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तुम बहू नहीं बेटी हो मेरी…

“तुम्हारी माँ क्या कहेंगी? हम तो उनके साथ भी काम करवाते हैं। अब अपनी बेटी के साथ करवा रहे हैं, तो कौन सा आसमान टूट पड़ेगा?”

“तुम्हारी माँ क्या कहेंगी? हम तो उनके साथ भी काम करवाते हैं। अब अपनी बेटी के साथ करवा रहे हैं, तो कौन सा आसमान टूट पड़ेगा?”

“पापा प्लीज! आप रहने दीजिए, मैं कर लूंगी, मुझे अच्छा नहीं लगता, आप यह सब काम करें। अभी माँ देख लेंगी तो मेरी शामत आ जाएगी, आप तो बच जाएंगे।”

“तुम्हारी माँ क्या कहेंगी? हम तो उनके साथ भी काम करवाते हैं। अब अपनी बेटी के साथ करवा रहे हैं, तो कौन सा आसमान टूट पड़ेगा?”

“अरे नहीं पापा! माँ बहुत नाराज होती हैं, कहती हैं तुम्हें शर्म नहीं आती है अपने ससुर से काम करवाते हुए। अब आप ही बताइए पापा मैं कभी आपसे कहती हूँ क्या काम करने के लिए? मैं तो आपको मना ही करती हूँ लेकिन पता नहीं आपको काम करने में कितना मज़ा आता है, जो आप मानते ही नहीं। खुद भी माँ की चार बातें सुनेंगे और मुझे भी सुनवायेंगे।”

“शुभी बेटा तुम्हें नहीं पता कि तुम्हारी सास बुढ़िया हो गई है और सठिया रही है इसलिए हर समय बड़बड़ करती रहती है, तुम ध्यान ही मत दिया करो।” और ससुर बहू दोनों मिलकर हंसने लगते हैं।

तभी शुभी की सास की आवाज आती है, “हाँ! हाँ! दोनों ससुर बहू मिलकर धीरे धीरे कर लो मेरी बुराई और जो तुम मुझे बुढ़िया कह रहे हो, तुम कौन से छैल छबीले नौजवान हो, तुम भी तो बूढ़े हो रहे हो। बहू के साथ काम करवा रहे हो, कहीं देखा है ससुर अपनी बहू के साथ काम करवाएं? सास ननद तो करवाती नहीं। अभी तुम्हें समझ नहीं आ रहा है, ज्यादा सर पर मत चढ़ाओ।”

“अरे मेरी ललिता पवार! समझने की जरूरत तुम्हें है, तुम्हारे सर पर ललिता पवार टाईप सास बनने का भूत सवार है लेकिन हमें तो तुम बख्श ही दो। हम उसे कभी बहू मानते ही नहीं हैं, बेटी है हमारी।”

यह है शिवनाथ जी, इनकी पत्नी सुमित्रा जी और उनकी बहू शुभिका, जिसे सब प्यार से शुभी ही बुलाते हैं। यह प्यारा सा हंसी मजाक वाला वार्तालाप इन्हीं तीनों लोगों के मध्य चल रहा है। बाकी घर में शिवनाथ जी का बेटा अमर और बेटी अमृता है।

अभी चार महीने पहले ही बेटे अमर की शादी हुई है और घर में शुभी जैसी प्यारी सी बहू उनके घर में आई है। अमर अपने पिता के साथ उनका बर्तनों का व्यापार संभालता है, दुकान घर के पास में ही है, अमर दुकान संभाल लेता है तो शिवनाथ जी को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत नहीं पड़ती है और अमृता अभी पढ़ रही है।

घर में सिर्फ सुमित्रा जी का राज चलता है और उनका स्वभाव भी हिटलर जैसा है, दिल की अच्छी हैं, बस जबान की थोड़ी कड़वी है। वह भी चाहती हैं कि उनकी  बहू को हर काम आए, सारे काम अकेले ही संभाल ले। उनकी बहू में कोई कमी ना निकाल पाए इसलिए वह भी किसी काम में मदद नहीं करती। और बेटी भी उनकी दुलारी प्यारी है, तो कोई काम नहीं लेती और पढ़ाई-लिखाई के चक्कर में उसे भाभी के साथ काम करवाने का समय ही नहीं मिलता लेकिन ननद भाभी की आपस में पटती बहुत है।

बहू भी अभी कामकाज में इतनी निपुण नहीं है लेकिन सासू माँ का आदेश मानकर हर समय लगी रहती है। किसी तरह से वो खुश रहें तो घर में सुख-शांति बनी रहेगी।

पति अमर शुभी से प्यार तो बहुत करता है लेकिन माँ के आगे उसकी भी सिट्टी-पिट्टी गुम रहती है ।ससुर जी भी अपनी पत्नी पर दिलोजान से फिदा रहते और उनका स्वभाव भी बहुत अच्छी तरह से समझते, इसलिए उनसे कुछ नहीं कहते। शुभी की हर तरीके से मदद करते रहते हैं।

सबसे पहले तो उन्होंने शुभी का साड़ी पहनना और सर पर पल्लू करना छुड़वाया क्योंकि वह देखते थे कि उसे घर के काम करने में बहुत परेशानी होती है। उन्होंने पहले दिन ही ऐलान कर दिया कि काम करते समय शुभी साड़ी नहीं सलवार सूट पहनेगी।

शुभी के साथ हर काम करने के लिए तैयार रहते, सुबह के समय बहुत काम रहते। बेटा अमर तो जल्दी दुकान पर चला जाता, ननद कालेज चली जाती, सासू माँ अपने पूजा पाठ में व्यस्त हो जातीं और ससुर जी थोड़ा देर से दुकान जाते। उतने समय में वो अपनी बहू शुभी के साथ घर के काम करवाकर तब दुकान जाते।

शुभी कपड़े धोकर रखती तो फैलाने चले जाते, वो झाडू लगाती, वो जल्दी-जल्दी पोछा लगाने लगते। शुभी उन्हें रोकती रह जाती लेकिन वह मानते ही नहीं कहते, “अकेले क्या क्या करोगी?”

दोपहर में जब खाना खाने आते तो जल्दी से छत से कपड़े उतार भी लाते। शुभी के खाने-पीने का भी बहुत ध्यान रखते। नाश्ते खाने के समय या बाजार से कुछ भी लाते तो अपनी बेटी से पहले शुभी को आवाज देते, इस बात पर सासू माँ नाराज हो जाती कहती, “अरे बहू क्या आ ग‌ई आप तो अपनी बेटी को ही भूल गए?”

शिवनाथ जी कहते, “अरे श्रीमती जी!!! बेटी तो ब्याह कर ससुराल चली जाएगी, बहू हमारा ध्यान रखने के लिए हमारे पास रहेगी इसलिए हम उसका ध्यान नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा? कल को हमें भी अपनी बेटी ससुराल भेजनी है अगर वहां कोई उसका ध्यान नहीं रखेगा तो उसे कितना दुख होगा।

अभी बच्ची है, समय के साथ सब सीख जाएगी, अभी उसे सहारे की जरूरत है। श्रीमती जी समझो, पराई बेटी को अपनाओगी, उसका दुखदर्द समझोगी तभी वह हमारा दुख दर्द समझेगी, नहीं तो बुढ़ापे में पड़ी कराहती  रहना, पास भी नहीं फटकेगी। अपनी बेटी की तरह समझो। अगर उस पर पूरे घर का काम छोड़ दोगी, तो क्या वह कर पाएगी?”

उसका भी जवाब सुमित्रा जी के पास हाजिर रहता कहती, “तब की तब देखी जायेगी और हाँ तुम अपनी लाड़ली बहू की ज्यादा तरफदारी मत करो।”

लेकिन अपना व्यवहार बदलने को तैयार नहीं हुई। सुमित्रा जी को ना समझना था, ना समझीं। उनकी जो सोच थी, वह उसी के अनुसार चलती और मौका पड़ने पर ससुर बहू दोनों को सुनाती।

शुभी अपने ससुर जी से खूब खुश रहती और आगे से आगे उनका ध्यान रखती। ससुर जी बहू के साथ हर काम करवाने के लिए तैयार रहते। उन्हें किसी भी काम में कोई शर्म और झिझक नहीं लगती। इसी बीच शुभी गर्भवती हो गई, इस समय उसके पापा यानि ससुर जी अपनी बेटी शुभी का बहुत ध्यान रखते।

जल्द ही शुभी जुड़वां बच्चों की माँ बन गई और ननद ब्याहकर ससुराल चली गई। शुभी भी अब परिपक्व हो गई लेकिन उसका काम बहुत बढ़ गया। जुड़वां बच्चे और घर दोनों संभालना आसान काम नहीं था।

अमर को भी काम करने की आदत नहीं थी अगर पत्नी शुभी को परेशान देखकर कुछ मदद करने की सोचता भी तो सासु माँ को बुरा लग जाता तुरंत ‘जोरू का गुलाम’ का तमगा मिल जाता। तब ससुर जी बेटे और पत्नी दोनों को सुनाते, “अरे जब हम तुम्हारे साथ काम करवाते हैं तो तुम्हें बहुत अच्छा लगता है, बेटा, एक तो उसकी तुमने आदतें बिगाड़ कर रखी हुई हैं, अगर पत्नी को परेशान देखकर कुछ करना चाहे तो तुम जोरू के गुलाम का तमगा देने को तैयार रहती हो।”

ऐसे में ससुर शिवनाथ जी ही उसका इकलौता सहारा थे। शुभी के मन में दिन-प्रतिदिन उनके प्रति प्यार और सम्मान बढ़ता जा रहा था। वो बेचारे उसके बच्चों का भी सब काम कर देते हैं, बच्चे नहा कर खड़े होते, अगर वह किचन में होती, तो तुरंत आगे बढ़कर उन्हें कपड़े पहनाकर तैयार कर देते।

सासू माँ औरत होकर भी नहीं समझती लेकिन ससुर जी पता नहीं किस मिट्टी के बने हुए थे जो एक पिता से बढ़कर अपनी बहू का ध्यान रखते, उसका दुख-दर्द समझते। दिन प्रतिदिन इन बाप बेटी का रिश्ता प्रगाढ़ होता गया और दिल से जुड़ता चला गया।

अब तो शुभी को इस घर में आये हुए बारह वर्ष हो गए, सासू माँ भी स्वर्ग सिधार ग‌ईं। शुभी अपने पापा का अब तो और भी ज्यादा ध्यान रखने लगी, उन्हें बिल्कुल भी अकेला नहीं छोड़ती और वैसे भी उन दोनों का रिश्ता ससुर बहू का ना होकर बाप बेटी का हो गया था।

सासू माँ के निधन के बाद उसका बेटा बाबा के साथ ही सोता और उनकी एक आवाज पर दौड़ता। दोनों बच्चे अपने बाबा पर जान देते। माँ की तरह उनकी हर जरूरत का आगे से आगे ध्यान रखते। शुभी को ये देखकर बहुत अच्छा लगता कि उसका बेटा बिल्कुल अपने बाबा की परछाईं है, वो भी उनकी तरह हर काम कर लेता।

यह सब देख कर अमर को भी बहुत खुशी मिलती, उसकी पत्नी उसके पापा का ध्यान रखती है, इतना ध्यान तो वह भी नहीं रख सकता। शुभी अपने पापा की सेवा करने के लिए हर समय तत्पर रहती और उन्हें मना करती रहती है।

“पापा आप आराम से बैठिए, अब आपकी बेटी सब काम अकेले कर सकती है, आपके साथ ने उसे बहुत मजबूत बना दिया है, बस आपका हाथ और साथ हमेशा मुझ पर बना रहे, यही चाहती हूँ। मैं बहुत खुशनसीब हूँ जो आ‌पका साथ मिला, नहीं तो पता नहीं मुझे जैसी अनाड़ी का क्या होता?”

“मेरी बेटी हमेशा ख़ुश रहे, अब मुझे किसी बात की चिंता नहीं है।”

देखा आपने एक ससुर बहू का रिश्ता, बाप बेटी से बढ़कर हो गया, ऐसे होते हैं दिल से जुड़े हुए रिश्ते।

मूल चित्र: Still from Best Husband Wife Jewelry Ad/ farjana bona via YouTube 

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