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एक इंसान पर बोझ न डालें रिश्ते का, क्योंकि रिश्ते दो लोगों से बनते हैं और इन रिश्तों को चलाने के लिए जानते हैं कि कम्युनिकेशन क्या है...
एक इंसान पर बोझ न डालें रिश्ते का, क्योंकि रिश्ते दो लोगों से बनते हैं और इन रिश्तों को चलाने के लिए जानते हैं कि कम्युनिकेशन क्या है…
किसी भी रिश्ते की शुरुआत बातों से होती है। जैसे जब आप नए स्कूल में गए थे। वहां आप किसी को नहीं जानते थे। आप उनसे मिले, उनसे बातें की। तब उन्होंने आपके तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया। बातों का सिलसिला यूं ही चलता रहा और आप जब स्कूल से निकले तो आपके कई सारे दोस्त और बेस्ट फ्रैंड हो जाते हैं। पर हम सिर्फ यही बातचीत तो नहीं करते।
चाहे आप किसी भी रिलेशनशिप में हो, पेरेंट्स और बच्चे का, दोस्त का या आप एक रोमांटिक रिलेशनशिप में हो। रिलेशनशिप में सबसे ज्यादा जरूरी है बातें करना और सिर्फ बातें ही नहीं ओपन कम्युनिकेशन स्किल्स अपनाना।
तो इस लेख में आप इसी बात (याने संवाद) के बारे में जानेंगे, ताकि, आपका रिश्ते भी मजबूत हो।
कम्युनिकेशन क्या है? आप जब किसी से अपने कोई भी विचार साझा करते हैं, वही है कम्यूनिकेशन।
जिसमें एक प्रेषक (जो बोलने वाला होता है), एक ग्रहणकर्ता (जो सुनने वाला होता है)। प्रेषक सबसे पहले कोई विचार जो उसे कहना होता है उसे तैयार करता है, जिसे एनकोडिंग कहते हैं। फिर वह किसी माध्यम से उसे ग्रहणकर्ता तक पहुंचाता है।
ग्रहणकर्ता उस मैसेज को समझता है, जिसे डिकोडिंग कहते हैं। फिर वह इसपर फीडबैक देता है। बीच में एक शोर भी होता है, जो संचार माध्यम में बाधा ला सकता है।
जैसे इस मैं प्रेषक हुआ, जिसने यह लेख लिखा है, जिसने इस वेबसाइट के माध्यम से अपनी बात आप तक पहुंचाई, आप ग्रहणकर्ता जिसने मेरे लेख को पढ़ा और समझा।
फिर कमेंट करके आपने मुझे फीडबैक दिया की आपने क्या समझा? यहां इंटरनेट की समस्या शोर है। जो कभी कभार ठीक न होने के कारण आप तक मेरा संदेश नहीं पहुंचता या शोर यह भी हो सकता है, जब आप पढ़ रहे हो तो कोई आपको टोक दे। मोटा-माटी समझिए कि किसी प्रकार की बाधा।
यह सिद्धांत जितना आसान लगता है। यह उतना ही मुश्किल भी है। आप कह सकते हैं कि आप यह बिना जाने भी तो संचार कर ही रहे थे। तो मैंने यह बताकर कौनसा तीर मार लिया? जब आप कम्यूनिकेशन का कोई कोर्स करें तो आपको कई सारी कम्यूनिकेशन थ्योरियां मिलेगी। मेरा बताना यह भी नहीं। तब आप बेहद कन्फ्यूज हो जाएंगे।
यहां मैंने इसे समझाया ताकि आप रोजमर्रा में बात करते हैं तो खुद को इसमें देख सके। एहसास कर सके एकबार कि आप जो कह रहे हैं, वह सुनने वाले को पूरी तरह समझ आती भी है या नहीं। शोर को समझ सके।
एक शोर यह भी है, जो मेरा अपना कहना है कि आपने जिंदगी का एक अलग अनुभव किया है। आप जिनसे अपनी बात कहते हैं, उन्होंने जिंदगी का अलग अनुभव किया है। सभी के अपने-अपने अलग-अलग अनुभव होते हैं। आप सुने समझे और इसे जाने।
उदाहरण के लिए आप एक टीचर और एक स्टूडेंट के बीच के संबंध से समझ सकते हैं। टीचर ने काफी पढ़ाई की हुई है, वहीं स्टूडेंट वह पढ़ ही रहा है। तो टीचर को समझाने के लिए स्टूडेंट को समझना पड़ेगा। उसे सही एनकोडिंग करनी पड़ेगी। जिसे स्टूडेंट डीकोड करेगा। तब वह फीडबैक देगा। तो टीचर को समझ आएगा कि स्टूडेंट समझ रहा है या नहीं।
आप खुद के रिलेशनशिप में इस संचार को समझे ताकि जहां दिक्कत आ रही है, वहां आप सुधार कर सके। तो समझे न, कम्युनिकेशन क्या है?
जैसे एक बच्चा अपनी होमवर्क करके खेल रहा है। तभी उसके पैरेंट्स आकर उसे बिना सोचे समझे डांटने लगे की तू बिना होमवर्क किए खेलने लगा।और शायद इस डांट के कारण बच्चा कुछ कर बैठे या अपने पैरेंट्स से लड़ने लगे तो स्थिति बिगड़ सकती है। अगर, यहां बैठकर आराम से शांति से बात की जाए। पूछा जाए कि होमवर्क कर लिया की नहीं। तो स्थिति ही आप देख सकते हैं तुरंत बदल जाएगी। इसीलिए, कितना जरूरी हो जाता है संचार करना।
संचार बेहद ही अहिंसक ढंग से होना चाहिए। याने शांति से, आराम से, चिल्लाकर नहीं बल्कि प्यार से कहना। और सिर्फ कहना नहीं सुनना, बीच में टोकना नहीं।
संचार बिल्कुल भी हिंसक ढंग से न हो। याने गुस्से में, ऊंची आवाज़ से, दूसरों को कमतर करते हुए, धमकाकर। साथ ही कभी पूर्वाग्रह (पहले से तय विचार) रखकर बात न करें।
बौद्ध धर्म में कहते हैं कि अगर आपको कभी किसी स्थिति में गुस्सा आ रहा हो तो तीन प्रश्न खुद से करना:
एक बार आप ये प्रश्न करके देखें। आप जरा रुककर, टहरकर बोलें। रिएक्ट करने के बजाय रेस्पॉन्ड करें।
अक्सर ब्यॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड आपस में लड़ जाते हैं। फिर मन-मुटाव खत्म करने के लिए वे संडे शाम को डेट प्लान करते हैं। पर ठीक उसी दिन आपका पार्टनर कह दे वे किसी कारण से नहीं आ सकते।
फिर आप अगली बार जब बात करें उनसे तो गुस्सा आ रहा हो आपको तो थोड़ा रुककर, समझने कि कोशिश करें। उनसे बात करके उनके पक्ष को भी समझें। तुरंत रिएक्ट न करें, बल्कि, कम्यूनिकेट करें।
संवाद में सबसे ज्यादा जरूरी बोलना नहीं सुनना होता है। सबसे पहले अपने अंदर की भीतरी आवाज को सुनें और अपने विचारों संदर्भों का अवलोकन करें, चिंतन मनन करें।
जब आपके साथी बोल रहे हो तो उस वक्त भी सुने। सुनने के लिए सुनें, न की बोलने के लिए। अक्सर हम बोलने के लिए सुनते हैं।
‘हां, मुझे इसके बाद यह कहना है’ नहीं, अपने साथी की बात सुनें।
पहले जो आप कहना चाहते हैं, उसे पहले खुद समझें। फिर समझाएँ। समझाना एक कला है। इसे आप अभ्यास करके सीखें।
किसी भी नए ओर मुश्किल संवाद से पहले अपने आप को एकत्रित करें। उस संवाद में खुद की मानसिक और शारीरिक तौर पर मौजूदगी लाएँ। आंखों में आंखें डालकर बात करें। ध्यान से वहां मौजूद रहे।
जिस भी भूमिका में रहकर आपको किसी परिस्थिति को समझना हो तो उस भूमिका को निभाए। जैसे आप जब पिता है तो पिता, पति है तो पति की भूमिका में रहे।
हमेशा अपनी बातों में ऐसे शब्द डालें जिससे की सामने वाले के मन में उसका चित्र बने।
हमेशा गंभीर न रहे। थोड़ा बातों में हंसी मजाक लाए। सामने वाले का मज़ाक़ न उड़ाए, खुद पर हंसे। स्थिति को हल्का बनाए।
अपनी आवाज को अलग-अलग ढंग से इस्तेमाल करें। एक ही टोन में बात न करें। जैसे रात के 12 बजे चिल्लाकर तो बात नहीं करेंगे। थोड़ा परिवर्तन करते रहें, स्थिति के अनुसार टोन में।
जैसे कोई बुनकर कपड़े को बरी बारीकी के साथ बुनता है। तुम भी रिश्तों को बुनो।
आप किस विषय संदर्भ में बात कर रहे हैं, उसे अपनी बातों के माध्यम से स्थापित करें।
जैसे एक कथावाचक अपनी कहानी सुनाता है। तुम भी अपनी बात कहानी की तरह सुनाओ। क्योंकि अक्सर लोग समझ नहीं पाते, उन लोगों से कहानी सुनाने के ढंग से बात करें। वे उस कहानी में खुदको देखने लगेंगे तो आपसे बातें करने में सहज हो जाएंगे।
पैरेंट्स और बच्चों के बीच बदलते दौर में कम्युनिकेशन क्या है? हम नए जमाने की ओर हमेशा आगे बढ़ते रहते हैं। वहीं हमारे पैरेंट्स अपने जमाने में रह जाते हैं। यह रस्सा-कस्सी जैसी स्थिति है, यहां दोनों के बीच दूरियां आ सकती है। छोटी छोटी बातों पर घर पर नकारात्मक ऊर्जा आ सकती है। इस दूरी को बातों के माध्यम से सुलझाएँ।
जैसा मैंने बताया कि अनुभव का अंतर हो सकता है। उससे पार पाना है तो अहिंसक ढंग से बातें करें और अपने विचारों को साझा करें। इससे दूरियां नजदिकियां में बदल जाएगी।
जैसे एक बच्चा अपने बॉयफ्रेंड को घर लाना चाहता है। वहीं पैरेंट्स इस चीज को समझते ही नहीं और उस बात को एक नकारात्मक तरीके से लेते हैं। तो आप पैरेंट्स के तौर पर बच्चों को और बच्चे को पैरेंट्स के तौर पे शांति से अपनी बात समझाएं। बैठकर शांति से बात करें तो समझा जा सकता है।
हर पैरेंट्स और बच्चों के बीच में स्थितियां सभी की अलग-अलग हो सकती है। अलग प्रकार से टॉक्सिक माहौल घर पर बना हो सकता है। इसके लिए आप एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें, थेरेपी सेशन करें। आप अपने रिलेशनशिप को बचाना चाहते हैं, प्रेम से भरा और अटूट बनाना चाहते हैं तो मदद लेने से न हिचके।
रोमांटिक रिलेशनशिप में कम्यूनिकेशन क्या है? जब आप लंबे समय तक एक रोमांटिक रिश्ते में होते हैं तो कभी न कभी एक अस्वस्थ्य संचार की स्थिति आ सकती है। आपमें नकारात्मक विचारों का आना हो सकता है। जो बातें आपको शुरू-शुरू में प्यारी लगती हों कहीं वही बातें आगे चलकर झगड़े का कारण न बनें।
आपको अपने पार्टनर का कमरे को साफ सुथरा न रखना शुरू में ठीक सा लगे, क्योंकि आप प्यार में थे। पर आपको धीरे-धीरे साफ सफाई की जिम्मेदारी न लेने के कारण उनपे ग़ुस्सा आ सकता है। इसके लिए आप प्यार से शांति से बात करें। तुरंत गुस्सा न हो। रेस्पॉन्स करें अच्छे से। तो छोटी-छोटी बातों से डील किया जा सकता है।
कभी कभार आपके पार्टनर आपको छोड़कर अपने दोस्तों को समय देने लगे। इस कारण आपमें जलन का भाव आ सकता है। ऐसी स्थिति में आप कुछ भी सोच सकते हैं।
मन है भी काफी चंचल। यह अचानक नकारात्मक ख्यालों से भर जाता है। शायद वो हमें प्यार नहीं करते इसीलिए हमें समय नहीं दे रहे। जैसे भरे गिलास में आप पानी डालेंगे तो पानी गिरने लगेगा, वैसी ही स्थिति में आप चले जाते हैं। इससे खुद को बचाएँ। खुद को समय दें। शाम को आपका क्या प्लान है? अपना काम करें। दूसरे के दिमाग में क्या चल रहा है, ये सोचना आपका काम नहीं है।
फिर जब आपके पार्टनर को समय मिले तो आप खाली मन से बात करें। ‘बात करने के लिए बात करें’ अनुरोध करें। जब बात करें उस समय भावनाओं में बहकर गुस्सा न करें, चिल्लाए नहीं।
आपके पूर्वाग्रह की जिम्मेदार आपके साथी नहीं। उनसे नम्र दिल से बात करें। समस्या बताएँ और मिलकर सुलझाएँ। एक इंसान पर बोझ न डाले रिश्ते का , क्योंकि रिश्ते दो लोगों से मिलकर बनते हैं। एक सकारात्मक संचार का माहौल बनाए रखे।
सकारात्मक संवाद याने बहस नहीं, चर्चा करना। आप डिबेट करने के बजाय, अपने साथी के साथ चर्चा करें। इसे हार जीत का विषय न बनाए। क्योंकि रिश्तों में कभी हार जीत नहीं होती। रिश्तों में प्यार होता है।
अगर स्थिति न संभले, रिश्ता कड़वा और जहरीला बनता जाए तो किसी रिलेशनशिप एक्सपर्ट की मदद ले। मदद से झिझक न करें।
इतना मैंने बोलने पर जोर दिया। मेरी दर्खास्त है कि आप चुप भी रहना सीखें। हर संचार बोलकर ही हो जरूरी नहीं। चुपचाप बिना बोले अपने साथी की आंखों में आंखें डालकर अपनी ऊर्जा का संचार करें। यह भी रिलेशनशिप को मजबूत बनाने का तरीका है।
ध्यान रखे जैसे संगीत और पेंटिंग्स जैसी कलाओं में पारंगत होने के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है, वैसे ही संचार भी एक कला है। अभ्यास करते रहिए।
यह न सोचें की कोई एक्सपर्ट है। सब नौसिखिए हैं। आप भी सभी की तरह सीखें। अपना संचार का तरीका निकालें। पर संचार जरूर करें। क्योंकि किसी भी रिलेशनशिप में सबसे ज़्यादा ज़रूरी है बात करना।
मूल चित्र : मूल चित्र: Ketut Subiyanto via Pexels
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