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सिलबट्टा-क्रांति छेड़ने वालों की इस महिला को भी ज़रुरत है…

आप या तो हिंसा के समर्थक दिखेंगे या हिंसा के विरोध में। इसके लिए न किसी गांधीवादी दर्शन की जरूरत है न ही किसी मार्क्सवादी दर्शन की।

आप या तो हिंसा के समर्थक दिखेंगे या हिंसा के विरोध में। इसके लिए न किसी गांधीवादी दर्शन की जरूरत है न ही किसी मार्क्सवादी दर्शन की।

चेतावनी : इस लेख में महिला के खिलाफ हिंसा का वर्णन है तो ट्रिगर साबित हो सकता है 

औपनिवेशिक शासन और गुलामी की मानसिकता से आज़ादी मिलने के बाद आर्थिक गतिशीलता को मानवीय विकास के लिए बहुत ही जरूरी कदम समझा गया। अस्सी के दशक के मध्य आते-आते यह समझ में आ गया कि आर्थिक गतिशीलता के साथ-साथ आधुनिकता का मंत्र भी फूंकना होगा, जिससे देश के कई और समस्याओं का समाधान हो सकता है।

परंतु, आधुनिकता भी पुरातन समय से चली आ रही कुछ समस्याओं का समाधान खोजने में नाकायाब रही, खासकर महिलाओं के जीवन से जुड़ी समस्याओं और सवालों का जबाव खोजने में।

सोशल मीडिया पर मध्यप्रदेश के अलीराजपुर की 20 साल की महिला का वीडिओ तेजी से वायरल हुआ। जिसमें वह महिला शादी के बाद पति के गुजरात काम करने चले जाने के बाद अपने मामा के घर चली आई।

क्या था सोशल मीडिया पर वायरल वीडिओ

पहली विडिओ में उसके ही घर के पुरुष उसे दौड़ा-दौड़ाकर महिला को पीट रहे हैं, लात-घूसों से और समाज के लोग तमाशा देख रहे है। दूसरे वीडिओ में उसे उसे रस्सी से बांधकर पेड़ पर लटका दिया गया और तीन पुरुष एक-दूसरे के पास धक्का दे रहे हैं बारी-बारी से सभी उसपर डंडे बरसा रहे हैं, वह चिल्ला कर रो रही है। समाज तमाशाबीन बनकर देख रहा है।

गलती चाहे किसी की भी हो सम्मान पीड़ित महिला का ही दांव पर लगता है

ज़ी न्यूज़ इंडिया की ख़बर की मुताबिक वीडिओ वायरल होने के बाद पुलिस ने महिला को पीट रहे पुरुषों को गिरफ्तार कर लिया है जो उसके पिता और भाई ही है। पुलिस उनको जो सजा दे, परंतु क्या वह उस महिला का सम्मान वापस दिला सकती है? क्योंकि एक लोकतांत्रिक देश का जो भी तकाजा हो भारतीय समाज का तो तकाजा यही है कि गलती करने वाला भले शर्मिदा न हो पीड़ित अगर महिला हो तो लोक-लाज में जीती है मानों जैसे गलती उसकी ही हो।

महिलाओं के पैदा होने के पहले से जो हिंसा(भ्रूण हत्या वाली हिंसा) शुरु होती है तो उसके मृत्युपर्यत तक चलती रहती है, यह महिलाओं के जीवन से जुड़ा हुआ कटू सत्य है। दुनिया भर की सरकारें, चाहे वह कितनी ही लोकतांत्रिक या तानाशाही क्यों हो महिलाओं के जीवन से हिंसा का नाश तो नहीं कर सकी हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है। परंतु, इसी लोकतांत्रिक और सामंती समाज में सोशल मीडिया पर सिलबट्टे की चटनी के लिए संवेदनशील लोग सिलबट्टा क्रांति तक छेड़ देते हैं।

पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?

हिंसा के इतने गंभीर मामलों में उनका मौन बता देता है कि पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है? आप किसी भी राजनीतिक विचारधारा के मुरीद हों, आप किसी भी पार्टी के मुनसिब हो, आप धार्मिक, जातिय, आर्थिक आधार पर विभाजित किसी भी समाज या समुदाय के हों, किसी के भी खिलाफ, किसी भी कारण से हिंसा की ऐसी किसी भी घटना के खिलाफ अगर आप मौन हैं, तो यकीन मानें हिंसा की लकीर इतनी महीन और पतली है कि आपको भी बे-पर्दा कर देगी।

आप या तो हिंसा के समर्थक दिखेंगे या हिंसा के विरोध में। इसके लिए न किसी गांधीवादी दर्शन की जरूरत है न ही किसी मार्क्सवादी दर्शन की।

आज के दौर में जब यह कहा जाता है कि अपना देश बदल रहा है। महिलाओं के साथ सार्वजनिक रूप से  हिंसा के किसी भी मामले में समाज का उकड़ू बनकर बैठे रहना, यह बताने के लिए काफी है कि भले ही महिलाओं ने सफलता के तमाम नई कहानियां लिखी हैं और रोज लिख भी रही हैं अंतत: महिलाओं की वास्तविक स्थिति ढाक के तीन पात जैसी ही है।

जब तक आम महिलाओं के हालात में कोई बदलाव नहीं आता है, देश के सुरते-हाल बदलने से कुछ खास बदलने वाला नहीं है।

मूल चित्र : zeenews.com

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