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डॉक्टर मानने को भगवान स्वरूप होते है। हमने कई बार अनुभव किया है जब डॉक्टर जीवन दाता बने और निराशाजनक रोगियों के जीवन में जीजिविषा जागृत की।
पूरे विश्व में बहुत से छात्र डॉक्टर बनने का सपना देखते हैं लेकिन कुछ ही अपने सपने को सच होते हुए देखते हैं। अपने सपने के पेशे में आने के बाद, इस पेशे की नैतिकता का पालन करना पूर्ववत आवश्यक है। हाँ, सभी इसके पालन में सफल हो यह जरुरी नही।
हर साल, कितने ही छात्र मेडिकल या इंजीनियरिंग के पेशे के लिए मेडिकल और नॉन-मेडिकल की प्रवेश परीक्षा देते हैं। लगभग 17 या 18 साल की उम्र में, छात्र इन विकल्पों के लिए प्रयास करते हैं। मेडिकल साइंस हर किसी के लिए आसान नहीं है। वे इस स्तर तक पहुंचने के लिए घंटों की विधिवत् मेहनत और तैयारी करते हैं।
ये विषय मनुष्यों के जीवन से संबंधित है, इसलिए इसमें जीवन के जोखिम कारक भी अधिक हैं। तभी डाक्टरर्स के मरीज़ के लिए प्रयास, उसे दूसरा जीवन देने के समान होते हैं।
अन्य छात्रों की तरह, मैडिकल के छात्र अन्य सामाजिक गतिविधियों के लिए अधिक समय नहीं दे सकते हैं, उनके पास टाईम पास वाला समय नही होता है। क्योंकि उनकी जिम्मेदारियां अधिक हैं और उनके लिए समय की मांग अधिक है।
चिकित्सा के पेशे में होना भी भगवान के आशीर्वाद के समान है, लेकिन कुछ ही डॉक्टर्स हैं जो इस पेशे के साथ न्याय भी कर पाते हैं और बहुत कम ही ऐसे हैं जो मानवता को जीवित रखने के साथ सफलता से आगे बढ़ते हैं। परन्तु समर्पित डाक्टर्स की स्वस्थ्य समाज में भूमिका को सम्मानित करना सभी का फर्ज है।
भारत में 1 जुलाई को डाक्टरों के लिए समर्पित किया गया है। इसे भारत के ‘भारत रत्न’ से सम्मानित डॉ. बिधान चंद्र रॉय के जन्म के उपलक्ष्य में चिकित्सक दिवस के रुप में विभिन्न गतिविधियों द्वारा मनाया जाता है।
अपनी बुद्धि के स्तर के साथ, डाक्टर्स किसी भी अन्य पेशे में अधिक नाम, प्रसिद्धि और पैसा कमा सकते हैं। लेकिन अपनी पूरी प्रतिबद्धता और उत्साह के साथ जब वे अपने पेशे के प्रति निष्ठावान रहते हैं तब उनका समर्पण उन्हें भगवान के समकक्ष बनाता है।
हमने इसे कई बार अनुभव किया है जब डॉक्टर जीवन दाता बने और निराशाजनक रोगियों के जीवन में जीजिविषा जागृत की।
जब वे दूसरे के बच्चे को बचाने के लिए अपने ही पीड़ित बच्चे को छोड़ कर चले गए, जब वे काम से एक दिन भी आराम नहीं कर सकते थे, जब उन्होंने किसी और के माता-पिता या परिवार के सदस्यों को बचाने के लिए अपने प्रियजनों की भी परवाह नही की।
उनके व्यक्तित्व और आत्मा में मानवता के ऐसे स्तर का अतिरिक्त स्पर्श उन्हें अद्भूत बना देता है। उनके प्रयासों को पहचानना और उनकी सराहना करना निश्चित रूप से उनके लिए एक सर्वोत्तम आभार है।
डॉक्टरों के कार्यों के कई अनुकरणीय उदाहरण और भी हैं- जो नौ घंटे या उससे अधिक समय तक लगातार ऑपरेशन करते हैं बिना अपनी तकलीफो की परवाह के। एक बार ऑपरेशन के दौरान एक डॉक्टर की गर्दन अकड़ गई और ऑपरेशन पूरा करने के लिए बिना रुके अपने साथी डॉक्टर से गर्दन के पीछे दर्द निवारक इंजेक्शन देने के लिए कहना पड़ा। अंत में, उन्हे ऑपरेशन में सफलता मिली।
ऐसे ही कई मानवता की मिसाल कोविड के समय दुनियां भर के डाक्टर्स ने पेश की। कोविड 19 और पूरी मानव जाति के बीच की वाल आफ सिक्योरिटी बन कार्यरत रहे हैं डॉक्टर्स।
हम सभी ने उन्हें निरन्तर अथक संघर्ष करते देखा है। इस तरह की विशाल चुनौतियों से उनके लिए भी नई थी और लगातार आ रही हैं पर पूरा विश्व देख रहा है।
किसी भी देश में एक भी डॉक्टर COVID -19 के बढ़ते खतरे से डरा नहीं बल्कि वह सामना करने के लिए अडिग रहा। डॉक्टरों के लिए संसाधन पर्याप्त नही थे, लगातार पीपी ई किट में रहना, घन्टो काम की थकान, परिवार से दूरी महिनों से दूरी, संसाधनों की कमी, नियमित रूप से गंभीर रोगियों का ईलाज करना और COVID -19 मामलों के अधिकता के अलावा वायरस से लड़ते हुए, अस्पतालों को वास्तविक युद्ध क्षेत्रों में बदल दिया है। उनके मानसिक,शारीरिक कष्टों की परिकल्पना से हर कोई भी सिहर जाए।
उन्होंने किसी से स्वेच्छिक अनुदान या दान नहीं मांगा, हमसे हमारे स्वास्थ्य का ध्यान और हमारी सुरक्षा मांगी जो कि डाक्टरों का परम ध्येय है। स्वास्थ्य के प्रति हमारे स्वयं के प्रयास समाज की भलाई की तरफ स्वयं सिद्ध कदम है।
इस स्तर की प्रतिबद्धता डॉक्टरों को पृथ्वी का भगवान बनाती है।वही आम इन्सान का फर्ज सावधानीपूर्वक रहने और अपना बचाव करने में है,यही डाक्टरों के प्रति आभार भी है।
मूल चित्र: JK cement via Youtube
Pen woman who weaves words into expressions. Doctorate in Mass Communication. Media Educator Blogger ,Media Literacy and Digital Safety Mentor. read more...
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