कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

माँजी, काश आप मेरे बेटे को इतना न बिगाड़तीं…

“जाने दो ना बहु, पढ़ लेगा बाद में और अगर तीन घंटे दोस्तों के साथ घूम लेगा तो क्या बिगड़ जायेगा? जब देखो मेरे पोते के पीछे पड़ी रहती हो?” 

“जाने दो ना बहु, पढ़ लेगा बाद में और अगर तीन घंटे दोस्तों के साथ घूम लेगा तो क्या बिगड़ जायेगा? जब देखो मेरे पोते के पीछे पड़ी रहती हो?” 

“माँ, प्लीज माँ जाने दो ना बस एक मूवी की बात तो है।” वरुण ने अपनी माँ से मिनत की। 

“नहीं वरुण बिलकुल भी नहीं। पहली बात तो अभी तुम सिर्फ चौदह साल के हो इतनी छोटी उम्र में दोस्तों के साथ फ़िल्म देखने जाना मुझे बिलकुल पसंद नहीं और फिर आज ही स्कूल से नोटिस भी आया है एग्जाम पास आ रहे है, पढ़ाई करो।” नीता ने नाराज़ हो अपने बेटे वरुण को डांटा। 

“जाने दो ना बहु, बच्चा ही तो है पढ़ लेगा बाद में और अगर तीन घंटे दोस्तों के साथ घूम लेगा तो क्या बिगड़ जायेगा? जब देखो मेरे पोते के पीछे पड़ी रहती हो?” 

सासूमाँ नाराज़ हो उठी तो नीता के पास चुप रहने के सिवाय कोई चारा नहीं रह गया। जानती थी अगर बहस की भी तो जीत उनकी ही होगी और नीता की शिकायते अपने बेटे और नीता के पति अलोक को बढ़ा चढ़ा के बताई जाएगी और घर का माहौल ख़राब होगा। 

वरुण, नीता और अलोक का इकलौता बेटा था, जो शादी के सात साल बाद ढेरों मन्नतों और ईलाज के बाद हुआ था। पोते के जन्म से सासूमाँ बहुत ख़ुश थी और वरुण को बहुत प्यार करती। दादी का अत्यधिक दुलार पा वरुण को बिगाड़ने लगा था। 

अलोक की नौकरी बैंक की थी और हर तीन सालों में तबादला होता रहता था। वरुण जब नौवीं क्लास में आया तो वरुण की पढ़ाई ख़राब ना हो इस डर से अलोक इस बार परिवार को साथ नहीं ले गया। जब तक अलोक साथ थे वरुण पिता की छाया में कुछ अनुशासन में था लेकिन अलोक के दूसरे शहर जाते ही अपनी मनमानी करने लगा, जिसमें उसकी दादी भी पूरा साथ देती। 

स्कूल से आये दिन शिकायते आने लगी थी। ट्यूशन के बहाने वरुण देर तक बाहर रहता और दोस्तों के साथ घूमता रहता। रूपये पैसे की दिक्कत होती नहीं थी दादी की पेंशन जो थी और दादी की नज़रो में तो उनका लाडला पढ़ाई और किताबों के लिये पैसे लेता था। और जब नीता आपत्ति करती तो माँजी नाराज़ हो खाना पीना छोड़ने की धमकी देने लगती। 

अपने बेटे के बिगड़ते कदम और भविष्य की चिंता नीता को खाये जा रही थी। दादी की शह पा आज भी वरुण निकल गया अपने दोस्तों के साथ मूवी देखने। 

शाम से रात ढल गई लेकिन वरुण का कोई आता पता नहीं था। 

“माँजी वरुण नहीं आया अब तक?” परेशान हो नीता ने अपनी सास को कहा। 

“हाँ बहु चिंता तो अब मुझे भी हो रही है। एक काम कर उसके दोस्तों को फ़ोन मिला।” 

एक एक कर नीता ने वरुण के सारे दोस्तों को फ़ोन मिला लिया, किसी को वरुण के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। अब दोनों सास बहु अनजाने भय से काँप उठी। 

“अलोक को फ़ोन करूँ माँजी?”

“नहीं बहु थोड़ी देर इंतजार कर लेते है आता ही होगा वरुण। अलोक घर से दूर है घबरा उठेगा।” 

इंतजार की घड़ी लंबी होती जा रही थी, तभी देर रात एक पुलिस वाले का कॉल आया। उसने जो बताया वो सुन नीता बेसुध सी होने लगी लेकिन एक ही पल माँजी और वरुण का ख्याल कर हिम्मत बटोरी और माँजी को ले चल पड़ी अस्पताल की ओर। 

पुलिस वाले ने बताया की खाली सड़क पे दोस्तों के साथ तेज़ बाइक दौड़ा रहा था वरुण जब बाइक फिसल कर डिवाइडर से टकरा गई। लहू-लुहान वरुण को देख उसके दोस्त बुरी तरह डर गए और वहीं सड़क पे तड़पता छोड़ भाग खड़े हुए और जब नीता ने सबसे पूछा की वरुण कहाँ है तो सब अनजान बन चुप्पी साध लिये। वो तो गनीमत थी की पुलिस की गस्ती गाड़ी ने वरुण को देख कर तुरंत अस्पताल पहुँचा दिया था। 

बदहवास सी हालत में नीता और माँजी अस्पताल पहुँचे पता चला वरुण का ऑपरेशन चल रहा था। पूरे दो घंटे चले ऑपरेशन के बाद भी डॉक्टर ने साफ साफ कह दिया, “सर में चोट लगी है वरुण के अगले चौबीस घंटो में होश ना आया तो वरुण नहीं बचेगा।” 

वरुण की ख़बर सुन अलोक भी अगले दिन आ गया।अपने इकलौते बेटे को अस्पताल के बिस्तर पे बेसुध पड़ा देख अलोक बिलख पड़े, अब तक सब्र बना रही नीता भी अलोक को देख टूट गई।

अपने बच्चे का दुःख किसी भी माता पिता के लिये सबसे बड़ा दुःख होता है, इसी दुःख से आज अलोक और नीता गुजर रहे थे। वहीं अलोक की माँ कोने में बैठी अपनी गलती पे ज़ार ज़ार पछता रही थी की आखिर क्यों नहीं नीता की बात मानी उन्होंने? आखिर क्यों वरुण की हर मनमानी को उन्होंने हाँ किया? आखिर क्यों पोते के मोह में उसका भला बुरा ना देख पायी और वरुण की गलतियों को ना नहीं कहा? लेकिन अब कर भी क्या सकती थी माँजी और बस वरुण के ठीक होने की प्रार्थना किये जा रही थी।

इंतजार की रात बेहद लंबी थी लेकिन हर रात की सुबह होती ही है और अलोक और नीता के जीवन में भी ये दिन आया। वरुण को होश आ गया डॉक्टर की निगरानी में अगले कुछ महीने अस्पताल में रहने के बाद स्वस्थ हो वरुण को छुट्टी भी मिल गई। होश में आया वरुण अपने माँ, पापा और दादी के बदहवास चेहरे देख बहुत पछताता। 

“दूध पी लेना वरुण और ये बादाम नहीं खाया अभी तक।” माँ की आवाज़ सुन पछतावे में जलता वरुण अपनी माँ से लिपट रो पड़ा और माफ़ी मांगने लगा। 

“मुझे माफ़ कर दो माँ मैंने आपकी बात नहीं मानी, आपसे झूठ बोल दोस्तों के साथ घूमता रहता था और वहीं दोस्त मुझे मरने सड़क पे छोड़ चले गए थे।” 

वरुण को यूँ रोता देख नीता भी भावुक हो उठी, “जब जागो तभी सवेरा होता है वरुण, तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया इससे बड़ क्या बात होगी बेटा।”

दोनों माँ बेटे गले लग रो पड़े और दरवाजे पे खड़े अलोक और उसकी माँ की भी ऑंखें ये दृश्य देख भर आयी। 

आज नीता, अलोक और माँजी को तो उनका लाडला वरुण वापस मिल गया था लेकिन जाने कितने वरुण ऐसे होंगे जो अपने घर वापस ही नहीं जा पाये होंगे और हर रोज़ अपने बच्चे को याद कर उनके माता पिता पछताते होंगे की क्यों नहीं रोका अपने बच्चे के बहकते क़दमों को? आखिर क्यों अपने बच्चे की हर नाजायज ज़िद को ना कहना जरुरी नहीं समझा। 


मूल चित्र: Marathe Jewellers/Creative Ads, YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

174 Posts | 3,907,596 Views
All Categories