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नहीं थूक पाई, भीड़ भरी बस में उस आदमी पर, जिसके हाथ लगातार उसके आगे खड़ी औरत के जिस्म को छू रहे थे, तब बोलना चाहिए था, कुछ करना चाहिये था...
नहीं थूक पाई, भीड़ भरी बस में उस आदमी पर, जिसके हाथ लगातार उसके आगे खड़ी औरत के जिस्म को छू रहे थे, तब बोलना चाहिए था, कुछ करना चाहिये था…
नहीं जाहिर कर पाई, छोटी बहन को पाने की खुशी, क्योंकि आस पास सब दुखी थे…
स्कूल में रसायन के शिक्षक से, नहीं पूछ पाई, की वो जो हमारी पीठ पर, इस तरह हाथ घुमाते हैं क्या वे इस क्रिया से हमारे जहन में बैठ जाने वाली, कुंठा की प्रतिक्रिया से परिचित हैं?
नहीं पोंछ पाई आंसू, दो माह के गर्भ से बाद, एक दिन अचानक अस्पताल से उदास लौटी भाभी की आंख के…
नहीं चुप करा पाई मामा को, जब वो भरी सभा में, मामी पर जोर से बरसे थे कहने के लिए की ‘धीरे हंसों!’
नहीं लिख पाई शिकायत पत्र, उस सहकर्मी के खिलाफ, जिसने महीनों सहेली को उसकी जिंदगी बदलने के सपने दिखाए, और एक दिन अचानक, नौकरी बदल ली…
नहीं थूक पाई, भीड़ भरी बस में उस आदमी पर जिसके हाथ लगातार उसके आगे खड़ी औरत के जिस्म को छू रहे थे…
‘बहु थोड़ी सुंदर होती , जोड़ी अच्छी जमती’ कहने वालो रिश्तेदारों को , नहीं दिखा पाई उनके अंतस का आईना जिसमें वो बेहद बदसूरत नज़र आते हैं…
सिर्फ नमस्ते ही कह पाई , सहेली की सास को , जिन्हें चिल्लाकर कहना चाहती थी की चूल्हें में डालिये ऐसी डिग्री, जो आपको बहु और नौकरानी में फर्क करना नहीं सीखा पाई।
बोलना था, कुछ करना था, सवाल पूछने थे, जवाब ढूंढ़ने थे अफसोस कुछ नहीं कर पाई।
लेकिन अब ‘बोलना चाहिए था, कुछ करना चाहिये था’ के ग्लानि भरे अतीत को एक सुदृढ़ वर्तमान और उज्ज्वल भविष्य में बदलना चाहती हूं…
मैं अपनी इस प्रजाति के लिए, अब सचमुच कुछ करना चाहती हूँ। अब सचमुच कुछ करना चाहती हूँ…
मूल चित्र : Still from Single Parenting/Myntra ad, YouTube
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