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लिव इन रिलेशन में महिलाओं और बच्चों के अधिकार क्या हैं?

लिव इन रिलेशन जितना रोमांचक लगता है कभी कभी उतना ही जटिल भी हो जाता है, ख़ास कर महिलाओं और इसमें जन्म लेने वाले बच्चों के लिये।

लिव इन रिलेशन जितना रोमांचक लगता है कभी कभी उतना ही जटिल भी हो जाता है, ख़ास कर महिलाओं और इसमें जन्म लेने वाले बच्चों के लिये।

किसी भी समाज में शादी बहुत बड़ा फैसला होता है। हमारे समाज में तो शादी को सिर्फ दो लोग नहीं दो परिवारों का बंधन मानते हैं। ऐसे में अगर शादी में कोई भी परेशानी हो तो पति पत्नी के साथ दोनों परिवार भी परेशानी झेलते हैं। जहाँ एक ओर हम शादी को किसी भी महिला और पुरुष को साथ रहने के लिये महत्वपूर्ण मानते है वहीं दूसरी ओर लिव इन रिलेशन का चलन भी बढ़ता दिखाई दे रहा है.

लिव इन रिलेशन का अर्थ है महिला और पुरुष आपसी सहमति से बिना शादी किये पति पत्नी की तरह एक छत के नीचे रहें। आधुनिकता का ये स्वरुप आज कल महानगरों में बहुत आम बात हो गई है, जहाँ दो स्वतंत्र और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर लोग शादी के बंधन में बंधना ही नहीं चाहते। बिना दूसरे पक्ष की सहमति से भी ये रिश्ता खत्म किया जा सकता है।

देखने और सुनने में लिव इन रिलेशन जितना रोमांचक लगता है कभी कभी उतना ही जटिल भी हो जाता है, ख़ास कर महिलाओं और इस संबन्ध से जन्म लेने वाले बच्चों के लिये। ऐसी स्तिथि में सरकार द्वारा महिलाओं और बच्चों के हितो की रक्षा के लिये कुछ कानून और अधिकार बनाये गए हैं।

आइये जाने क्या हैं वो अधिकार जो महिलाओं और बच्चों को मिलते हैं।

लिव इन रिलेशन( live in relation )में रह रही महिलाओं को कौन कौन से अधिकार प्राप्त हैं?

सामाजिक स्तर पे लिव इन रिलेशन को भले ही मान्यता नहीं दी गई हो लेकिन भारतीय क़ानून इस संबन्ध को अवैध नहीं मानता।

भारतीय कानून हमेशा और हर तरह से महिलाओं के हितों की रक्षा के लिये कानून बनाता रहा है।  जिस तरह शादीशुदा और तलाक के बाद भी महिलाओं को कई अधिकार प्राप्त है वैसे ही कुछ अधिकार लिव इन रिलेशन में रहने वाली महिलाओं को भी प्राप्त है।

• घरेलु हिंसा से संरक्षण

लिव इन रिलेशन में रहने वाली लड़की पर यदि लड़के द्वारा किसी भी प्रकार का अत्याचार किया जाये चाहे वो मार पीट हो, मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाये या फिर किसी भी तरह से जुल्म किया जाये, तो पीड़ित महिला को अपनी सुरक्षा के अधिकार के तहत घरेलू हिंसा अधिनियम के तरह उस लड़के पे कानूनी कार्यवाई करने का पूर्ण अधिकार है।

• संपत्ति पर अधिकार

लिव इन में रहने वाली महिला का भी विवाहित पत्नी की तरह ही संपत्ति पे अधिकार होता है और इससे वंचित करने पे महिला कानून के तहत अपना अधिकार ले सकती है।

• गुजारा भत्ता पाने का अधिकार

आपसी सहमति के बिना अगर पार्टनर महिला से संबन्ध तोड़ लेता है तो ऐसी स्थिति में महिला को गुजारा भत्ता लेने का अधिकार है।

• बच्चे की विरासत का अधिकार

संबन्ध टूटने की स्तिथि में महिला बच्चे पे अपना हक़ जता सकती है और अपने साथ भी रख सकती है।

लिव इन रिलेशन के दौरान जन्मे बच्चे के क्या अधिकार है?

लिव इन रिलेशन( live in relation ) के दौरान जन्मे बच्चे को लव चाइल्ड कहा जाता है।

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार लिव इन रिलेशन के दौरान जन्मे बच्चे का कोई कसूर नहीं होता। ऐसे में उसे वो सारे अधिकार प्राप्त होंगे जो किसी भी शादीशुदा जोड़े से जन्म दिये गए बच्चे को मिलते हैं।

आईये जाने कौन कौन से हैं वो अधिकार

• लड़की गर्भवती हो जाये

लिव इन दौरान अगर लड़की प्रेग्नेंट हो जाये तो लड़की और होने वाले की देखभाल और हॉस्पिटल का खर्च दोनों पक्ष मिल कर उठायेंगे। अगर एक पक्ष सक्षम नहीं है तो दूसरा पक्ष ख़र्च उठायेगा।

• अग्रीमेंट नहीं होने की स्तिथि में

अगर जोड़े के बीच बच्चे के जन्म को ले कर कोई अग्रीमेंट नहीं है और एक पक्ष ख़र्च से इंकार करे तो दूसरा पक्ष कोर्ट का सहारा ले सकता है और कोर्ट का आदेश ही मान्य होगा।

• धर्म और जाति से सम्बंधित अधिकार

अगर बच्चे के माता पिता अगल जाति और धर्म से संबन्ध रखते है तो ऐसे में बालिग़ होने पे वो कोई भी उपनाम या धर्म अपना सकता है इसके लिये बच्चे को कानून से स्पेशल छूट मिली है।

• संपत्ति के अधिकार

लिव इन रिलेशन से जन्मे बच्चे को वो सारे अधिकार प्राप्त जो शादीशुदा जोड़े से जन्मे बच्चे को प्राप्त है. बच्चा माता पिता दोनों की संपत्ति पे अपना अधिकार जाता सकता है और इंकार की स्तिथि में कोर्ट में केस भी कर सकता है।

• मेंटेनेंस के अधिकार

लिव इन रिलेशन से जन्मे बच्चे को अपनी मेंटेनेंस लेने का पूर्ण अधिकार है। बच्चे की हर जरुरत को पूरा करना माता पिता का कर्तव्य होगा और ऐसा ना करने पे बच्चा कोर्ट में केस कर अपने मेंटेनेंस का खर्च ले सकता है।

• बच्चे के कानूनी अधिकार

लिव इन रिलेशन से जन्मे बच्चे को भी सभी कानूनी अधिकार प्राप्त होंगे। लव चाइल्ड होने बावजूद उसके किसी की कानूनी अधिकार को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

• पालन पोषण ना करने की स्तिथि में

जन्म लेने के बाद यदि बच्चे को अपनाने या उसके पालन पोषण के लिये माता पिता द्वारा इंकार कर दिया जाये तो ऐसी स्तिथि में कोर्ट द्वारा स्वं या किसी NGO की दलील पे कोर्ट माता पिता के खिलाफ कोई आदेश दे सकता है

लिव इन रिलेशन में बच्चा होने के बाद क्या महिला को पत्नी के अधिकार प्राप्त होंगे?

लिव इन रिलेशन से जन्मे बच्चे को सारे जायज अधिकार प्राप्त होंगे लेकिन महिला को पत्नी होने का कानूनी अधिकार प्राप्त नहीं होगा ऐसे में लड़का और लड़की चाहे तो आपस में या फिर किसी दूसरे के साथ विवाह बंधन में बंध सकता है। बच्चा किसके पास होगा इसका फैसला लड़का लड़की मिल कर या कोर्ट के द्वारा भी तय हो सकता है। बच्चा होने के बाद भी लड़का या लड़की एक दूसरे को शादी के लिये किसी भी तरह का दबाव नहीं दे सकते।

लिव इन रिलेशन के बारे में क्या कहता है समाज

विगत कुछ समय हमारे समाज में भी लिव इन रिलेशन या यूं कहें स्त्री पुरुष का बिना विवाह किये रहने का प्रचलन बढ़ा है। पहले ये मामले जहाँ मेट्रो सिटी में दिखते थे अब ये मामले छोटे शहरो में भी देखने को मिल रहे हैं।

कई बार लिव इन रिलेशन में साथ रहने वाले लोग कई प्रकार के अपराध के शिकार भी हो जाते हैं।  शारीरिक संबन्ध बनाने का दबाव, मार पीट, पैसे की घोखाधड़ी जैसे कई मामले हैं जो आये दिन सुनने को मिल जाते हैं।

विडंबना ये है कि कई बार लड़कियाँ बिना अपने कानूनी अधिकार जाने फलस्वरूप किसी प्रकार के धोखे और प्रेगनेंसी होने के बाद सिर्फ अपनी जिंदगी ख़राब कर लेती हैं, इसलिए बहुत आवश्यक है कि महिलायें लिव इन रिलेशन में रहने से पहले अपने अधिकार जान लें, साथ ही एक अग्रीमेंट की तरह पार्टनर के साथ रहना शुरु करें जिससे बाद में होने वाली परेशानी से बच सकें।

लिव इन रिलेशन को लेकर बदलाव ज़रुरी है

हमारे समाज के कुछ वर्ग में आज भी विवाह पूर्व लड़का लड़की का साथ रहना अच्छा नहीं माना जाता लेकिन जैसा की देश के सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है लिव इन रिलेशन में रहना कोई अपराध नहीं है और जब दो बालिग अपनी मर्जी से साथ रहना चाहें तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये।

ऐसे में धीरे धीरे ही सही लेकिन लोगों की सोच में भी बदलाव आ रहा है और समाज इसे स्वीकार कर रहा है।

मेरे विचार से भी जब देश के क़ानून को कोई आपत्ति नहीं तो हम कौन होते है किसी के निजी मामलो में हस्तक्षेप करने वाले? दूसरों के निजी मामलो में दखल देने की बजाय हमें खुद में बदलाव ला “जिओ और जीने दो के सिद्धांत” को अपनाना चाहिये।

बदलते सामाजिक परिवेश ने कई बार बदलाव आये है और हमने उसे स्वीकार भी किया है ठीक वैसे ही लिव इन रिलेशन को भी जज करने की बजाय उसे स्वीकार करना शुरु कर देना चाहिये।

मूल चित्र : avid_creative from Getty Images Signature via Canva Pro

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