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ये घर तेरा था और हमेशा तेरा ही रहेगा…

मैं तीन महीने की हो चली थी और माँ की आवाज़ पहचान कर खिलखिलाने लगी थी, जब मैंने अपने पिता के प्रथम स्पर्श को पाया।

एक महीने पहले उनके अचानक चले जाने के बाद से मेरी हर एक सांस कहती है, “पापा, आपकी परी आपके बिना कैसे जिएगी?” 

प्रथम बार कब देखा था मैंने आपको! बहुत जोर लगाने पर भी मेरी स्मृति मुझे धोखा दे जाती है। लेकिन आपने मुझे मेरे जन्म के तीन महीने बाद पहली बार देखा था, ये मुझे माँ ने बताया था।

नहीं जानती आपने जब पहली बार मुझे देखा था, आपकी आंखों में कैसे भाव थे पर सच हैं कि वो आंसुओं से धुंधलाए हुए होंगे। अपने बच्चे को पहली बार देखने के लिए तीन महीने का लंबा इंतजार, कम तो नहीं होता।

माँ के गर्भ धारण करते ही दादी माँ को पोते की चाहत होने लगी, साथ ही भय की पोती ने हो जाए। इस भय ने पूजा पाठ करने वाली मेरी दादी से गर्भपात जैसा जघन्य पाप करवाना चाहा। उस समय मेरे पिता ने मजबूत इच्छाशक्ति से दादी को रोका और कहा, “बेटा हो या बेटी मेरे लिए वो सिर्फ मेरी संतान हैं और उसकी परवरिश में कोई कमी नहीं होगी।”

गर्भावस्था के आखिरी दिनों में माँ को मायके भेज दिया गया। मेरे जन्म के बाद मुझे आशीर्वाद देने दादी, चाचा, बुआ सब आए लेकिन मेरे पिता को येन-केन प्रकणेन जाने से रोक दिया गया।

मैं तीन महीने की हो चली थी और माँ की आवाज़ पहचान कर खिलखिलाने लगी थी, जब मैंने अपने पिता के प्रथम स्पर्श को पाया। दादी की हर बात पर शिरोधार्य करने वाले मेरे पिता मुझे गोद में ना लेने के उनके फरमान को मूक शब्दों में खारिज कर चुके थे और मैं पापा की परी जब तक उनकी गोद में न जाऊं तब तक तुनकती रहती थी। धीरे-धीरे दादी ने हथियार डाल दिए, लेकिन कब तक?

उनका अगला दांव था कि शहर के महंगे और नामी स्कूल में पढ़ाने की क्या जरूरत है लेकिन यहां भी उनकी एक ना चली। पापा फ़ार्म ले आए, माँ ने खूब तैयारी करवाई और मैं एडमिशन टेस्ट में फर्स्ट आयी।

ये लड़ाई मेरे पिता जीत चुके थे और मैं उनकी उपलब्धि बन चुकी थी। दधिचि की तरह अपनी अस्थि-मज्जा का त्याग कर मेरे पिता सिर्फ मेरी जीत देखना चाहते थे। इसके अलावा शायद ही उनका कोई सपना रहा हो।

अनुशासन प्रिय मेरे पिता ने मुझे सिखाया कि आज़ादी के साथ जवाबदेही भी जरूरी है। आत्मनिर्भरता सिर्फ आर्थिक नहीं होती। आत्मविश्वास और स्वाभिमान आत्मनिर्भरता के पैमाने है। मेरे पिता के सहयोग का फल है कि मैं दुरूह मान्य-अमान्य सीमाओं को लांघना और अपने लक्ष्य को भेदकर अपना मुकाम बनाना सीख चुकी हूँ।

मेरे पिता ने मुझे समझाया की शिक्षा का अर्थ सिर्फ डिग्री का पुलिंदा बढ़ाना और पैसे कमाने की कसौटी नहीं है, “समझ, बुद्धि और कौशल के उत्थान के लिए शिक्षा आवश्यक है। शिक्षा हमें आत्मसम्मान से जीना सिखाती है।”

जिंदगी मनमुताबिक चल रही थी कि कॉलेज के फाइनल ईयर में मेरे लिए रिश्ता आया। मेरे ससुर जी को सपाट शब्दों में कहा गया कि फाइनल एग्जाम से पहले कोई बात नहीं की जाएगी। एग्जाम रिजल्ट निकलने के बाद पापा ने अपनी शर्तें मेरे ससुराल वालों को बताई कि मेरी पढ़ाई नहीं रूकेगी, नौकरी करने में कोई रोक टोक नहीं होगी। तभी हम रिश्ते को हाँ कहेंगे। उनके हामी भरने के बाद रिश्ता पक्का हुआ।

विदाई की वो शाम मैं कभी नहीं भूलूंगी जब पापा ने मेरे हाथों को थामकर कहा कि, “ये घर तेरा था और तेरा ही रहेगा।”

शादी के सालों बाद तक मेरी पढ़ाई, हर एक डिग्री, नौकरी, लेखन मेरे पिता के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए काफी थे। एक महीने पहले उनके अचानक चले जाने के बाद से मेरी हर एक सांस कहती हैं पापा, आपकी परी आपके बिना कैसे जिएगी? अपनी उपलब्धियां अब किसे सुनाएगी?

मेरे पिता

जब भी मैं कोई कविता पढ़ती हूँ, पुरूष वर्चस्व की,

पिता के तालीबानी शासन की,

ठीक उसी समय मुझे, मेरे पिता याद आते हैं।

जब भी मैं पढ़ती हूँ किसी लेखिका की कातर रूदन,

पिता के अवहेलना, मुझे याद आते है मेरे पिता,

साइकिल सिखाता वो हाथ,

शायद ऐसे ही चलना सिखाया होगा आपने, और ऐसे ही आगे बढ़ना भी।

जब भी मैं पढ़ती हूं किसी कवियित्री की घुटी हुई लेखनी से रचित छंद,

पिता के लगाए बंदिशों की व्यथा,

मुझे याद आते हैं मेरे पिता।

सिर्फ पढ़ने की इजाजत नहीं, आजादी का एहसास दिलाया।

भाई से न तो कम न ज्यादा, बराबरी का दर्जा दिया।

आश्चर्य में रह जाती थी पड़ोस की चाची, मामी, ताई,

जब देखती थी मेरे सिर पर तेल लगाते हैं मेरे पिता,

उस उम्र में जब पिता पुत्री के रिश्ते पर भी,

पुरूष स्त्री का भेद करने लगता है समाज।

पर आप पिता बने रहें सिर्फ पिता,

नहीं सुनी आपने उनकी खोखली बातें।

जब भी मैं सुनती थी, मेरी सहेलियों का मौन, 

मूक हो जाती थी मैं भी,

कि पिता के घर आने के बाद पानी देने बैठक में जाना ही उनकी ज़द में था।

सहसा मेरी आंखों में सजीव हो उठती थी हमारी बैठक,

जहां हम एक साथ टी वी देखते,

समाचार पत्र पढ़ते किसी भी विषय पर चर्चा करते थे।

उन्हें मेरी बातें परिकथा लगती थी, लेकिन वो भी जानती थी,

ये कोरी कल्पना नहीं थी, इन्हें जिया हैं मैंने।

उनके दुख में डूबे और रिक्त प्रेम के शब्द और आह सुनकर,

पापा आप मेरे हीरो बन जाते और मेरी दोस्ती के आदर्श।

मूल चित्र: Tanishqjewellery via Youtube 

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