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समय बदल गया पर लोगों की सोच आज भी नहीं बदली। आज भी स्त्री भोग की वस्तु है, उसे उनके शरीर से ही तौला जाता है।
क्या आपने कभी महिलाओं के बारे में पुरुषों की विकृत बातें सुनी, समझी या झेलीं हैं? एक महिला जब बस या ट्रेन में जब अकेले सफ़र करती है, या देर रात तक ऑफिस में रूकती है तब उसके दिलोदिमाग की हालत एक महिला ही समझ सकती है।
कुछ या ये कहूं ज़्यादातर पुरुष, जब वे अकेले होते हैं या जब अपने मित्रों के साथ महिलाओं के बारे में बात करते हैं, उस समय उनका पूरा ध्यान और किसी भी महिला को देखने का नजरिया या तो सेक्स होता है या उसका शरीर।
एक महिला होने के नाते अधिकांश महिलाओं को इस विकृत सोच का सामना कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में करना ही पड़ता है। कहने को तो आज का समाज बदल रहा है पर क्या यह पूरा सच है? दिखने में तो आजकल सभी आधुनिक भी दिखते हैं। बाहर खुद को मॉडर्न साबित करने की होड़ सी मची हुई है।
पर आज भी हमारे समाज में महिलाओं को हमेशा एक भेदभाव का सामना करना ही पड़ता है फिर चाहे घर हो, स्कूल हो, बाज़ार हो या कार्यस्थल हर जगह उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है।
दूसरे दर्जे का व्यवहार तो महिला बर्दाश्त कर भी लेती हैं पर जो पक्षपातपूर्ण सोच होती है वह महिलाओं का पीछा कभी नहीं छोड़ती। कुछ पुरुषों के मन में आज भी स्त्री को देखने का नजरिया सेक्स या उसके चरित्र से ऊपर नहीं उठ पाता। ऐसी ही कुछ बातें हर स्त्री अनुभव करती ही है।
जब से डोना के पति की मृत्यु हुई है वह अपने दोस्त, रिश्तेदार और सोसाइटी वालों के बदले व्यवहार को महसूस करने लगी है। अगर वह किसी से कोई छोटा सा काम भी करवा लेती है तो सामने वाला उससे बदले में कुछ अधिक ही उम्मीद करता है।
बड़े-बड़े बच्चों के पापा हों या मोहल्ले की नौजवान सभी उससे निकटता बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए हैं। जो रिश्तेदार कभी हाल नहीं पूछते थे अभी सहानुभूति दिखाकर उसका पूरा फायदा उठाना चाहते हैं। पता नहीं विधवा और तलाकशुदा महिलाओं को कब तक इस घृणित सोच का सामना करना पड़ेगा।
जैसे ही लड़की किशोरावस्था में प्रवेश करती हैं लोगों की नज़रों में आए बदलाव को खुद ही समझने लगती हैं। उनके शरीर में होते परिवर्तनों को लोग ऐसे ताड़ने लगते हैं जैसे वे कोई खिलौना हों।
बड़ी उमर के अंकल भी बड़ी होती बच्चियों के बारे में ऐसी घटिया सोच रखते हैं कि यदि उनकी खुद की बेटी को पता चल जाये तो वह भी उनसे नफरत करने लगे। नौजवान भी बच्चियों के विकसित होते शरीर को घूरते रहते हैं और किसी भी प्रकार उनको हासिल करने के तरीके ढूढ़ते रहते हैं।
अगर कोई महिला अपना केरियर बनाने के लिए शादी नहीं करती तो यह समझा जाता है कि या तो उसमें कोई कमी होगी या उसका कैरेक्टर ठीक नहीं है। भारत में महिला कितना भी पढ़ लिख लें या आत्मनिर्भर हों जाएँ उन पर विवाह करने का दबाव हमेशा रहता है।
अकेली महिला को चरित्रहीन ही समझा जाता है और लोग यह सोचना ही नहीं चाहते कि अकेली महिला भी एक सामान्य इंसान होती है और एक सामान्य जीवन जीती है। जब लोग उन्हें हासिल नहीं कर पाते तो उनके बारे में उलजलूल बातें बनाने लगते हैं।
आज भी गाँव की या छोटे शहरों से आई औरतों को मूर्ख समझा जाता है, लोगों का माइंड सेट है कि छोटी जगह में पली बढ़ी लड़की को तो बड़ी आसानी से उल्लू बनाया जा सकता है। चाहे वे कितना भी पढ़ लिख लें पर उनको दब्बू और बेवकूफ ही समझा जाता है।
अमन ने नल बनाने वाले गरीब कारीगर की बेटी मीना से शादी तो कर ली पर जिंदगी भर मीना को यही सुनन पड़ा कि उसकी और उसके पापा की हैसियत अमन के परिवार के सामने कुछ भी नहीं है। और वह उस परिवार में एक नौकरानी से अधिक कुछ भी नहीं है ।
अड़ोस पड़ोस वाले भी जब मीना या उसके परिवार से मिलते बस यही बोलते आपकी बेटी के तो भाग्य खुल गए जो इतने अमीर परिवार में ब्याह हो गया।
बड़े शहरों में रहने वाली लड़कियों के बारे में सामान्य धारणा होती हैं कि वे बहुत चालू होती हैं उनकी समझदारी, समय के साथ चलने की विशेषताओं को किसी और ही नजरिये से लोग देखते हैं।
जहाँ वे किराए पर रहती हैं वही उनके बारे में अफवाह फ़ैलाने वालों की कमी नहीं होती। उनकी समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की खासियत को लोग चरित्रहीनता का जामा पहना देते हैं।
नारीवादी या स्त्री विमर्श का तगमा देकर आधुनिक स्त्रियों के लिए सोचा जाता है कि यदि वे स्त्री स्वतंत्रता की बात करती हैं इसका मतलब है वे किसी से भी सेक्स कर सकती हैं।
उनके विचारों के खुलेपन को कपड़ों और शारीरिक संबंधों के खुलेपन से नापा जाता है। उनको इस दृष्टि से देखा जाता है जैसे वह स्मार्ट न होकर कोई हिंदी सिनेमा की खानायिका हैं जो किसी भी पुरुष के साथ संबंध बना सकती हैं।
महिलाएं कुदरती तौर पर अधिक भावुक होती हैं और उनकी इसी खूबी का ताउम्र फायदा उठाया जाता है। आयरा का ब्रेकअप होने के बाद से वह बहुत डिप्रेशन में थी बस उसकी हालत को समझते ही कुछ तथाकथित दोस्त उसके सामने तो सहानुभूति दिखाते और बाहर उसकी बातों को चटकारे लेकर सबको सुनाते।
एक-दो ने इतनी हद कर दी कि उसको किस तरह मीठी मीठी बातों से अपना बनाया जाए इसके लिए आपस में बाकायदा मिलकर तैयारी भी करने लगे। अगर उसकी एक सच्ची मित्र उसे इन सब बातों से अवगत नहीं करवाती तो आयरा सच में उनके बहकावे में आ ही जाती और वे अपना मतलब निकल कर चलते बनते।
ऊपर ये तो कुछ ही भ्रांतियाँ लिखी गई हैं जो स्त्रियों के बारे में समाज में फैली हुई है। पर ऐसी अनगिनत सोच समाज में फैली हैं जिनका सामना हर स्त्री को करना ही पड़ता है।
समय बदल गया पर लोगों की सोच आज भी नहीं बदली। आज भी स्त्री भोग की वस्तु है, उसे उनके शरीर से ही तौला जाता है। उनकी काबिलियत को हमेशा दोगलेपन का शिकार होना पड़ता है।
स्त्री आज डॉक्टर, पायलट से लेकर हर पद पर कार्य करती हैं पर आज भी आपको शहर से लेकर गाँव तक, पढ़े लिखों से लेकर अनपढ़ तक महिलाओं के बारे में पक्षपातपूर्ण सोच रखने वाले हर जगह, हर कदम पर मिल ही जाएंगे।
मूल चित्र: Shut the phone up campaign by Manforce
I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...
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