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एडवेंचर, मनोरंजन और पर्यावरणीय पितृसत्ता पर बात करती है फ़िल्म शेरनी

शेरनी को पकड़ने के लिए जंगल में कैमरे लगाए जाते हैं, पहरेदारी बढ़ाई जाती है, यहां तक दफ्तर में यज्ञ-हवन भी कराया जाता है।

शेरनी को पकड़ने के लिए जंगल में कैमरे लगाए जाते हैं, पहरेदारी बढ़ाई जाती है, यहां तक दफ्तर में यज्ञ-हवन भी कराया जाता है। 

अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई विद्या बालन कि फिल्म “शेरनी” कि कहानी पर्यावरण से लेकर पितृसता के संबंध की बात करती है, वह भी बिना किसी सिनेमाई अंदाज में।

बिना किसी सिनेमाई अंदाज में कहने का मतलब बेशक “शेरनी” की कहानी में तमाम पात्र चरित्र अभिनेता ही है पर कहानी सुनाने का अंदाज-ए-बयां सिनेमाई नहीं लगता है।

निर्देशक अमित मसुर्कर ने शेरनीकी कहानी सुनाने के लिए बृजेंद्र काला, शरत सक्सेना, इला अरुन, नीरज कबि, विजय राय और विद्या बालन के साथ पर्यावरण के साथ पितृसता व्यवहार के पक्ष को रखने के लिए वास्तविकता जमीन को कभी भी छोड़ने की कोशिश नहीं की।

क्या है शेरनी की कहानी


निर्देशक अमित मसुर्कर ने शेरनी के कहानी के मुख्य समस्या को अधिक महत्व देने के लिए, मुख्य पात्र विद्या विन्सेंट (विद्या बालन) को बनाया है, जो चार-पांच साल की आंफिस पोस्टिंग के बाद फील्ड पर तैनात हुई है। जहां एक शेरनी आदमखोर हो गई है। कुछ गांव वालों को घायल कर चुकी है।

शेरनी को पकड़ने के लिए जंगल में कैमरे लगाए जाते हैं, पहरेदारी बढ़ाई जाती है, यहां तक दफ्तर में यज्ञ-हवन भी कराया जाता है पर शेरनी को पकड़ने में कामयाबी नहीं मिलती है।

राज्य में विधानसभा चुनाव है तो राजनीति भी तेज है। विद्या किसी भी तरह आदमखोर बाघिन के शिकार के पक्ष में नहीं है। विद्या का बांस बंसल (बृजेन्द्र काला) अपनी जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहता। इसलिए शेरनी को मारने के लिए प्राइवेट शिकारी रंजन राजहंस उर्फ पिंटू भैया (रजत सक्सेना) की मदद लेता है।

इसी बीच यह भी पता चलता है कि शेरनी के दो बच्चे भी है। पूरा विभाग शेरनी को मारना चाहता है और विद्या शेरनी को बचाकर नेशनल पार्क छोड़ना चाहती है।

विद्या अपने मकसद में कामयाब होती है या नहीं? उसे दफ्तर में अपने अभियान के लिए किस पितृसत्तात्मक महौल को झेलना पड़ता है? यहां तक की गांव के लोग भी उसके महिला होने के कारण उसको इस काम के लिए सहीं नहीं मानते है।

यह सब जानने के लिए आपको शेरनी देखनी होगी। यकीन रखें प्रकृत्ति और प्राकृतिक जीवों के साथ हमारा व्यवहार और हमारी सोच कैसे पितृसतात्मक है?, इसकी जानकारी जरूर हो जाएगी।

क्यों देखनी चाहिए शेरनी

शेरनी फिल्म इंसान और वाइल्डलाइफ के टकराव की कहानी है जिसमें काफी एडवेंचर है। साथ ही साथ एक वन अधिकारी की यात्रा हैं जो मानव-पशु संघर्ष की दुनिया में संतुलन के लिए प्रयास करती है।

किरदारों का अभिनय और संवाद जैसे, “जंगल कितना भी बड़ा क्यों न हो, शेरनी अपना रास्ता ढूंढ ही लेती है।”

और “अगर विकास के साथ जीना है तो पर्यावरण को बचा नहीं सकते और अगर पर्यावरण को बचाने जाओं तो विकास बेचारा उदास हो जाता है।” कहानी का सार बयां कर देते है।

साथ ही साथ पर्यावरण और जीव को बचाने या मारने में हमारा स्वभाव कैसे पितृसत्तात्मक बनता है इसको शेरनी की कहानी बयां कर देती है।

निर्देशक अमित मसुर्कर ने अपनी पहली फिल्म “न्यूटन” के बाद इस फ़िल्म को बहुत ही संजीदा तरीके से उठाया है, जिसमें रोमांच, एडवेचर के साथ-साथ पहली बार टाइगर के मुद्दे पर मानवीय और राजनीतिक सरोकार को एक कैनवास पर लाने की कोशिश की है। दर्शकों के साथ संवाद करने और अपनी बात पहुंचाने में कामयाब होते भी दिखते है।


मूल चित्र: Still from movie Sherni

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