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इस वेबसाइट की जानकारी पिछले इतवार ट्विटर पर एक महिला ने दी जिसका नाम इस पर मौजूद था। यह वेबसाइट लगभग 20 दिनों तक इंटरनेट पर एक्टिव रही।
न्यूज़ अपडेट : द स्वॉडल (The Swaddle) से 09 जुलाई, 2021 को प्राप्त हुई न्यूज़ के अनुसार, 08 जुलाई 2021 ब्रहस्पतिवार को नेशनल कमिशन ऑफ़ वीमेन (National Commission of Women) और दिल्ली कमिशन ऑफ वीमेन (Delhi Commission of Women) ने ‘सुल्ली डील्स’ के मामले का संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा। जिसके बाद ताज़ा जानकारी के अनुसार दिल्ली पुलिस ने अंजान अपराधियों के खिलाफ़ F.I.R दर्ज की है।
आइये जानते हैं मामला क्या था।
द प्रिंट (The Print) की रिपोर्ट के अनुसार, एक वेबसाइट जो अब बंद हो चुकी है, ने 90 मुस्लिम महिलाओं को उनकी तस्वीरों के साथ बिक्री के लिए उपलब्ध दिखाया। इनमें से ज़्यादातर महिलाएँ भारतीय थीं।
इस वेबसाइट का प्रमुख निशाना मुस्लिम महिला पत्रकार, एनालिस्ट, कलाकार, शोधकर्ता और एक्टिविस्ट थीं।
इस वेबसाइट ने अपना विवरण एक समुदाय संचालित ओपन सोर्स प्रोजेक्ट (community driven open source project) के रूप में दिया था। इस पर 90 मुस्लिम महिलाओं की बिक्री का विज्ञापन “सुल्ली डील्स” (Sulli deals) के अंतर्गत दिया गया था। ये सब काम ट्विटर पर खुले आम हो रहा था।
सुल्ली एक बेहद अभद्र शब्द (गाली) है। इस विज्ञापन में भारतीय महिलाओं के अलावा पाकिस्तान और कुछ अन्य देशों की महिलाओं के नाम और तस्वीरें भी बोली लगाए जाने के लिए उपलब्ध थीं। इस वेबसाइट का मूल उद्देश्य इन महिलाओं का चारित्रिक हनन और उत्पीड़न था।
इस वेबसाइट की जानकारी पिछले इतवार ट्विटर पर एक महिला ने दी जिसका नाम इस पर मौजूद था। हालांकि इसके मालिकों का पता नहीं चल पाया पर इस वेबसाइट को होस्ट करने वाले सॉफ्टवेयर डेवलपिंग प्लेटफ़ॉर्म GitHub ने इसे सोमवार को बंद कर दिया। यह वेबसाइट लगभग 20 दिनों तक इंटरनेट पर एक्टिव रही।
ये घटिया हरकत पहली बार नहीं हुई है। न्यूज़ लौंडरी की एक रिपोर्ट के अनुसार 13 मई 2021 को यूट्यूब पर लिबरल डॉग लाइव (liberal doge live) नामक चैनल ने एक लाइव वीडियो स्ट्रीम किया जिस पर अनेकों पाकिस्तानी लड़कियों की तस्वीरें और वीडियो चलाए गए।
यह वो तस्वीरें और वीडियो थे जो इन लड़कियों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर ईद के मौके पर डालें होंगे। वीडियो के बैकग्राउंड में दो लड़के आपस में बातें करते हुए इन लड़कियों की शारीरिक बनावट के हिसाब से इन्हें रेटिंग दे रहे थे और इनकी वर्चुअल नीलामी कर रहे थे।
हालांकि सोशल मीडिया पर इस वीडियो का विरोध होने के बाद इसे हटा लिया गया पर यह यूट्यूब चैनल अब भी मौजूद है।
महिलाओं के जीवन में समस्याओं और संघर्षों की कमी नहीं है। घर के बाहर भी असुरक्षित हैं तो घरपर रहकर भी ये वर्चुअल उत्पीड़न उनकी और परिवार की मानसिक शांति भंग करता है। इस तरह की घटनाओं से बेहद तनाव पैदा होता है और जीवन में मुश्किलें बढ़ जाती हैं।
आख़िर कहाँ तक और कब तक महिलाएँ केवल संघर्ष ही करती रहें? औरत होना क्या इतना बड़ा अभिशाप है? इस तरह के काम करने वाले ये घटिया लोग असल में क्रिमिनल हैं जो खुले आम बिना किसी डर के किसी कंप्यूटर के पीछे छुपकर ये वाहियात हरकतें करते रहते हैं और पकड़े भी नहीं जाते।
इस तरह की वेबसाइट या यूट्यूब चैनल चलाने वाले घटिया लोगों को लगता है कि वे किसी महिला को सामने से छू नहीं रहे या उसका शारीरिक उत्पीड़न नहीं कर रहे।
पर इस तरह महिलाओं की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया से उठाना और उनकी शारीरक बनवाट पर चर्चा करना या टिप्पणी करना भी अपराध की श्रेणी मे ही आता है।
द लल्लनटॉप के लेख के अनुसार मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट डॉ अखिल अग्रवाल कहते हैं, “ऐसी हरकत करने वाले लोग पोटेंशियल क्रिमिनल हैं। क्योंकि जो आज सायकोलॉजिकल रेप कर रहे हैं, वो कल फिज़िकल रेप भी कर सकते हैं, और ऐसे ही लोग दूसरों की लाइफ बर्बाद करते हैं।
ऐसा भी हो सकता है कि अपनी शादी के बाद ये अपनी पत्नी पर घरेलू हिंसा करें। इनके बर्ताव के कारण इनकी पत्नियों की ज़िंदगी भी नर्क की तरह हो जाती है। इस मामले को भी हमें रेप काउंट करना चाहिए। इसमें रेप की जो धाराएं होती हैं, उसके तहत केस दर्ज होना चाहिए।”
हमारे देश में साइबर सेल महिलाओं की अनेकों शिकायतों के बाद भी ठीक से कार्रवाई नहीं करता है और इस तरह के वर्चुअल उत्पीड़न के अपराधी पकड़े नहीं जाते।
इसके अलावा ट्विटर भी इस तरह के विज्ञापनों, ट्वीट या पोस्ट को हटाता नहीं है। कई बार रिपोर्ट किये जाने के बावजूद ट्विटर ऐसे पोस्ट नहीं हटाता है। जबकि अन्य देशों में इस पर कड़ी कार्रवाई होती है।
बात जब भी महिला सुरक्षा की आती है तो वो चाहे किसी भी देश की हो, पहला पाठ उसे ही पढ़ाया जाता है। इस तरह के वर्चुअल उत्पीड़न के मामलों में भी पहली सीख महिलाओं को ही दी जाती है कि वे अपनी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड करना बंद कर दें।
यह सीख केवल उनके लिए चिंतित उनका परिवार ही नहीं बल्कि पुलिस और समाज भी देता है जिनपर असल में उनकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व है।
ऐसा क्यों हैं कि कंप्यूटर के पीछे छिपे इन अराजक तत्वों पर अंकुश लगाने के बजाए औरतों से मुँह छुपाकर और अपना दम घोंटकर रहने को कहा जाता है?
जब भी बात औरत की सुरक्षा की होती है तो मर्यादा का सारा भार उसी के सिर पर क्यों डाला जाता है? वो घर से बाहर निकले तो मीटरों लंबे कपड़े में लिपटकर निकले कि उसके पैर का अंगूठा भी किसी मनचले पुरुष को दिखाई न दे जाए।
जो औरत घर में रहती है उसे घर में रहकर भी अपनी छठी इंद्री को सोते-जागते-नहाते और कपड़े बदलते हुए हमेशा ही चालू रखना पड़ता है। क्योंकि परिवार और संबंधियों के बीच भी ऐसा कोई पुरुष हो सकता है जिससे वो असुरक्षित महसूस करती हो। अब स्थिति ये है कि लड़कियाँ सोशल मीडिया से भी दूरी बना लें। क्योंकि अब वर्चुअल राक्षस भी उनकी ताक में बैठे हैं।
पूरी बात का लब्बोलबाब ये है कि हर हालत में हमेशा मर्यादा की सीख लड़कियों को ही क्यों दी जाती रही है? घर के बाहर, घर के अंदर और अब तो वर्चुअल भी। स्टूडेंट एक्टिविस्ट सफूरा ज़रगर ने भी इसके बारे में ट्विटर पर बात की है, लेकिन इसपर कुछ लोगों के जवाब हमारे समाज के बारे बहुत कुछ कहती है।
हर जगह का माहौल महिलाओं के प्रति सुरक्षित बनाने के लिए आख़िर पुरुषों और उनकी कुंठित मनसिकताओं पर अंकुश क्यों नहीं लगया जा सकता? जब समाज का निर्माण दोनों बराबरी से करते हैं तो महिलाओं की सुरक्षा केवल महिलाओं की ही ज़िम्मेदारी क्यों हैं?
मूल चित्र: UN women asia pacific via youtube
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