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आज से मैं अपनी ख़ुशी का भी ख़्याल रखूंगी…

ऐसा लग रहा था जैसे आते-जाते सभी लोग, आसपास खड़े सभी लोग सब उसे ही घूर-घूर कर देख रहे हों। आज से पहले उसने कभी अकेले ऐसा कुछ नहीं किया था।

ऐसा लग रहा था जैसे आते-जाते सभी लोग, आसपास खड़े सभी लोग सब उसे ही घूर-घूर कर देख रहे हों। आज से पहले उसने कभी अकेले ऐसा कुछ नहीं किया था।

रोली हफ्ते भर से दिवाली की साफ-सफाई करके थक चुकी थी और लॉकडाउन व कोरोना के चलते वह महीनों से घर के बाहर भी नहीं गई थी। इसलिए घर में अंदर ही अंदर रहकर अब वह ऊब गई थी। अब उसका बहुत मन होता था कि घर से बाहर निकल कर कुछ देर के लिए ही सही, खुले आसमान के नीचे खुली हवा में साँस ले।

आज धनतेरस था तो सोचा आज मार्केट जाकर दिवाली की थोड़ी सी शॉपिंग भी कर ली जाए और उस नुक्कड़ वाले चाट-भंडार के गोलगप्पे  भी खाए जाएँ। वह नुक्कड़ वाला चाट-भंडार पूरे इलाके में मशहूर था और रोली भी गोलगप्पे खाने की पूरी शौकीन थी। सोचने भर से ही उसके मुँह में गोलगप्पों का स्वाद आने लगा।

रवि से उसने कल कहा था मार्केट चलने के लिए, लेकिन महीनों से धंधे में मंदी चल रही थी और दिवाली पर पीक सीज़न था, इसीलिए काम बहुत ज्यादा था। तो न चाहते हुए भी उसे रोली को मना करना पड़ा।

लेकिन आज धनतेरस का त्यौहार था सामान लाना तो जरूरी था। कुछ सोचकर उसने काजल को फोन लगाया। काजल उसकी पुरानी सहेली थी। मार्केट जाना हो या कहीं और घूमने जाना हो, दोनों साथ ही जाती थीं।

लेकिन पिछले कुछ समय से काजल अपने परिवार में इतनी अधिक व्यस्त हो गई थी कि जब-जब रोली ने उसके साथ कहीं बाहर जाने का प्लान बनाया, हर बार उसने कोई न कोई पारिवारिक वजह बताकर मना ही किया। रोली को बुरा तो लगता था, पर वह समझती थी कि हम औरतों के लिए पारिवारिक दायित्वों को निभाना भी बहुत जरूरी होता है।

रोली ने फोन मिलाया, काजल ने फोन उठाया। दोनों सहेलियों ने बहुत ही गरमजोशी के साथ एक दूसरे को दिवाली की शुभकामनाएँ दीं।

“अच्छा सुन, चल आज मार्केट चलते हैं। दिवाली का थोड़ा बहुत सामान ले आएँगे और वह नुक्कड़ वाली दुकान के गोलगप्पे भी खाएंगे।” रोली ने खुश होते हुए बोला।

“नहीं यार, सामान तो मैं संडे को ही ले आई थी और बहुत दिनों से सफाई करते-करते अपनी तो हालत खराब हो चुकी है, सच में अब तो मेरा बिल्कुल मन नहीं है कहीं जाने का।”

कैसे आसानी से कह दिया कि मन नहीं है। और सामान नहीं लाना था तो क्या हुआ, कम से कम यही सोच लेती कि चलो इतने महीनों बाद मिलने का मौका मिला है। मिलेंगे, कुछ देर साथ में घूमेंगे, इंजॉय करेंगे।

रोली को बहुत बुरा लगा। मन उदास हो गया, पर दिवाली जैसे त्यौहार की खुशियों पर वह उदासियों की परत को नहीं चढ़ने देना चाहती थी। उसने काजल से कुछ नहीं कहा और एक दो औपचारिक बातों के बाद फोन रख दिया।

सामान तो लाना ही था, अकेले ही जाएगी और क्या करेगी। यह सोचकर वह अपना काम निपटाने लग गई और थोड़ी देर बाद बाजार के लिए निकल गई। जैसे ही रिक्शा से उतरी, उसकी नजर उसी चाट भंडार पर पड़ी जहाँ से वह और काजल हर बार गोलगप्पे खाया करते थे। पर आज वह अकेली थी, तो रुकी नहीं और आगे बढ़ गई।

रोली अक्सर शॉपिंग के लिए अकेले आती रहती थी तो उसे सामान खरीदने में कोई दिक्कत नहीं हुई। वह सामान लेकर वापस लौट रही थी कि उसकी नजर फिर से गोलगप्पों पर पड़ी। उसका बहुत मन किया गोलगप्पे खाने का, काजल उसके साथ होती तो वह जरूर रुक कर गोलगप्पे खाती, पर आज नहीं। 

वह रिक्शा स्टैंड पर आकर रिक्शा का इंतजार करने लगी। खड़े-खड़े आठ-दस मिनट हो गए पर रिक्शा नहीं मिली। अब एक तो इतनी देर हो गई थी रिक्शा का इंतजार करते-करते और दूसरा, वह नुक्कड़ के चाट भंडार पर रखे गोलगप्पे जैसे उसे ही बुला रहे थे।

रोली के लिए भी अपने मन को समझाना बहुत मुश्किल हो रहा था, अब वह ज्यादा देर तक अपने आप को न रोक पाई और पहुँच गई उस नुक्कड़ वाली दुकान पर गोलगप्पे खाने।

उसे लग तो अजीब रहा था क्योंकि आज से पहले उस ने ऐसे कभी कुछ खाया नहीं था। या तो रवि उसके साथ होता या काजल। उसे खुद भी पसंद नहीं था ऐसे सड़क पर अकेले खड़े होकर कुछ भी खाना। ऐसा लग रहा था जैसे आते-जाते सभी लोग, आसपास खड़े सभी लोग सब उसे ही घूर-घूर कर देख रहे हों।

पर यार एक बात बताओ अगर कोई मेरा साथ नहीं देगा तो क्या मैं ऐसे ही अपना मन मार कर जीती रहूंगी? क्यों अपनी ख्वाहिशें पूरी करने के लिए, अपनी जिंदगी जीने के लिए, मैं दूसरों पर निर्भर रहूँ? जब सबकी इच्छाएँ मैं अकेले पूरी कर सकती हूँ तो अपनी क्यों नहीं? यही सब सोचते-सोचते और सब लोगों को अनदेखा कर वह चटपटे, खट्टे-मीठे गोलगप्पों का स्वाद लिए जा रही थी।

आज अपने खुद के मन की ख्वाहिश खुद ही पूरा करने में उसे जो आंतरिक खुशी मिल रही थी, उसने उसे एक नया रास्ता दिखा दिया था।अब उसने ठान लिया था कि वह अपनी ख्वाहिशों को मार-मार कर नहीं जीएगी, अपनी खुशियों के लिए किसी और के भरोसे नहीं रहेगी। अकेले ही वह सब को खुश रख सकती है तो अपने आप को क्यों नहीं।

मेरी कहानी में वर्णित घटना आपको बहुत छोटी सी लग सकती है, पर यह सच्चाई है कि हम औरतें खुद की इच्छाओं को पूरा करने के लिए कोई भी कदम उठाने से आज भी हिचकिचाती हैं और अगर उस रास्ते पर अकेले चलने की बात आए, तो हम पीछे ही हट जाते हैं।

लेकिन अगर हमें अपने आप को खुश रखना है तो यह जरूरी नहीं कि अपनी खुशियों को पाने के लिए हम लोगों के भरोसे रहें, उसके लिए हमें स्वयं ही प्रयास करना होगा।

मूल चित्र: Still from Telugu Movie Uyyala Jampala 

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Ruchika Rana

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