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बदलाव की इन कहानियों से हर पिता कुछ सीख रहा है और सामाजिक संरचना के सामने दीवार बन रहा है,जो बेटियों को दहलीज के बाहर जाने नहीं देना चाहते।
बदलाव की इन कहानियों से हर पिता कुछ सीख रहा है और सामाजिक संरचना के सामने दीवार बन रहा है, जो बेटियों को दहलीज के बाहर जाने नहीं देना चाहते।
आज “बाबूजी” से “पा” तक सबोधन के सफर में पिता का स्वरूप बहुत बदल गया है। पिता का बच्चों के लिए पैटरनिटी लीव लेना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
बिटिया से पिता का लगाव का भाव तो पहले भी था आज बस उस भाव में थोड़ा खुलापन आ गया है। उसमें एक भरोसे ने जन्म ले लिया है कि बेटी सब संभाल लेगी। बेटियों को भी लगता है बस पिता का साथ मिल जाए फिर वह तमाम चुनौतियों से लड़ सकती है।
व्यक्तिगत परिवारों ने पिताओं को बच्चों के साथ अधिक समय बिताने का मौका दिया है। जिसके वजह से पिता का बच्चों के साथ, विशेषकर बिटिया के साथ, भरोसा कायम कर रहे हैं। जिसमें बेटियों का एक विश्वास है कि पापा सब समझते हैं।
अधिकांश बेटियों के लिए उनके पापा हीरो होते हैं। तमाम चुनौतियों के सामने डट के खड़े रहने वाले व्यक्ति। पिता के अंदर के इस भाव से बेटियां बहुत कुछ सीख लेती हैं। भले ही पिता अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करना बेटियों को नहीं बताते, पर वह सीख लेती है पिता के तरह जीवट होना।
पितृसत्तात्मक की अवधारणा वाले समाज में एक समय जरूर था जब परिवार में बेटियों की मौजूदगी कोई मायने ही नहीं रखती थी। आज बेटियों का होना ही परिवार के आंगन को भरा-पुरा करने वाला होता जा रहा है। आज हर बेटी के उपलब्धियों पर पिता भी गौरान्वित अनुभव करता है और अपनी खुशी को सोशल मीडिया पर शेयर करता है।
आज कई पिता बेटियों के मन की बात समझ लेते हैं। समाज में यह बदलाव एक सुखद संकेत है भले ही यह सीमित परिवार में देखने को मिल रहा है, पर एक शुरुआत तो है ही।
पापा का साथ जिंदगी का हर पहलू पर असर डालता है। यह साथ जीवन का हर हिस्सा संवारता है। तभी तो बदलते समय के साथ यह भूमिका और बड़ी हो रही है।
पिता के साथ, समझ और स्नेह भरे व्यवहार तले बड़ी होने वाली बेटियां अपने अस्तित्व को लेकर जागरूक है। बेटियों पिता के अनुशासन में परवरिश पाती हैं तो उनके आत्मसम्मान का भाव गहरा होता है। पिता और पुत्री के रिश्तों में आ रहे बदलाव ने कई क्षेत्रों में बेटियों के सफलता के कई कहानियां लिखी हैं।
अच्छी बात यह है की बदलाव के इन कहानियों से आज का हर पिता कुछ सीख रहा है और उस सामाजिक संरचना के सामने दीवार बन रहा है, जो बेटियों को घर के दहलीज के बाहर जाने नहीं देना चाहते।
कभी नरम कभी गरम अंदाज में बच्चों को अनुशासन और व्यावहारिकता का पाठ पढ़ाने वाले पापा ही नई पीढ़ी के सपनों को पंख फैलाने के लिए खुले आसमान में उड़ने की छूट देते हैं।
बेटी के स्कूल के बस्ते में किताबों के साथ पिता के हाथों से आत्मविश्वास और उम्मीद की आस बेटी के हौसले और आश्वासन को बांध देते हैं। कभी मन के करने की छूट देते है कभी बंदिशों से भरी हिदायत देते हैं।
बेटियों की सुरक्षा को लेकर सख्त होना कई बार एक पिता के लिए नाराज़गी का कारण बनता है। इसके लिए आज का पिता भावनात्मक होने साथ-साथ व्यावहारिक धरालत पर बेटियों को जीना सीखा रहे हैं। हर जगह हो पिता मौजूद हो नहीं सकता इसलिए स्नेह भरी सख्ती में ही सही सामाजिक व्यवहार के बारे में बेटियों को जानना समझना जरूरी है।
मूल चित्र: Still from Ad My Father’s Dream/Paisabazaar, YouTube
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