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वेब सीरीज़ ग्रहण का डायलॉग, "जो हुआ जिनके साथ हुआ और जिन्होंने किया, कोई दान, धन, धर्म, पश्चाताप उसकी माफी नहीं दे सकता...” रूह को छूता है।
वेब सीरीज़ ग्रहण का डायलॉग, “जो हुआ जिनके साथ हुआ और जिन्होंने किया, कोई दान, धन, धर्म, पश्चाताप उसकी माफी नहीं दे सकता…” रूह को छूता है।
उपन्यास ‘चौरासी’ जिसके लेखक सत्य व्याज हैं, जो काफी पसंद की गई थी, उस उपन्यास पर आधारित वेब सीरीज़ ग्रहण ओटीटी प्लेटफांर्म डिज़्नी प्लस हांटस्टार पर रिलीज हुई।
निर्देशक रंजन चंदेल ने ‘ग्रहण’ की कहानी कहने के लिए जिन-जिन कलाकारों का चयन किया है मसलन, पवन मल्होत्रा, ज़ोया हुसैन, अंशुमान पुष्कर और वमिका गब्बी ने अपने अदाकारी से जीवंत बना दिया है।
अंतिम एपिसोड का पवन मल्होत्रा ने जिस चरित्र को निभाया है उसका डायलांग ज़ेहन में जैसे ठहर सा जाता है। जैसे पूरी कहानी उस एक मात्र डायलांग का इंतजार कर रही थी।
पवन मल्होत्रा का चरित्र गुरुसेवक उर्फ ऋषि कहता है, “कोई भी अदालत, कोई भी जांच, कोई कागज़ इतने झूठ इतनी सच्चाई को कैसे समेट पाएगा? जो सच्चाई समय के साथ दफन हो गई उसे कोई जांच कोई इन्क्वायरी निकाल पाएंगी क्या? जो हुआ जिनके साथ हुआ और जिन्होंने किया कोई दान, धन, धर्म, पश्चाताप उसकी माफी नहीं दे सकता उसकी कोई माफी नहीं है।”
यह संवाद दंगे-आगज़नी के समय सब कुछ लुटकर तबाह हो जाने के बाद का जो घाव बचा रह जाता है, उसके मवाद को दबाकर बाहर निकाल देता है। खासकर उस मवाद को दंगों-आगजनी में महिलाओं के साथ घटता है, वह किसी जांच-इन्क्वायरी में दर्ज ही नहीं होती है। इसकी वज़ह महिलाओं का अपनी तकलीफ को दर्ज न कराना और वक्त के साथ आगे निकलने की विवशता है। इसके बाद के संवाद में जो कुछ भी है वह दंगे-आगजनी के राजनीति कैसे काम करती है इसका रोजनामचा है।
आठ एपिसोड में वेब सीरिज़ जिसमें हर एपिसोड कुल 45-56 मिनट का है उसमें प्यार, साजिश और जांच का ताना-बाना अतीत और वर्तमान के साथ जोड़कर इस तरह से प्रस्तुत किया गया है कि पूरी वेब सीरिज़ ग्रहण ध्यान कहीं भटकने नहीं देती है, बांधे रखती है।
कहानी के केंद्र में महिला पुलिस अफसर आईपीएस अमृता सिंह(जोया हुसैन) और उसके पिता गुरसेवक (पवन राज मल्होत्रा) हैं।
अमृता सिंह सिस्टम और सियासत से तंग आकर इस्तीफा दे चुकी है परंतु उसे 1984 सिख विरोधी दंगों की जांच करने के लिए एसआईटी का इंचार्ज बना दिया जाता है। इसमें उसके सहयोग का जिम्मा मिलता है डीएसपी विकास मंडल(सहीदुर रहमान) को जिसके हाथ अमृता के पिता के जवानी की तस्वीर हाथ लगती है, जो जवानी के समय ऋषि रंजन के नाम से जाना जाता था।
अमृता अपने पिता से सच जानना चाहती है लेकिन गुरुसेवल चुप्पी साध लेता है। कहानी हर एपीसोड में बार-बार फ्लैशबैक में चली जाती है जहां ऋषि रंजन एक सिख लड़की मनु(वमिका गब्बी) से प्यार करता है और यूनियन लीडर चुन्नु तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लोगों को सिखो के खिलाफ भड़काता है।
लेकिन क्या आंखो देखी यह घटना सच है? कौन सा राज है जो पिता अपनी बेटी से छुपाए रखना चाहता है? अमृता सिह जांच को अंजाम तक पहुंचा पाती है या नहीं। इन सवालों के जवाब के लिए आपको ओटीटी प्लेटफार्म डिज्नी प्लस हांटस्टार बेवसीरीज देखनी होगी।
“ग्रहण” कहानी भले ही बोकारो में हुए 84 के दंगों की आगजनी की है, पर कहानी चाहे फ्लैशबैक में चले या मौजूदा समय में दोनों जगह दो प्रेम कहानी को साथ लेकर चलती है। दोनों ही प्रेम कहानियों मे प्रेम का हर मानवीय पहलू भरा हुआ है।
एक तरफ ऋषि और मनु का प्रेम जहां भागकर नहीं माता-पिता के आर्शीवाद के साथ जीवन आगे बढ़ाना चाहता है। तो दूसरी तरफ वर्तमान में अमृता और गुरसेवक जैसे बाप-बेटी की प्रेम है जिसमें बेटी अपने दंगों के दोषी पिता का सच जानने के लिए सब कुछ कर जाती है।
सबसे ज़रूरी चीज़ यह है कि कहानी में दंगों में महिलाओं से साथ क्या-क्या होता है, बच्चे जो घर में अलमारी या बेड के नीचे छिप कर सब कुछ देखने को मजबूर होते हैं, उनके साथ क्या-क्या होता है? और दंगे और आगजनी में जो लोग शामिल होते है वो क्यों शामिल होते हैं और उनका जीवन कैसे तबाह हो जाता है? जो इसकी राजनीति करते हैं वो कैसे सफल हो जाते हैं? इन सारी सच्चाईयों को खूबसूरत तरीके से समेटा है।
खासकर, एपिसोड सात में, कैसे वाट्सएप संदेश से दंगे फैलते हैं, उसको जिस तरह से दिखाया गया है, वह सामाजिक संदेश भी देता है कि वाट्सएप मैसेज पर भरोसा करके कुछ भी करने के लिए अमादा न जो जाएँ। इन सामाजिक सच्चाई को जानने-समझे के लिए यह सीरीज़ देखनी चाहिए क्योंकि हमारे सामाजिक जीवन में इस तरह की घटनाएं बराबर होती हैं और हर नागरिक को इससे सतर्क होने की जरूरत है।
एक नहीं कई सारे दव्दों को सही तरीके से कहानी में पिरोया है निर्देशक रंजन चंदेल ने और कलाकारों ने तो अपने अदाकारी से चार चांद ही लगा दिए हैं।
नवोदित कलाकार अंशुमन पुष्कर ने “जामताड़ा” और “काठमांडू कनेक्शन” के बाद इस सीरिज में भी प्रभावित करते हैं।
पवन मल्होत्रा ने गुरुसेवक के किरदार में कमाल किया है अपनी खामोशी से ही वह अपने अभिनय की छाप छोड़ते हैं।
ज़ोया हुसैन ने असरदाल अभिनय किया है अपने फिल्म मुक्केबाज, लाल कप्तान, ब्लैक फ्राइडे और सलीम लंगड़े को मत रो जैसी फिल्मों में वह पहले भी दिखी हैं।
सत्यकाम आनंद ने भी अपने अभिनय को काफी संतुलन में रखा है।
इन सारे अभिनेता से सही अदाकारी निकालने में निर्देशक रंजन चंदेल सफल रहे है। दो टाइम फ्रेम 84 और मौजूदा दौर के कहानियों को दिखाने में कोई चूक नहीं होने दी है।
बस शुरुआती एक गलती कि कहानी में सारे किरदारों के पास बड़े-बड़े स्मार्ट फोन दिख रहे हैं, जो बता रहा है कि स्मार्ट फोन के समय कहानी चल रही है फिर एक पत्रकार अपनी एस्क्लूसिव रिपोर्ट फाइल में किसी को देने की बेवकूफी कैसे कर सकता है और वो भी मेल, वाट्सएप और तमाम सोशल मीडिया के जमाने में।
वेब सीरीज़ ग्रहण की पूरी कहानी का जो महिला पक्ष है वह कमोबेश शांत ही रहता है फिर चाहे वह मनु छाबड़ा का सच हो या उसके लड़की का जिसके माता-पिता दंगे के आग में सामने झोंक दिए गए हों। और, दंगों से बच गया छोटा भाई नशे के लत में डूबकर खत्म हो गया या फिर उस सामाजिक संस्था के दीवार पर टंगी हुई तस्वीरें…जो सिर्फ टंगी हुई हैं, पर दंगों में मरे हुए लोगों की सच्चाई बयां कर दे रही हैं…
मूल चित्र : Still from Web Series Grahan, YouTube
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