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बहुरानी, तो क्या मैं इसे तुम्हारा थोथा ज्ञान समझूं? कथनी और करनी में अन्तर? अभी पैदा हुयी है, पहले इसकी देखरेख अच्छे से करो!
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, तत्र रमंते देवता’ मतलब जहां स्त्री का सम्मान होता है, वहीं देवता वास करते हैं।
कहने-सुनने में तो ये बहुत अच्छा लगता है पर क्या जमीनी हकीकत भी यही है? वैसे तो समय के साथ बहुत बदलाव आया है, आज नारियां स्वच्छंद हैं लेकिन फिर भी अभी बहुत लड़ाई लड़नी है।
आइए सुनाती हूँ आपको अपने गांव की एक घटना जिसने मुझे झकझोर कर रख दिया।
काकी की बहू को बच्चा हुआ था वो भी नॉर्मल डिलीवरी से सरकारी नर्स की मदद से घर पर ही। आस-पड़ोस के लोग देखने गए तो काकी का मुँह उतरा हुआ था, पूछने पर पता चला की तीसरी बार भी लड़की होने से काकी बहुत दुखी हैं।
काकी के पोते का मुँह देखने की जिद से ही उनकी बहू ने तीसरा बच्चा किया था। बहू के गर्भ धारण करने का पता चलते ही काकी ने पोते की चाहत में खूब पूजा-हवन भी कराया था लेकिन विधाता को तो कुछ और ही मंजूर था।
बड़े ही अनमने मन से काकी ने पोती को लाकर महिलाओं के आगे धर दिया।
“ये लो देखो। क्या ही देखोगी एक तो बिटिया ऊपर से रंग भी लग रहा है सांवला ही है।”
तब तक एक महिला की नज़र रसोई के चूल्हे पर पड़ी, “अरे काकी! सांझ होने को है पर चूल्हे के आस-पास कोई तैयारी न दिख रही है। खाना वाना न बनेगा?”
“नहीं! पोता हुआ होता तो हलुआ पूरी बनाते अब कौन सी खुशी मनायें। सुबह का दाल-भात रखा है सब खा लेंगे।”
“और बहू? उसको भी बासी खिलाओगी क्या। जचकी हुई है उसकी तो!”
“अरे, उसे दे देंगे बाद में एक गिलास दूध भी।”
उनकी बहू सिर झुकाए बैठी थीं, मानो बेटी न पैदा की हो जैसे कोई जघन्य अपराध कर दिया हो जो यों धरती में गड़ी जा रही थीं। वह स्वयं सरकारी स्कूल में शिक्षिका थीं।
बिटिया छः-सात महीने की हो गई, सर्दियों का मौसम आ गया था। एक दिन बहुरानी धूप में बिटिया की मालिश कर रही थीं।
रामफल काका (जो की गांव के कहांर थे) गुजर रहे थे। काका छोटे बच्चों को बहुत प्यार करते थे। बिटिया का हंसमुख चेहरा देखकर उनसे रहा न गया वो थोड़ी देर वहीं ठहर गए और दूर से बिटिया को पुचकारने लगे।
“बहुरानी कितनी प्यारी बिटिया है!”
“काका, तीन बेटियां हैं क्या करेंगे, कहां ब्याहेंगे, कहां से जोड़ेंगे इतना दान-दहेज? ऊपर से सासू माँ के ताने दिन रात कि मैं उनको पोते का मुँह न दिखा सकी।”
“बहुरानी तुम पढ़ी-लिखी हो, एक शिक्षिका होकर ऐसा सोचती हो?”
“तुम ऐसा सोचोगी तो अपने स्कूल के बच्चों को क्या पढ़ाओगी? मैं एक दिन खेत काट रहा था (प्राथमिक पाठशाला के पीछे ही काका का खेत था) तो तुमको बच्चों को कहते हुए सुना कि लड़के और लड़की में कोई अंतर नहीं बल्कि आज की बेटियां तो आसमान छूने को तैयार हैं। अपनी पढ़ाई लिखाई के साथ साथ वो अपने रिश्तों को भी बखूबी निभाना जानती हैं।
बहुरानी, तो क्या मैं इसे तुम्हारा थोथा ज्ञान समझूं? कथनी और करनी में अन्तर? और रही बात शादी ब्याह की तो तुम ज्यादा न सोचो, अभी पैदा हुयी है, पहले इसकी देखरेख अच्छे से करो, इसे काबिल बनाओ। आगे सब ठीक होगा।
रामफल काका की बातें सुनकर बहुरानी ऐसे चेतना में आईं जैसे किसी ने उन्हें चिरनिद्रा से जगा दिया हो।
“धन्यवाद काका! आपने मेरी आंखें खोल दीं। अब मैं किसी के कहने से अपनी बेटियों को बोझ न समझूंगी। इन्हें खूब पढ़ाऊंगी-लिखाऊंगी और रही बात ब्याह की तो आपने अभी कहा न ये सब अपना भाग्य लेकर आई हैं।”
नारी सशक्तिकरण का जश्न तब तक अधूरा है जब तक भारत की हर महिला सशक्त न हो जाय फिर चाहे वह गांव की हो, ऊंचे तबके की या फिर नीचे।
मूल चित्र: Philips india via YouTube
I am Maya Nitin Shukla. Mother of a son. Working as a teacher. "मैं इतनी साधारण हूं ,तभी तो असाधारण हूं" read more...
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