कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
हर शादी का विज्ञापन लंबी, पतली सुंदर दुल्हन मांगता है, लेकिन अगर लड़की अपनी ऐसी माँगे रखे तो तो प्रश्न आता है एक महिला ऐसा कैसे कर सकती है?
अख़बार में हम आए दिन कई शादी के ऐड देखते है, लेकिन आम तौर सभी ऐड एक जैसे होते हैं, और हर एड की फ़ेवरेट लाइन ‘लड़का कितना कमाता है’ और ‘घरेलु, सुंदर, गोरी और पतली लड़की’।
लेकिन कुछ दिन पहले एक अख़बार की कटिंग ट्विटर पर वाइरल हुई जिसमें, ‘एक छोटे बाल और पिर्सिंग वाली एक विचारवान फ़ेमिनिस्ट अपने लिए लड़के की तलाश करते हुए लिखती है कि उन्हें एक ना पादने वाला, ना डकार लेने वाला, सुन्दर, समृद्ध ‘फ़ेमिनिस्ट’ आदमी की तलाश है। अन्य आवश्यकताएं: वह एक स्थापित व्यवसाय, बंगला या कम से कम 20 एकड़ फार्महाउस वाला और अपने माता पिया इकलौता बेटा होना चाहिए।’
बीबीसी द्वारा पता करने के बाद यह पता चला कि यह एक भाई, एक बहन और उसकी दोस्त के बीच का एक मज़ाक़ था।
विज्ञापन पर पोस्ट किए गए ईमेल के द्वारा पता चला कि विज्ञापन छपवाया था साक्षी और उनके भाई सृजन और उनकी दोस्त दमयंती ने। (यह उनके असली नाम नहीं हैं – वे नहीं चाहते कि उनकी पहचान उजागर हो।)
बीबीसी से बात करते हुए सृजन ने कहा, “विज्ञापन साक्षी के 30वें जन्मदिन के लिए खेला गया एक छोटा सा मज़ाक था।”
आगे उन्होंने कहा, “30 साल का होना एक माइलस्टोन है। खासकर हमारे समाज में शादी के इर्द-गिर्द होने वाली सभी बातचीत के कारण। जैसे ही आप 30 साल के होते हैं, आपका परिवार और समाज आप पर शादी करने और घर बसाने का दबाव बनाने लगते हैं।”
साक्षी ने कहा बताया कि उसके जन्मदिन से एक रात पहले, उसके भाई ने उसे एक पेपर स्क्रॉल उपहार में दिया था, “जब मैंने इसे अनियंत्रित किया, तो इसमें ईमेल – [email protected] – और पासवर्ड था। मुझे नहीं पता था कि मुझे इसके साथ क्या करना है। सुबह, सृजन मेरे लिए अखबार लाया, जिसका पेज वैवाहिक कॉलम के लिए खुला था और हम यह विज्ञापन देख खूब हँसे। यह एक शरारत थी।”
लेकिन दोस्तों के बीच किया गया मज़ाक़ कई लोगों ने देखा और जल्द ही यह सोशल मीडिया पर वाइरल हो गया। कई मशहूर हस्तियों ने विज्ञापन साझा किया, जैसे कमीडीयन अदिति मित्तल और अभिनेत्री ऋचा चड्ढा।
कई लोगों ने तो दिए हुए ईमेल पर जवाब भी भेजे। साक्षी ने कहा, “मुझे अब तक 60 से अधिक ईमेल प्राप्त हुए हैं। कई लोगों को लगा कि यह मजाकिया है।”
एक व्यक्ति ने यह कहते हुए लिखा कि वह उसके लिए सही आदमी है क्योंकि वह “विनम्र और बिल्कुल भी राय वाला नहीं” था।
लेकिन भारत, आज भी कहीं ना कहीं पितृसत्ता में डूबा हुआ है। यहाँ आज भी नारीवाद को अक्सर एक ख़राब शब्द माना जाता है और नारीवादियों को पुरुषों से नफरत करने वाली।
कई लोगों ने विज्ञापन के जवाब में असभ्य और अपमानजनक संदेश भी भेजे।
साक्षी को “गोल्डडिगर” और “पाखंडी” बुलाया गया क्योंकि वह “सोशल सेक्टर में काम करती है, कैपिटलिज़म विरोधी है लेकिन एक अमीर पति चाहती है” उसे “कूगर” के रूप में वर्णित किया गया क्योंकि वह 30 से अधिक उम्र की है, लेकिन एक ऐसा पुरुष चाहती है जो 25-28 का हो” और कई लोगों ने उसे “अपना पैसा कमाने” की सलाह दी।
ताजुब की बात ये है कि हमारा समाज पहली बार औरत को कह रहा है कि वो कमाए, क्यूँकि समाज के अनुसार तो औरत को आज भी घर संभलना चाहिए और पति को कमाने देना चाहिए। और उम्र? एक ऐसे समाज में जहां पे 15-16 साल की लड़कियों की शादी 30-40 साल के आदमियों से करने की प्रथा रह चुकी है, उस समाज के लोगों को तो उम्र पे कुछ नहीं ही कहना चाहिए।
कुछ ने यह भी लिखा कि यह विज्ञापन “टाक्सिक” था, और कि सुनने में लड़की मोटी लग रही और एक ने कहा “सभी फ़ेमिनिस्ट बेवकूफ हैं।” एक महिला इतनी गुस्से में थी कि उसने साक्षी को धमकी दी कि उसका भाई उसे 78वीं मंजिल से फेंक देगा। समझ नहीं आ रहा कि विज्ञापन टाक्सिक है या उसके जवाब में आई ये धमकियाँ और टिप्पणियाँ।
और यही लोग जो इस विज्ञापन को टाक्सिक कह रहे अगर इस विज्ञापन के आस पास नज़र घुमाए तो उन्हें सही मान्य के टाक्सिक विज्ञापन दिखेंगे जिनमें हर में सुंदर, गोरी, पतली जैसे शब्द हर लड़की के लिए इस्तेमाल किए गए है। क्या ये उन्हें टाक्सिक नहीं लगता?
साक्षी की दोस्त दमयंती ने बताया कि भारत में, जहां सभी विवाहों में से 90% अभी भी व्यवस्थित हैं, हर कोई एक अच्छी तरह से स्थापित दूल्हा चाहता है। लेकिन इसे जब स्पष्ट रूप से विज्ञापन में लिखा गया तो इतने सारे लोग उत्तेजित हो गए।
साक्षी ने कहा कि ऐसा लगता है कि विज्ञापन ने उनके ‘अहंकार को बहुत ठेस पहुंचाई है।’
पुरुष हर समय लंबी, पतली, सुंदर दुल्हन की मांग करते हैं, वे अपने धन के बारे में डींग मारते हैं, लेकिन जब लड़की पलट के वही चीज़ उनको बोले तो वे इसे पचा नहीं पाते। आख़िर एक महिला ऐसे मानदंड कैसे निर्धारित कर सकती है?
उन लोगों के लिए जो स्पष्ट व्यंग्य से उतेजित थे, साक्षी का एक सवाल था: “क्या आप सभी सेक्सिस्ट, जातिवादी ‘दुल्हन वांछित’ विज्ञापनों को भी ऐसे नकारात्मक, धमकी भरे ईमेल भेजते हैं जो हर रोज अखबारों में दिखाई देते हैं? यदि नहीं, तो आपको अपनी पितृसत्ता पर अंकुश लगाने की जरूरत है।”
यह विज्ञापन भले ही एक मज़ाक़ या शरारत रही हो, लेकिन साथ ही यह एक बड़ा सवाल उठा देता है। लड़कियाँ अगर निर्धारित करे की उन्हें कैसे लड़का चाहिए तो यह समाज को क्यूँ नहीं पचता है? आज भी नारीवाद को एक ख़राब शब्द की तरह क्यूँ माना जाता है? आज भी औरत के कुछ भी कहने पर उसकी आवाज़ दबाने की कोशिश क्यूँ की जाती है?
और जो लोग इस एड के जवाब में साक्षी को धमकी भरे या अपशब्द बोल रहे हैं, यह वही लोग हैं जो आज भी पितृसत्ता में भागीदार हैं। इन ही लोगों की वजह से हम आज भी कहीं ना कहीं वही रूढ़िवादी सोच वाले देश के रूप में दिखते है। समय आगे बढ़ गया, देश भी लेकिन इनकी सोच नहीं।
और सबसे बड़ा सवाल जो हमेशा मेरे दिमाग़ में आता है, हमारा समाज मज़ाक़ क्यूँ नहीं ले पाता है? तुरंत डिफ़ेन्सिव क्यूँ हो जाता है? क्यूँकि कहीं ना कहीं उन्हें भी पता है कि वो इस पितृसत्ता का हिस्सा है।
मूल चित्र: via Twitter
A student with a passion for languages and writing. read more...
Please enter your email address