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अगर आप शेरनी के नाम पर विद्या बालन को शेरनी जैसा देखना चाहते हैं, तो मत देखिए फिल्म शेरनी, लेकिन कुछ कहानियां सच बयान करती है...
अगर आप शेरनी के नाम पर विद्या बालन को शेरनी जैसा देखना चाहते हैं, तो मत देखिए फिल्म शेरनी, लेकिन कुछ कहानियां सच बयान करती है…
अगर आप उन्हें एंग्री यंग अफसर की भूमिका में देखना चाहते है तब भी मत देखिए।
कुछ कहानियाँ ढके-छिपे भारत की होती हैं, उनको देखते-सुनते हुए आप कुछ परेशान होते हैं।यकीन करना चाहते हैं कि ‘हाँ होता होगा’ लेकिन उस असलियत से इतने दूर होते हैं कि उससे जुड़ना मुश्किल होता है।
शेरनी एक ऐसी ही लीक से हट के फ़िल्म है। वर्दी को जोश में देखने के आदी हैं हम, तो वर्दी वाले खामोशी से चलते हुए पर्यावरण और जानवरों के इर्द-गिर्द काम करता है, ये बड़ा अजीब स्लो पेस्ड है।
लीक से हट कर फिल्म शेरनी हिंदुस्तान की कई परतों को खोल कर सामने रखती है जिससे शहर में रहने वाले, देश के विकास के लिए कानून बनाने वाले बेखबर हैं।
देश को विकास के पथ पर ले जाने के लिए पेड़ काटे जाते हैं, जंगलों के सफाया हो जाता है। पेड़ से मिलने वाली चीजों की फेहरिस्त हम बच्चों को कक्षा पहली दूसरी में पढ़ाते हैं लेकिन जंगल मे रहने वाले जानवर प्रकृति के बैलेंस के लिए ज़रूरी है, ये हम नहीं सोचते।
छोटे छोटे गाँव में बिजली सड़क और पानी की किल्लत है लेकिन राजनीति की नहीं। जीत के जश्न में शराब नाच गाना सब है। लोगों की लाश पर सियासत होती है और जानवर? वो तो होम करने के लिए ही हैं।
हम सभी ये सोचते हैं कि, “ये हमारा इलाका है!” मानो ये धरती हम ब्रह्मा से स्टाम्प पेपर पर लिखा कर आये हैं।
सरकारी काम मे पैसे भाई-भतीजावाद जैसा होना तो हम कब का स्वीकार कर चुके। सेक्सिस्ट कमेंट, “लेडी अफसर को भेज दिया” या “आप सिस्टर जैसी हैं, वरना तो…”
ये सब तो हर वो औरत जो पब्लिक सर्विस में है बड़े आराम से सुनेगी। तो क्या ही नया दिखा दोगे सच्चाई के नाम पर।
अगर आप शेरनी के नाम पर विद्या बालन को शेरनी जैसा देखना चाहते हैं, तो मत देखिए फिल्म शेरनी।
लेकिन, अगर आप कभी सोचते हैं कि जिन जंगलों और आदिवासी इलाके को भारत के मैप पर आप बचपन मे मार्क करते थे वो कैसे होते है तो ज़रा झलक देख सकते हैं। हालांकि समस्याएँ, और जीवनशैली को और देखने की ख्वाहिश थी।
बाकि, ये बाबू तंत्र की सच्चाई यूँ दिखाता है कि आप असलियत के रूबरू होते हैं कि ईमानदार अफसर एक के बाद एक ट्रांसफर कर हटा दिए जाते हैं। जहाँ कॉपर के खदान के लिए जंगल काट दिये जाते हैं। लोगों की मौत पर बहस होती है और बस बहस।
पर्यावरण दिवस पर पेड़ों के बारे में सोचते हैं हम आप पर उन परिंदों जानवरों का क्या जिनका घर उजड़ा?
छोड़िए, हम इतने संवेदनशील नहीं।
हाँ, आखिर के आधे घण्टे भाँड़ मीडिया दिखाई है। मन करता है कुछ को टैग कर दूँ।
इसे देखिये विद्या बालन की एक्टिंग के लिए, विजय राज और साथी कलाकारों के लिए भी। इसे देखें कि शायद ये इस भूली हुई बात को आपको याद भी दिला दे और समझा भी दे, “सीधी सी तो बात है अगर टाइगर है तभी तो जंगल हैं, और जंगल हैं तभी बारिश है, बारिश है तो पानी है, और पानी है तो इंसान हैं।”
बाकी अगर 80 के दशक की आर्ट फ़िल्म अगर आपकी समझ मे नहीं आती थी तो ये आज की उसी वर्ग की फ़िल्म है।
कुछ बदलेगा?
नहीं…
कुछ कर पाएंगे हम?
लेकिन मुद्दा ज़रूरी है!
आखिर में डरे सहमे शेरनी के दो बच्चे, दिल मे एक टीस उठी, शायद मदर इफ़ेक्ट!
मूल चित्र : Still From Film Sherni
Founder KalaManthan "An Art Platform" An Equalist. Proud woman. Love to dwell upon the layers within one statement. Poetess || Writer || Entrepreneur read more...
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