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कह लो उसको चाहे उपहार या फिर कह लो दहेज, मत करो जेब ख़ाली सच यही है, मत करो ख्वाहिशें पूरी इसकी, बिन पैसे कैसे ब्याही जाएगी।
बचपन से सुनती आयी हूँ, मैं पापा की लाड़ली, हमेशा पराया धन ही कहलायी हूँ। सबके ज़ुबान से, यही बचपन से सुनती आयी हूँ। बुआ कहती पापा से, थोड़ा तो जोड़ लो, लड़की की शादी कैसे करोगे।
मासी कहती माँ से, कुछ तो बचा कर चलो, एक साथ कैसे कर पाओगी। मामी चाची बुआ मौसी, सबको बस यही चिंता सताई है, घर में बेटी जो आयी है। मत करो ख्वाहिशें पूरी इसकी, बिन पैसे कैसे ब्याही जाएगी।
थोड़ा कम पढ़ लेगी तो क्या, पर बिन पैसे अच्छा रिश्ता कैसे पाएगी। “बेटी तुम्हारी बन जाए चाहे कलेक्टर, दूल्हे की क़ीमत तो फिर भी लगायी जाएगी” अगर नहीं निभाओगे दुनिया के रीति रिवाज, तो बिटिया अच्छा घर कैसे पाएगी।
थोड़ा बहुत तो करना ही पड़ता है, कर लोगे अगर जेब पहले ही ख़ाली, तो बिटिया पर हल्दी कैसे लग पाएगी। बिन मेहंदी क्या तेरी बिटिया ख़ुश रह पाएगी? तेरे आँगन की गुड़िया, किसी की दुल्हन कैसे बन पाएगी।
बेटियाँ तो पराया धन है, कब तक घर पर रख पाओगे। पढ़ी लिखी हो या अनपढ़, एक ना एक दिन ब्याही तो जाएगी। तो फिर उस दिन दूल्हे की क़ीमत भी लगायी जाएगी।
कह लो उसको चाहे उपहार या फिर कह लो दहेज, मत करो जेब ख़ाली सच यही है। बिन पैसे बेटी ना ब्याही जाएगी। बेटी ना ब्याही जाएगी।
मूल चित्र: BIBA Via Youtube
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