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बाकी सब तो वैसा का वैसा ही रहेगा…

पिता कैसे अपने कलेजे को छलनी होने से रोक पाएगा, ज्यादा कुछ नहीं बस वह अपनी बेटी के घर का मेहमान हो जाएगा, बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा।

पिता कैसे अपने कलेजे को छलनी होने से रोक पाएगा, ज्यादा कुछ नहीं बस वह अपनी बेटी के घर का मेहमान हो जाएगा, बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा।

नाम बदलेगा,
गाँव बदलेगा,
शहर बदलेगा,
यहां तक की प्रदेश भी बदल जाएगा।
ज्यादा कुछ नही बस पहचान और पता ही तो बदलेगा,
बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा।

दर्द वही रहेगा,
सहना भी रोज की तरह ही होगा,
कुछ भी तो नहीं बदलेगा।
सहनशीलता की सीमा को थोड़ा ओर बढ़ाना होगा,
ज्यादा कुछ नही बस खामोशी से ही हर आँसू भी पीना होगा,
बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा।

ना तो कोई माँ की तरह बिस्तर पर खाना लाएगा,
ना ही पापा की तरह कोई सुबह की सलाह देने वाला होगा,
अंदर से रहकर अकेला, ओरों के सामने हँसना होगा।
ज्यादा कुछ नही बस अपना वजन खुद को ही उठाना होगा,
बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा।

सारे अरमानों की करके हत्या, इल्जाम खुद पर ही लगाना होगा।
बेबस चीखती जुबान को मन ही मन में दफ़न करना होगा।
ज्यादा कुछ नही बस जिम्मेदारियों का भार थोड़ा ओर बड़ जाएगा,
बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा।

प्रभाकर का उदय भी प्रतिदिन ही होगा,
चाँद की चमक भी कायम रहेगी,
तुम्हारी सुबह की धूप में हमारा साया नही होगा,
कहानी भी तो वहीं रहेगी,
ज्यादा कुछ नही बस दिल के जज्बातों का सौदा हो जाएगा,
बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा।

मैं तो आज की नारी हूँ,
आँसुओं को पलकों पर ही छुपाने का हुनर रखती हूँ,
मगर वो कल का पिता कैसे अपने कलेजे को छलनी होने से रोक पाएगा,
क्या वो पेड़ की टहनी को कटते देख पाएगा,
ज्यादा कुछ नहीं बस एक पिता अपनी बेटी के घर का मेहमान हो जाएगा।
बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा।


मूल चित्र: Tanishq Jewellery Via Youtube

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Aarti Sudhakar Sirsat

Author✍ Student of computer science Burhanpur (MP) read more...

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