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ये सारे सवाल हैं ददरी घाट पर गंगा किनारे एक लकड़ी के बक्से के अन्दर से मिली गंगा के, जो एक महिला होने के नाते मैं आपसे पूछना चाहती हूँ।
माँ मैं जिंदा हूँ! हाँ मैं जिंदा हूँ! बाबा मैं तुम्हारा अंश हूँ पर शायद तुम्हारे लिए कुछ महत्त्व नहीं रखती तभी तो तुमने मुझे गंगा में बहा दिया और साथ में देवी देवताओं की तस्वीर भी रख दी।
क्यों रखी आपने देवी-देवताओं की तस्वीरें? क्या मेरी रक्षा के लिए? पर जब मेरे अपने माता पिता ही ने मेरी रक्षा नहीं की तो और कौन करेगा मेरी रक्षा? शायद मैं गंगा हूँ और गंगा की तरह अमर रहूँगी पर मैं आपसे और इस पूरे समाज से कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहती हूँ क्या मुझे मेरे प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे?
क्या माँ बाप के लिए बच्चे का लिंग ही सबसे महत्वपूर्ण होता है? क्या नारी की पूजा करने वाले हमारे इस देश में क्या कोई दिन ऐसा होता है जब हमें किसी बच्ची पर अत्याचार की खबर नहीं मिलती? क्यों हमारे देश में कोख में ही लाखों की हत्या हो जाती है? और क्यों नवजात बच्चियाँ कूड़े के ढेर पर मिलती हैं और क्यों वे लावारिस पड़ी पाई जाती हैं।
ये सारे सवाल उत्तर प्रदेश का गाजीपुर के ददरी घाट पर गंगा किनारे एक लकड़ी के बक्से के अन्दर से मिली गंगा के हैं जो एक महिला होने के नाते मैं सबसे पूछना चाहती हूँ।
15 जून मंगलवार को गाजीपुर जिले में ददरी घाट पर गंगा में तैरते हुए गुल्लू नाम के मल्लाह को किसी बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी।
उसने पास जाकर देखा तो लकड़ी के बक्से में से किसी बच्चे के रोने की आवाज आ रही थी। खोलने पर उसने देखा कि उसमें एक मासूम बच्ची बंद थी और साथ में देवी-देवताओं की तस्वीरें थीं। बच्ची लाल चुनरी में लिपटी हुई थी। बच्ची के साथ में एक जन्म कुंडली भी मिली और जन्मकुंडली में बच्ची का नाम गंगा लिखा हुआ था।
उस बच्ची को देख लोग जय माता दी के नारे लगाने लगे। बाद में लावारिस बच्ची को पुलिस ने आशा ज्योति केंद्र में सुपुर्द किया है। यूपी सरकार ने बच्ची को गोद लेने की घोषणा की है और बच्ची को बचाने वाले नाविक को भी सारी सुविधाएं देने का ऐलान भी किया है।
पर आए दिन समाचारपत्रों में छपी ऐसी कहीं ना कहीं हमारे समाज का खोखलापन दिखाती हैं। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ‘ के नारे क्या केवल विज्ञापन के लिए हैं? क्या सब कुछ सरकार की ज़िम्मेदारी होती है? हमारे देश में सिर्फ लैंगिक भेदभाव के कारण हर वर्ष न जाने कितनी बच्चियों की जान चली जाती है? उनका दोष सिर्फ़ यही है कि वे लड़की हैं और इसलिए चुपचाप उनकी जिंदगी छीन ली जाती है।
आज गंगा की तरफ से ये ज्वलंत प्रश्न पूरे समाज को झगझोरने के लिए काफी हैं। हम कब बदलेंगे और कब हमारी सोच बदलेगी?
बेटियाँ भी बेटों के समान ही समाज के लिए आवश्यक होती हैं तो अब और कोई गंगा बक्से में पड़ी नहीं मिले। ये अपील गंगा की ओर से सबको है। उम्मीद है गंगा की अपील इस समाज के हर वर्ग तक ज़रूर पहुँचेगी और फिर कोई बच्ची लावारिस अवस्था में नहीं मिलेगी।
मूल चित्र : Hindi Nyooz
I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...
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