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भवानी देवी का संघर्ष अपने परिवार की आर्थिक चुनौतियों और तलवारबाज़ी प्रतियोगियों में मिली निराशाओं की आग में तपकर कुंदन बन रहा है।
भारतीय इतिहास रानी लक्ष्मीबाई जैसी कई विरांगनाओं से भरा पड़ा है, जिनकी तलवारबाज़ी और रण कौशल अचूक और अद्दितीय थी। परंतु, ओलंपिक के लिए तलवारबाज़ी में भारत को अपना प्रतिनिधि भेजने में अजादी के बाद से टोक्यों ओलंपिक तक का इंतजार करना पड़ा। सीए भवानी देवी तलवारबाज़ी स्पर्धा में टोक्यो ओलंपिक खेलों में भारत की पहली उम्मीद हैं।
आज से पहले किसी महिला ने तलवारबाज़ी के खेल में भारत का प्रतिनिधित्व नहीं किया। भवानी देवी का टोक्यों ओलंपिक का संघर्ष इससे ही समझा जा सकता है कि उनकी मां ने भवानी के सपनों को पंख देने के लिए अपने ज़ेवर तक गिरवी रख दिए पर आर्थिक चुनौती के सामने भवानी के तलवार को झुकने नहीं दिया।
गृहणी माँ और मंदिर में पुजारी पिता के घर में जन्मी भवानी देवी, पाँच भई बहनो में सबसे छोटी हैं। तमिलनाडु में उस समय की मुख्यमंत्री जयललिता ने एक खेल स्कूल की शुरुआत की। जिसमें तैराकी, स्व्कैश, तलवारबाज़ी और मुक्केबाजी की शुरूआती प्रशिक्षण दी जाती है।
भवानी बचपन में स्व्कैश और तलवारबाज़ी दोनों ही खेलों में हिस्सा लेती थीं। कभी-कभी दोनों खेल की प्रतियोगिता एक ही दिन पड़ जाती। तब उनकी मां ने सलाह दी कि तलवारबाज़ी एक नया खेल है उसे चुनो।
भवानी ने माँ की सलाह मान तलवारबाज़ी का चयन किया। उन्होंने मह़ज़ 12 साल की उम्र में सब-जूनियर नेशनल चैम्पियनशिप जीता था। इस तरह संयोग से जिस खेल का चयन भवानी ने किया, वह आज टोक्यों ओलंपिक में उनके जीवन के रोमांचक सफर का आग़ाज़ है।
तलवारीबाज़ी में देश का प्रतिनिधित्व करना और अपने सपनों को उड़ान देना कितना अधिक रोमांचित करता है। भवानी का टोक्यों ओलंपिक तक का संघर्ष उनके साथ-साथ कई खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा है। खासकर उस खेल में जिसका परंपरागत रूप से बेहद समृद्ध इतिहास रहा है। पर, बतौर खेल तलवारबाज़ी में उपलब्धियां शून्य है।
इस खेल में इस्तेमाल होने वाली तलवार इतनी महंगी है कि भवानी बांस की लकड़ियों से अभ्यास किया करती थीं। अगर अभ्यास के दौरान तलवार टूट जाए तो इसका खर्च उठाना सामान्य माध्यमवर्गीय परिवार के लिए बहुत ही मुश्किल है ।
खासकर तब यह संघर्ष और अधिक संयम की मांग करता है, जब आप मुहाने पर पहुंचकर छोटी-छोटी चूक से बाहर हो जाते हैं। पिछले ओलंपिक में भवानी देवी इसलिए चूक गयीं क्योंकि उन्हें वीडियो रेफरल के बारे में पता नहीं था। इसके कारण वह चुनौतिपूर्ण प्वाइंट लेने से चूक गयीं और पीछे रह गयीं।
अगर भवानी को रेफरल के बारे में पता होता तो वह बीते ओलंपिक में ही भारत का प्रतिनिधित्व कर पातीं। इसी तरह एक विश्वस्तरीय प्रतियोगिता में भवानी आयोजकों की ग़लती के कारण कार्यक्रम स्थल पर समय पर नहीं पहुंच सकीं। रेफरी ने तीन बार भवानी देवी नाम पुकारा और उसके बाद उनको अयोग्य घोषित कर दिया।
भवानी का संघर्ष अपने परिवार की आर्थिक चुनौतियों और तलवारबाज़ी प्रतियोगियों में मिली निराशाओं की आग में तपकर कुंदन बन रहा है।
भवानी को विश्वास है कि वह तलवारबाज़ी में भारत का झंडा सबसे ऊपर फहराते हुए स्वर्ण पदक जीत कर लाने में सफ़ल रहेंगी।
आज जरूरत इस बात की है कि हम सीए भवानी देवी को न केवल पहचाने बल्कि उनके खेल की हौसलाअफजाई भी करें। हम सब को भवानी का आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए क्योंकि उनकी सफलता व्यक्तिगत न हो कर पूरी देश की होगी। वह सफलता भारतीय तलवारबाज़ी के खेल में लड़कियों के लिए एक नया दरवाज़ा खोल देंगी, जिसमें न जाने कितनी भवानी अपनी प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया से मनवाएंगी।
भवानी देवी को पता भी न हो शाय़द उनकी सफलता कितनों के लिए सपने सच करने की दास्तान बन जाएगी।
मूल चित्र : Still from Anisports,YouTube
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