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पर्यावरण को बचाएंगे तभी ज़िंदा रह पाएंगे, ये 5 कहानियां आपके लिए

पेड़-पौधे लगाकर, पानी बचाकर आप किसी और पर नहीं खुद पर एहसान कर रहे हैं क्योंकि पर्यावरण को बचाएँगे तभी ज़िंदा रह पाएँगे।

पेड़-पौधे लगाकर, पानी बचाकर आप किसी और पर नहीं खुद पर एहसान कर रहे हैं क्योंकि पर्यावरण को बचाएँगे तभी ज़िंदा रह पाएँगे।

मानव हमेशा ये बात भूल जाता है कि वो भी एक जानवर ही है, फर्क सिर्फ इतना है कि बस वो एक सामाजिक जानवर है, सोशल ऐनिमल। यूँ तो हमने अपना काफ़ी नुकसान कर दिया है, लेकिन वो कहते हैं ना देर आए दुरुस्त आए, इसलिए वक्त हमेशा आपको सुधरने का एक मौका ज़रूर देता है।

अपनी प्रकृति को बचाने का संकल्प लें ताकि आप अपनी ही नहीं आने वाली पीढ़ी को भी पर्यावरण का महत्व समझा सकें। वरना मोबाइल और वीडियो गेम्स में घुसे रहने वाले बच्चे ये भूल ना जायें कि उन्हें ऑक्सीजन किसी फोन से नहीं बल्कि पेड़ से मिलता है।

मैं आज आपको कुछ ऐसी कहानियाँ बताती हूँ जिसे सुनकर शायद आप भी पर्यावरण से प्यार करने लगें।

तुलसी गौड़ा अम्मा

कर्नाटक के अंकोला में होन्नाली नाम का एक गाँव है। इस गाँव में रहती हैं तुलसी गौड़ा अम्मा। 72 साल की तुलसी अम्मा जब छोटी थीं तभी से हर साल पेड़-पौधे लगाती है। पिछले 60 साल में वो एक लाख पेड़-पौधे लगा चुकी हैं।

साधारण सा जीवन जीने वाली तुलसी अम्मा ने अपनी कोशिश से पर्यावरण में बहुत सारी ऑक्सीज़न भर दी है। उन्होंने ना तो स्कूल में कभी पढ़ाई की है और ना ही कोई किताबी ज्ञान है। फिर भी उन्हें पेड़-पौधों के बारे में किसी भी पर्यावरणविद् और वैज्ञानिकों से ज़्यादा ज्ञान है।

तुलसी गौड़ा को ‘एन्साइकलोपीडिया ऑफ फोरेस्ट’ के नाम से जाना जाता है। ये पेड़-पौधे तुलसी अम्मा के बच्चों की तरह हैं, जिन्हें वो प्यार से पालती-पोसती हैं। पर्यावरण के प्रति अपने इसी प्यार के कारण उन्हें 2020 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

मुन्नार की सीता अनंतसिवान

सीता अनंतसिवान की बचपन की छुट्टियां मुन्नार के खूबरसूरत नज़ारों और प्रकृति के बीच बीता करती थीं। गर्मियों की छुट्टियों में पहाड़, पेड़ और जंगलों में बिताए वक्त ने इतनी गहरी छाप छोड़ी कि सीता ने इसे अपना करियर ही बना लिया।

IIM से ग्रेजुएशन करने के बाद सीता चाहतीं तो कहीं भी नौकरी पा सकती थीं लेकिन 70, 80 के दशक में भी उन्होंने अन्कवेंश्नल करियर को चुना। उन्होंने WWF यानि वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फाउंडेशन में नौकरी की और पर्यावरण को बचाने की दिशा में जुट गई।

अनुभव इकट्ठा करने के बाद सीता अपने बचपन के प्यार मुन्नार लौट आईं और वहीं पर रहकर जंगल के इकोलॉजिकल सिस्टम को समझने लगीं।

इसके बाद शुरू हुआ अपने प्रकृति प्रेम को दूसरों के साथ बांटने का सिलसिला। बच्चों के बीच इकोलॉजिकल सिस्टम की शिक्षा को बढ़ाने के लिए सीता ने प्रक्रिया ग्रीन विज़डम स्कूल जो बाद में भूमि कॉलेज बना, की स्थापना की।

बैंगलोर स्थित ये कॉलेज 4 एकड़ में फैला है जहाँ पेड़-पौधों की 100 से अधिक प्रजातियां हैं और 70 से अधिक पंछी और तितलियां भी हैं। भूमि कॉलेज में बच्चों को प्रकृति से जुड़ी हर चीज़ के बारे में सिखाया जाता है। उन्हें मिट्टी से घर, जल संरक्षण, सौर ऊर्जा सहित हर प्राकृति चीज़ों का प्रैक्टिल ज्ञान दिया जाता है।

सीता अपने कॉलेज के बच्चों और वॉलिटिंयर्स के साथ मिलकर समाज के बीच पर्यावरण की नई परिभाषा लिख रही हैं।

फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया

फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया, जाधव मोलाई पर यह कहावत बिल्कुल सही बैठती है कि कौन कहता है आसमान में छेद नहीं हो सकता, एक पत्थर तबीयत से तो उछालो यारो। माने कोई भी काम ऐसा नहीं है जो इंसान ठाने और कर ना सके। जाधव मोलाई ने भी कुछ ऐसा ही काम ठाना और भारत के असम राज्य में अकेले के दम पर न्यूयॉर्क सेंट्रल पार्क से भी बड़ा जंगल खड़ा कर दिखाया।

1360 एकड़ में फैले इस जंगल का एक-एक पौधा उन्होंने अपने प्यार से बोया और सींचा है। इस जंगल का नाम उन्हीं के नाम पर है ‘मोलाई’, जो बाघ, भारतीय गैंडे हिरण, खरगोश हैं और बंदरों समेत कई जानवरों का घर है।

जाधव की कहानी भी उनके बचपन से शुरू होती है। असम के जोरहाट में कोकिलामुख गाँव में 16 साल का बालक अपने गाँव में आई भयानक बाढ़ के कारण कई साँपों को मरते हुए देखता है तो उसे बहुत दुख पहुंचता है।

उस घटना का मोलाई पर ऐसा असर होता है कि वह अपना जीवन जंगल और जंतुओं के नाम कर देते हैं। 30 साल की उनकी मेहनत आज पूरी दुनिया देख रही है।

2015 में उन्हें पद्मश्री से भी नवाज़ा गया था। उनकी कहानी अतुलनीय है कि कैसे एक शख्स ने उजाड़ भूमि को जंगल में बदल डाला। वो कहते हैं कि, “हमारी शिक्षा पद्धति कुछ एसी होनी चाहिए, कि हर बच्चे को कम से कम दो वृक्ष लगाने ज़रूरी होने चाहिए।”

पानी का महत्व पेड़ पोधे से काम नहीं 

पर्यावरण के लिए जितने ज़रूरी पेड़-पौधे हैं उतना ही ज़रूरी है पानी। हम बचपन से स्कूल की किताबों में पढ़ते आ रहे हैं कि जल नहीं तो जीवन नहीं। इसलिए जिस तेज़ी से हम पानी को बर्बाद कर रहे हैं उससे कहीं ज्यादा तेज़ी से हमें इसे बचाने की ज़रूरत है। आगे की दो कहानियां कुछ ऐसी की सफल कोशिशों की हैं।

भारत के जल पुरुष राजेंद्र सिंह 

भारत के जल पुरुष का जन्म 1959 को उत्तर प्रदेश के बागपत में हुआ था। हाई स्कूल पास करने के बाद राजेन्द्र ने भारतीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक महाविद्यालय से डिग्री पाई और फिर गाँव में ही प्रैक्टिस करनी शुरू कर दी।

1981 में शादी होने के डेढ़ साल बाद ही वो सारा सामान बेचकर जेब में 23 हज़ार रुपए लेकर पानी की लड़ाई लड़ने के लिए निकल गए। अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर उन्होंने ये लड़ाई जारी रखी और पानी की समस्या से जूझ रहे राजस्थान के एक हज़ार गाँवो की किस्मत बदल दी।

दुनिया के प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक मैग्सेसे से सम्मानित राजेंद्र सिंह दुनिया के उन 50 लोगों की सूची में शामिल हैं जिनके भरोसे धरती को बचाया जा सकता है। वे देश की कई नदियों को पुनर्जीवित कर चुके हैं।1980 में राजस्थान के जल संकट पर काम करने के बाद धीरे-धीरे समूचे देश में उनका आंदोलन फैल गया। पिछले साढ़े तीन दशकों के दौरान राजेन्द्र जी ने ग्यारह हजार आठ सौ एनीकट्स और चेक डैम बनाए हैं।

वॉटर मदर ऑफ़ इंडिया अमला रुइया

अमला रुइया जिन्हें देश की वॉटर मदर कहा जाता है। भारत में जल संरक्षण का जितना काम अमला रुइया ने किया है, शायद ही किसी और ने किया हो। यूपी में जन्मी और पली-बढ़ी अमला वो महिला हैं जिन्होंने वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से चेक डैम बनाकर मरूस्थल राजस्थान के सैकड़ों गांवों की तस्वीर बदल दी।

अमला जाने-माने डालमिया परिवार से आती हैं जिन्होंने बिहार में डालमिया नगर बसाया था। संपन्न और समृद्ध अमला ने जल से जूझ रहे लोगों के दर्द को अपना समझा और साल 2000 में राजस्थान पहुंचकर जल संरक्षण का काम शुरू कर दिया। उन्होंने अपने संसाधनों का उपयोग लोगों की भलाई के लिए किया और आकार फाउंडेशन के ज़रिए किसानों को खेती के लिए पानी की सुविधा दी।

आज अमला की मेहनत की बदौलत राजस्थान के 100 गांवों के किसान खुशहाली से जीवन काट रहे हैं। उनकी टीम ने अन्य राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, और छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा जिले में चेक डैम बनाना शुरू कर दिया है और बिहार, हरियाणा, उत्तरांचल और उत्तर प्रदेश में विस्तार करने की योजना बनायी है।

अमला रुइया की योजना अपने जीवनकाल में कम से कम 3000 चेकडैम बनाने की है। देश की महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं की सूची में उनका नाम भी शामिल हैं। 2018 में अमला रुइया को इंडिया आई इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स ऑब्जर्वर अचीवमेंट अवार्ड सम्मान से नवाजा गया।

ये प्रकृति अगर बर्बाद हो जाएगी तो आप भी नहीं बचेंगे। इंसान का शरीर भी पाँच तत्वों, भूमि, जल, आकाश, अग्नि और वायु से बनता है। वैज्ञानिक तरीके से समझाऊं तो आपके शरीर में 70% पानी है, सांस लेने के लिए आपको साफ हवा चाहिए, आपका खाना वो अग्नि है जो शरीर को चलता ही और आकाश तत्व है आपका मन। जैसे आसमान की कोई सीमा नहीं होती वैसे ही आपके मन की शक्ति भी असीमित होती है।

आपका शरीर खुद प्रकृति ही है। ये पेड़-पौधे लगाकर, पानी बचाकर आप किसी और पर नहीं खुद पर एहसान कर रहे हैं क्योंकि पर्यावरण को बचाएँगे तभी ज़िंदा रह पाएँगे।


मूल चित्र: Volvo Cars India Via Youtube

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