी मालकिन यही है मेरी लड़की आज से यह आपकी हुई”, कृष्णा के पिता जी ने कहा।
“यह सारा काम कर लेगी? यह तो मुझे बहुत छोटी लग रही है।” उस महिला ने कहा।
बाबूराम ने अपने दोनों हाथ जोड़कर उस महिला से कहा, “हम बेचारे गरीब लोग हैं हमारे बच्चें उम्र से छोटे ही लगते हैं ,आपके साथ रहेगी तो इसकी सेहत भी बनेगी और ये सारे काम भी सीख लेगी आप निश्चिंत रहिए।”
फिर उस महिला ने अपने हाथ में पकड़े बटुवे से कुछ नोट निकालकर बाबूराम को दिए और कहा, “मैं इसे 15 दिन तक अपने पास रख कर देखती हूँ। अगर काम सीखकर अच्छी तरीके से करने लगेगी तो बाकी का पेमेंट तुम बाद में ले जाना वरना इसे तुम वापस ले जाना।”
हाँ में सिर हिलाते हुए बाबूराम अपनी बेटी को वहीं छोड़कर चला गया। कृष्णा को यह एहसास हो गया था कि उसके सपने अब झाड़ू पोंछे में सिमट के रह जाएंगे।
उस महिला ने एक बुजुर्ग औरत को बुलाकर कहा, “अम्मा इस लड़की को अच्छे से नहला धुला कर टिन्नी की अलमारी से कुछ साफ कपड़े दे दो, और इसे कुछ खिला-पिला भी दो, कल से इसे अपने साथ काम में लगा कर काम सिखाने लग जाना।”
बुजुर्ग महिला कृष्णा को आउटहाउस की ओर ले गई और उसे नहाने के लिए पानी और साबुन आदि देकर उसके लिए टिन्नी बेबी के पुराने कपड़े लाने चली गई।
“इतना बड़ा घर और नहाने के लिए भी अलग से कमरा, लगता है यह लोग कोई राजा महाराजा है”, कृष्णा बड़ी सी कोठी देखकर अपने आप बोलते हुए नहाने चली गई।
किसी के उतरन किसी के लिए नई से भी अधिक मूल्यवान वस्तु बन गई। उतरण कपड़ों ने कुछ घंटे पहले आये कृष्णा के मन के भावों को धो दिया। और उसे लगा कि वह स्वप्नलोक में आ गई है जहा सब बहुत सुंदर है।
अच्छी साफ-सुथरी प्लेट पर फिर उस बुजुर्ग महिला ने कृष्णा को खाने के लिए कुछ खाद्य पदार्थ दिए, कृष्णा ने उनमें से कुछ चीजें तो कभी खाई भी नहीं थी, वह यह सोचने लगी कि आज उसका अच्छा खाना खाने का भी सपना पूरा हो गया।
धीरे-धीरे शाम से रात हो गई और रात को फिर से कृष्णा को खाने के लिए खाना मिला और साथ ही एक कमरे में गद्दा, तकिया, चादर आदि सोने के लिए दिया गया।
जो लड़की आज तक नंगे फर्श में सोई हो उसे गुदगुदा गद्दा, तकिया, चादर सोने के लिए मिल गया हो ,मानो उस के सपने लगातार साकार हो रहें हों। गुदगुदे बिस्तर में कृष्णा को सोने की आदत नहीं थी उसे पूरी रात नींद नहीं आई।
सुबह होते ही बुजुर्ग महिला ने उसे उठा दिया और नहा धोकर तैयार हो जल्दी से रसोई में आने की हिदायत देकर वह चली गई। कृष्णा जो कि अपने को किसी जन्नत में समझ रही थी जल्दी से नहा धोकर तैयार होकर रसोई में जा पहुंची।
बुजुर्ग महिला गुस्से में उसकी ओर देखते हुए बोली, “इतने देर नहाने धोने में करोगी तो घर का काम कैसे निपटा पाओगी। यह लो प्याज और जल्दी-जल्दी काटो।”
नन्ही कृष्णा को समझ में नहीं आया रहा था कल तक जो उसे स्वर्ग जैसा लग रहा था आज सुबह होते ही सब बदल कैसे गया।
“तुम्हारा नाम क्या है?” वह बुजुर्ग महिला गुस्से में देखते हुए कृष्णा से बोली।
“जी कृष्णा”, कृष्णा ने कहा।
जल्दी-जल्दी करो कृष्णा अभी और सब्जियां भी काटनी है, बेबी के लिए ब्रेकफास्ट रेडी करना है उनकी स्कूल बस आने वाली होगी। कृष्णा ने जल्दी-जल्दी प्याज काट के उन्हें दिए।
कटे हुए प्याज को देखकर वह बुजुर्ग महिला बहुत जोर से कृष्णा पर चिल्लाते हुए बोली, “ऐसे प्याज कटती है क्या? सारी प्याज की ऐसी- तैसी कर दी है।”
कृष्णा सहमी हुई उस महिला की डाँट सुन रही थी।
दोबारा से महिला ने कुछ प्याज और दूसरी सब्जियां कृष्णा को पकड़ते हुए कहा, “देखो इसे ऐसे काटो, इस बार गलती मत करना और हां जल्दी काम करना।”
उबासी लेती हुई कृष्णा जल्दी-जल्दी सब्जी काटने लगी।
कुछ देर में नाश्ता तैयार हो गया उस नाश्ते को देखकर कृष्णा के मुंह में पानी आने लगा सुबह से उसने कुछ नहीं खाया था और रात में भी वह ढंग से नहीं सो पाई थी, इसलिए उसे नींद भी आ रही थी और भूख भी लग रही थी।
कुछ देर में डाइनिंग टेबल लगा दिया गया, सब घर के लोग नाश्ता करने लगे। कृष्णा की उम्र की लड़की जिसका नाम टिन्नी था, उसे यूनिफॉर्म में देखकर कृष्णा की आंखें चमक उठीं, वह उसे मुड़-मुड़ कर पीछे देखते हुए आगे चल रही थी कि अचानक वह घर की मालकिन से टकरा गई।मालकिन ने उसे सही से चलने की हिदायत देखकर, अपनी बेटी को जल्दी से ब्रेकफास्ट कर स्कूल बस पकड़ने के लिए कहा।
किचन में ढेर सारे गंदे बर्तन की ओर इशारा करते हुए बुजुर्ग महिला ने कृष्णा को जल्दी-जल्दी बर्तन धोने के लिए कहा। भूखी प्यासी कृष्णा बर्तन धोने लगी जैसे ही बर्तन धोकर, उसे लगा कि अब उसे खाने के लिए कुछ मिलेगा। उतने में ही उस बूढ़ी औरत ने कृष्णा के हाथ में झाड़ू पकड़ा दिया।
धीरे स्वर में कृष्णा ने उस महिला को कुछ खाने के लिए देने को कहा। कृष्णा की बात सुन उस महिला ने उसे पहले घर की सफाई करने के लिए बोला। घर की सफ़ाई करते-करते कृष्णा को काफी देर हो गई है और भूख के मारे कृष्णा बेहाल हो गई। अंत में जाकर कृष्णा को रात का बचा खाना खाने को दिया गया। भूखी कृष्णा ने जल्दी-जल्दी वो खाना खा लिया और वह दरवाजे पर टेक लगाकर बैठ गई और उसे कब नींद आ गई, उसे पता नहीं चला।
सपने में अच्छे कपड़े पहने हुए बारिश में भीग रही वह दोनों हाथों में उसके ढेर सारी चॉकलेट्स और टॉफी पकड़े हुए बहुत खुश नजर आ रही है। अचानक किसी की डाट की आवाज़ कृष्णा के कानों पर पड़ी और वह हड़बड़ा के उठ गई।
“नींद पूरी हो गई है तो दोपहर के खाने की तैयारी करें मैडम?” वह बुजुर्ग महिला कृष्णा से बोली।
अपनी आंखें पोछते हुए कृष्णा जल्दी से उस महिला के साथ रसोई में दोपहर के खाने की तैयारी करने लगी जैसे जैसे वह बुजुर्ग महिला कृष्णा को बोलती जाती, कृष्णा वैसे ही काम करती जाती।खाना बनाते-बनाते दोपहर हो गई और सब को खाना खिला कर फिर बर्तन साफ कर कृष्णा को भी खाना दिया गया और थोड़ी देर आराम करने के लिए उसे कमरे में भेज दिया गया।
कृष्णा को अब गुदगुदा गद्दा भी कांटों के समान लग रहा था, कल तक जो घर उसे महल जैसा प्रतीत हो रहा था ,आज उसे उस महल से भागकर वापस अपनी झोपड़ी में जाने का मन कर रहा था।
इस तरह से कृष्णा के 15 दिन पूरे हो गए। ठीक 15 दिन के बाद कृष्णा के पिताजी कृष्णा की मालकिन के पास आए। कृष्णा की मालकिन कृष्णा के काम से खुश थी अतः उन्होंने बाकी बचे हुए पैसे कृष्णा के पिता जी को दे दिया और कृष्णा को अपने वहाँ काम के लिए रख लिया। कृष्णा अपने पिताजी से मिलना चाहती थी लेकिन उसे उसके पिताजी से मिलने नहीं दिया गया।
कृष्णा रोज टिन्नी को यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल जाते देखती, उसकी पसंद का अच्छा-अच्छा खाना बनाते देखती, उसे लैपटॉप, मोबाइल और सुंदर सुंदर खिलौनों से खेलते देखती, शाम को उसे डांस सीखते देखती और रात में अपने प्रिय कृष्ण से यही पूछते कि मैंने ऐसी क्या गलती कर दी थी जो मुझे इन सब चीजों से तुमने वंचित रखा।
रोज़ सुबह कृष्णा की वही घिसी पिटी दिनचर्या शुरू हो जाती और रोज रात को फिर कृष्णा अपने कृष्ण से शिकायत कर सो जाती। कृष्णा भी टिन्नी की तरह स्कूल जाना चाहती खेलना चाहती, पढ़ना चाहती और नाचना चाहती थी। और उसकी यह सब इच्छाएं एक सपना बनकर रह गई।
माता-पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण, इस बड़े से घर में काम कर, माँ-बाबा का पेट भरने के लिए अपने सपनों को घर के कोने में बैठ रोज आंसुओं और अपने कृष्ण से शिकायत के रूप में रो कर निकाल देती और जल्दी ही वह अपनी यथार्थ स्थिति को स्वीकारते हुए, कोरे सपने को आँख का पानी बना कर जीने की कला सीखने लगी।
मूल चित्र: Samsung Technical School Ad, YouTube(for representational purpose only)
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