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क्या पत्नी या माँ होने का मतलब ये है कि मैं अपना ध्यान न रखूं?

"अपने आप को फ़िट रखने के लिए शादीशुदा या कुँवारी होने से क्या मतलब है? मुझे किसी को दिखाने के लिए नहीं स्वयं को स्वस्थ रखने फ़िट रहना है।"

अपने आप को फ़िट रखने के लिए शादीशुदा या कुँवारी होने से क्या मतलब है? मुझे किसी को दिखाने के लिए नहीं स्वयं को स्वस्थ रखने फ़िट रहना है।”

तुम्हें फ़िट रहने की क्या ज़रूरत है? शादी होने के बाद अपने परिवार पर, बच्चों पर ध्यान दो समझीं? माँ बनकर भी तुम्हारे चोचले कम नहीं हुए? अच्छा भूत चढ़ा है आजकल फ़िट्नेस का!” रुद्र ने सोनाक्षी को वर्क आउट करते देखा तो बोल उठा

सोनाक्षी ने उसकी बात कोअनसुना कर दिया और व्यायाम करती रही

“माँ आपको दौड़ने की क्या ज़रूरत है? इतनी मोटी तो आप हैं, उस पर से दौड़ती हुई बड़ी अजीब लगती हो।” उसके बेटे रुद्राक्ष ने उसे कॉमेंट करते हुए कहा

सोनाक्षी सोचने लगी कि क्या माँ बनने के बाद स्त्री अपने आपको फ़िट नहीं रख सकती? क्या ज़रूरी है कि उसे बेडौल और बूढ़ा दिखना ही चाहिए? फिर उसने कुछ सोचा…

पर आज रात अपनी पेट की प्लेट में सलाद और हेल्थी खाना देखते हुए उसने रुद्र और रुद्राक्ष से कहा, “अपने आप को फ़िट रखने के लिए शादीशुदा या कुँवारी होने से क्या मतलब है? मुझे किसी को दिखाने के लिए नहीं स्वयं को स्वस्थ रखने फ़िट रहना है।

तुम्हें भी अपने नाश्ते में सलाद और संतुलित भोजन शामिल करना चाहिए। शायद तुम दोनों को मेरी बात समझ गई होगी अगर नहीं, तो मुझे इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। तुम्हें यह मज़ाक़ लगता होगा पर मेरे लिए यह मज़ाक़ नहीं है। अच्छा होगा तुम दोनों अपनी पुरानी सोच बदलो।”

सोनाक्षी का उत्तर सुनकर वे दोनों दंग रह गए और उनके  मुँह से कुछ बोल ही नहीं निकले रुद्र सोनाक्षी का चेहरा देखता ही रह गया। उसने सोनाक्षी से इस दो टूक उत्तर की उम्मीद नहीं की थी

हर स्त्री को शादी से पहले या शादी के बाद फ़िट्नेस का अधिकार है और मिलना ही चाहिएफ़िटनेस एक स्त्री, एक माँ और एक पत्नी का भी अधिकार है…

मूल चित्र : Still from Short Film Pressure Cooker/Pocket Films, YouTube

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SHALINI VERMA

I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...

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