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उन्होंने अपनी बेटी से पूछा की रिश्ते से कोई आपत्ति हो तो बता दे।बेटी ने जवाब दिया “हमें क्यूँ होगी आपत्ति, आप हमारा बुरा तो सोचेंगे नहीं।”
उन्होंने अपनी बेटी से पूछा कि रिश्ते से कोई आपत्ति हो तो बता दे। बेटी ने जवाब दिया, “हमें क्यूँ होगी आपत्ति, आप हमारा बुरा तो सोचेंगे नहीं।”
“अरे! आज तो घर एकदम चकाचक चमक रहा है।” सृजन बाबू चहेकते हुए बोले।
“देविका, बेटा कहाँ हो?”
“ये लीजिए बाबूजी पानी और हाँ आप हाथ मुँह धोकर तैयार हो जायें मैं चाय बनाती हूँ।”
“बेटा! ऋषि नहीं आया क्या अब तक?”
“नहीं बाऊ जी! वो अर्जेंट मीटिंग है आफिस में तो रुकना पड़ा।”
“कोई नहीं बेटा आओ तुम और मैं चाय पीते हैं।”
सृजन अग्रवाल जी की पत्नी का कई साल पहले निधन हो चला। घर में दो बच्चे हैं, बड़ी बेटी देविका जो विवाहिता है और गाहे-बगाहे घर को देखने आती है और बेटा ऋषि जिसके लिए एक संस्कारी बहू की तलाश कर रहे है।
“देविका कल लड़की वाले आ रहे अपने ऋषि को देखने। सब तैयारी कर लेना और ऋषि को भी बोल देना। अच्छा तुम लोगों को इस रिश्ते से कोई आपत्ति हो तो बता देना।”
“हमें क्यूँ होगी आपत्ति बाबूजी आपकी पसंद में कुछ तो खासियत होगी और आप हमारा बुरा तो ना सोचेंगे।”
दूसरे दिन पूरी तैयारी के साथ लड़की वाले ऋषि को देखकर पसंद कर गए और साथ ही शादी की तारीख भी तय हो गई।
“बहुत सारा काम है सोच रहा हूँ आफिस से छुट्टी लेकर कुछ काम समय से पहले खत्म कर लूँ।” सृजन बाबू ने सोचा।
जैसे-जैसे दिन नजदीक आते जा रहे थे सृजन बाबू की दिल की धड़कनें तेज हो रहीं थीं। ये सोचकर की अकेले बेटे की शादी में कुछ कमी ना रह जाए। देविका के समय में तो मालती ने सब कुछ संभाल लिया था। अब तो सब कुछ उन्हें देखना था। बच्चों को भी अभी इतना अनुभव नहीं था जो सभी काम कर सकें। सोचते-सोचते सृजन बाबू को नींद आ गई।
रात होने को आई और ये क्या ऋषि के साथ ये कौन सी लड़की खड़ी थी, “अमृता ये हमारे बाऊ जी हैं पैर छुओ इनके और आशीर्वाद लो।”
“पर ये है कौन बेटा परिचय तो कराओ हमारा।”
“बाऊ जी ये आपकी बहू अमृता है।”
“मतलब? पर तुम्हारी शादी तो मैंने तय करी थी और तुमने कहीं और ही…”
“बाऊ जी! आप हमेशा अपनी मर्जी की चीज़ें करते हैं। मुझे वह परिवार बिल्कुल पसंद नहीं। मैं नहीं कर सकता था वहां शादी और आपसे बोलने का भी कोई फायदा नहीं था। इसलिए मैंने ये कदम उठाया।”
सृजन बाबू को लगा जैसे दिल में किसी ने पत्थर रख दिया। वो कुछ बोल नहीं पा रहे थे। अंदर की ऊर्जा साथ नहीं दे रही थी और होंठों से आवाज़ नहीं निकल पा रही थी कि अचानक से देविका ने उन्हें बुलाया।
“बाऊ जी! पंडित जी आयें हैं जल्दी बाहर आएँ।” सृजन बाबू अचानक से उठ खड़े हुए। पूरा शरीर पसीना-पसीना हो चुका था।
“अच्छा हुआ ये सिर्फ़ एक सपना था। मैं क्या देख गया।”
रात को खाने की मेज़ पर सृजन बाबू बोले, “ऋषि क्या तुम्हें इस रिश्ते से कोई आपत्ति है?”
“मुझे कोई आपत्ति क्यूँ होगी बाऊ जी, आपने कुछ सोच-समझकर ही रिश्ता देखा है। दीदी की भी तो आपने इतने अच्छे घर में शादी की तो सोचने का सवाल नहीं बनता। वैसे भी माता-पिता कभी बच्चों का बुरा नहीं सोचते। अगर मेरी नज़र में कोई लड़की होती तो जरूर आपको बताता।”
सृजन बाबू अब चिंता मुक्त हो चुके थे और अब दोगुनी तेजी के साथ शादी की तैयारियों में लग चुके थे। आखिर सपने से जो जाग चुके थे वो।
मूल चित्र: Aman Agrawal from Getty Images Via Canva Pro
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