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द फैमिली मैन सीजन 2 में मनोज वाजपेयी जी की एक्टिंग की कला के बारे में क्या ही बोलेंगे लेकिन आदत से मजबूर मुझे कुछ महिला किरदार याद रह गए।
मनोज वाजपेयी जी की एक्टिंग की कला के बारे में क्या ही बोलेंगे। बस दुआ कि वो एक से बढ़कर एक किरदार निभाते जाएँ। उन जैसे कलाकारों का होना एक्टिंग की पाकीज़गी बना के रखता है।
मेरे जैसों के लिए कुछ और मायने क्योंकि जब IPKF यानि श्री लंका भेजी गयी और उसके बाद हुए तमाम हादसे और एक प्रधानमंत्री को बम से उड़ा देने का वाकया हमारे बचपन का हिस्सा रहा। पुराने अज़ीज़ दोस्त थे जिनके बेटे इस फ़ोर्स में थे और अपनी मंगनी से 15 दिन पहले एक ब्लास्ट में शहीद हुए।
हमारे जवान दूसरे देश के लिए दूसरे देश की धरती पर। राजनीती में कितने पक्ष विपक्ष में थे नहीं पता लेकिन अगर आप देखें यह सीरीज़ तो आज की पीढ़ी को बताइएगा की ऐसा कुछ हकीकत में भी हुआ था। हाँ वहाँ श्रीकांत तिवारी नहीं थे और थे तो रोक नहीं पाए थे।
बहरहाल बहुत वक्त बीता इस बात को और यह भारत की आधुनिक इतिहास का हिस्सा होगा। ऐसा मेरा मानना है।
द फैमिली मैन के मैन गैंग से हम सब मुतास्सिर है। ब्यूरोक्रेट्स के रोल में तमाम किरदार सधे हुए है। जे.के जैसा एक दोस्त सबकी ज़िंदगी में होना चाहिए।
इस सीरीज़ में उत्तर और दक्षिण भारत के रहन सहन और उसे पूरी तरह न जान पाने की हमारी कमी को भी बहुत, खामोशी से दिखाया गया है। साउथ इंडियन फ़ूड बस इडली डोसा नहीं होता। कुछ खास शब्दों का हर जगह इस्तेमाल सही नहीं है और भी बहुत कुछ लेकिन बोल्ड एंड अंडरलाइन में एक बात- जब बात हिंदुस्तान की हो तो सब नज़रअंदाज़ और नज़र बस दुश्मन पर।
कहानी में एक्शन बेहतरीन और बिलिवब्ल यानि की यकीन लायक है। हीरो बस मारता नहीं मार खाता भी है, गोली खाता है और हवा में उड़ा उड़ा के गुंडों को नहीं मरता। एक भी गाड़ी हवा में नहीं उड़ती। वो क्या है साहब ऐसे उड़ी न तो सरकार हिसाब मांगती है। आखिरी 10 मिनट बॉलीवुड के महान एक्शन हीरो और डायरेक्टर देख ले तो शयद समझे की उनके एक्शन पर सिटी क्यों बजती है लेकिन धड़कन क्यों नहीं तेज़ होती।
श्रीलंकाई तमिल विद्रोही राजलक्ष्मी उर्फ राजी का राज पूरे नौ एपिसोड पर था। किरदार को निभाया है साउथ की सुपरस्टार सामंथा अक्किनेनी ने जो की साउथ सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा है, लेकिन इस वेब सीरीज के जरिए अपना हिंदी डेब्यू कर रही हैं।
बेहद खतरनाक राजी, बलात्कार की शिकार रही है और पिता और माँ का बदला लेने उस समूह में शामिल होती है जहाँ उसे एक आम सी दिखने वाली लड़की से गोर्रिले वॉर फेयर में माहिर लड़ाकू बना दिए जाता है। ये किरदार कितना कठोर और क्रूर है इसका पता सीरीज़ से चले तो अच्छा है। बंदूक, बम से लेकर महज़ हाथ पैर से जान लेने के साथ प्लेन उड़ने वाली ये किरदार बहुत समय तक भूलेगा नहीं।
श्रीकांत तिवारी यानि मनोज बाजपेयी की पत्नी सूचि का किरदार प्रिया मणि ने निभाया है। प्रिया भी साउथ की जानी-मानी अदाकारा हैं। एक हाउस वाइफ से लेकर वर्किंग वूमेन तक, की जिंदगी में क्या-क्या चुनौतियां और परेशानियां आती हैं, इसे उन्होंने अपने किरदार के जरिए बखूबी पेश किया है।
एक कपल के बीच उम्र और वक्त के साथ आने वाली दूरी और प्रेम के रहते भी परेशानियों और तनाव को बखूबी उतारा गया है। शादी और रिश्तों के बीच आज के दौर में काउन्सलिंग की ज़रूरत पड़ सकती है इस लिफाफे को धीमे से इस एक्शन फिल्म के बीच खिसकाना लेखक व डायरेक्टर के परिपक्व और संवेदनशील सोच का परिचायक है।
वहीं इन दोनों की बेटी धृति आज के युवा पीढ़ी को पूरी तरह से पर्दे पर उतरती है। जहाँ नई उम्र का जोश है ज़िंदगी समझने की उलझने है माता पिता के नज़रिये से नाराज़गी है लेकिन फिर भी प्यारी है। प्यार की ज़िद्द भी है जो भारी है। काम काजी माता पिता की वजह से कभी कभी कम्युनिकेशन गैप को बिना किसी गिल्ट के दिखाया गया है।
युवा पीढ़ी बहुत कम उम्र में आकर्षण से सेक्स की तरफ जा रही है, इसे भी दर्शाया गया है बिना उसे सही गलत के टैग के। ऑनलाइन होने वाली दोस्ती और कैसे इस माध्यम से होने वाली दोस्ती साइबर क्राइम से होते हुए आपको जाल में फ़ांस सकती है इसका उदाहरण भी है। जिसे माता पिता अपने बच्चों से बात करने के लिए एक उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल कर सकते है। बस ध्यान रखियेगा की ज्ञान नहीं चर्चा हो सही और गलत की। उनकी भी सुनियेगा बिना जज किये हुए। काफी दुरूह कार्य है।
प्रधानमंत्री के किरदार में सीमा बिस्वास, एक नाम जो दमदार अदाकरी का पर्याय है। अब “बसु” नाम ,क्या सोच के रखा ये तो डाइरेक्टर ही जाने लेकिन किरदार। नो-बकवास, चतुर राजनयिक और स्टील के रूप में दृढ़। ये किरदार और घटनाक्रम जहाँ एक ओर राजीव गाँधी हत्याकांड से प्रेरित मालूम होता है वहीं प्रधानमंत्री के किरदार में आपको इंदिरा गाँधी जी की छवि दिखेगी।
“बसु जिस दिन डर जाएगी इस्तीफा दे देगी।” सीमा बिस्वास अपनी बॉडी लैंग्वेज और डायलॉग डिलीवरी से हर सीन में जान फूंकती है।
चेन्नई की पुलिस अफसर उमायल चाय कॉफी नहीं पीती और बेहिचक व्हिस्की पीती है। यहाँ व्हिस्की पर ज्ञान मत दीजियेगा बात ये है की अपनी मर्ज़ी अपनी ख़ुशी के लिए बेझिझक जीने वाली औरत केंद्र में हैं।
हाँ, इसे अपनाने में आप लोगों को तकलीफ भी हो रही है, फिर भी कभी उसके काम का असर उसके पढ़े लिखे होने की वजह से और तो और वो विदेश में रही या फिर कुछ नहीं तो “फेमिनिस्ट है” ये कह कर आप मन मसोस कर उसे अपना रहे हैं, तो आप ये जान लें कि धीरे ही सही, लेकिन बेझिझक अपने लिए जीने वाली औरतें आ रही हैं वजूद में।
इस आखिरी लाइन पर गौर कीजियेगा बाकि केंद्र में द फैमिली मैन सीजन 2 ही है और अब सीज़न 3 का इंतज़ार है।
मूल चित्र: Stills from Show The Family Man 2
Founder KalaManthan "An Art Platform" An Equalist. Proud woman. Love to dwell upon the layers within one statement. Poetess || Writer || Entrepreneur read more...
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