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पानी की धार पकड़ ना आये, पवन बंधे ना कितने डाल के देखे डोरे। बावरा मन बचपन का सोचे सोचे, और भर भर जाए सपनों के पन्ने कोरे।
पानी की धार पकड़ ना आये, पवन बंधे ना कितने डाल के देखे डोरे।बावरा मन बचपन का सोचे सोचे, और भर भर जाए सपनों के पन्ने कोरे।
रैन ने झटकी चुनरी, बिखरा दिए आँचल के तारे,जुगनू बन के टिम टिम करते,बावरा मन बचपन का इन्हें निहारे।
सूत काटती नानी बैठी,चंदा के खींच के कान पे मारे।बावरा मन बचपन का देखे देखे,मगर पलकें झपके खूब नींद के मारे।
घोल के रंग बादल में किसने,रंग बिखराये बरसा से इंद्रधनुष के सहारे।कल्पना के सागर में गोते खाये,बावरा मन बचपन का कभी लगे किनारे।
पानी की धार पकड़ ना आये, पवन बंधे ना कितने डाल के देखे डोरे।बावरा मन बचपन का सोचे सोचे,और भर भर जाए सपनों के पन्ने कोरे।
मूल चित्र: Parachute India via YouTube
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