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इस शादी से मेरी नहीं, आपकी ज़रुरत पूरी होगी…

"जो महिलाएं और लड़कियां मर्यादा में रहना नहीं जानती उनके साथ यही सब होता है। वो तो तेरे बाप पे तरस खा के हम तैयार हो गए थे शादी के लिए।"

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“जो महिलाएं और लड़कियां मर्यादा में रहना नहीं जानती उनके साथ यही सब होता है। वो तो तेरे बाप पे तरस खा के हम तैयार हो गए थे शादी के लिए।”

“क्या हुआ जी? इतने घबराये हुए क्यों हैं?” रश्मि की माँ सरला ने अपने पति अशोक जी से पूछा।

“रश्मि की माँ दरवाजा बंद करो पहले, फिर बताता हूँ”, कहते हुए अशोक जी ने दरवाजा बंद कर लिया।

सरला जी ने कहा, “अरे बाहर मेहमान बैठे हैं। बेटी को हल्दी लग रही है, कल दरवाजे पर बारात आ जाएगी आप इस तरह की हरकत कर रहे हैं, सारे मेहमान क्या कहेंगे?”

लेकिन अशोक जी तो दोनो हाथों को आपस मे रगड़ते हुए कमरे के एक कोने से दूसरे कोने तक घबराए हुए तेज कदमों से चले जा रहे थे।

सरला जी ने अशोक जी की ऐसी हालत देखते हुए कहा, “क्या हुआ जी, कुछ तो बोलिये भगवान के लिए मेरा दिल बैठा जा रहा है।”

“वो वो कैसे बोलू समझ नहीं आ रहा?”

“पर हुआ क्या? हे भगवान, आप की घबराहट देख के मुझे भी बहुत बेचैनी हो रही है।” रश्मि की माँ ने कहा।

“लड़के (मनोज) के पिताजी राकेश जी ने मुझे फोन पर अकेले में बात करने के लिए कहा है, बोला कुछ जरूरी बात है। रश्मि की माँ कही उन्हें रश्मि का सच ना पता चल गया हो। फिर हम क्या करेंगे?”

सरला जी ने सिर पीटते हुए कहा, “हे भगवान, तीसरी बार शादी कट गई तो फिर हमारी बेटी घर पे ही रह जायेगी। 32 साल की हो गयी है रश्मि।”

“फिर तो हम समाज में किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे और रश्मि तो पहले से ही शादी के खिलाफ थी। उसको तो मनोज और उसके घरवालों का व्यवहार शुरू से नहीं पसंद।”

“हे प्रभु, अब बस बहुत हुआ कब तक उस गलती की सजा हम लोगों को दोगे जो हमने किया ही नहीं।”

“तुम चिंता ना करो रश्मि की माँ मैं अपनी बेटी के जीवन से उस अंधेरे को हटा के ही रहूंगा। बदले में चाहे जो कीमत चुकानी पड़े।”

“सुनो मैं जाता हूँ। बाहर से फोन पर बात करके आता हूँ यहाँ सारे मेहमानों से घर भरा हुआ है तो अकेले में बात नहीं हो पाएगी तुम यहाँ सब संभाल लेना बस किसी को भी ये बात पता ना चले, देखता हूँ क्या कहते हैं।

“ठीक है। पर बात बिगड़े ना बस।”

अशोक जी घर से बाहर निकलकर एक पार्क में आकर राकेश जी को फोन लगाते हैं लेकिन आज राकेश जी के बात करने के अंदाज बदले हुए थे।

अशोक जी ने खुद को संभालते हुए मुस्कुराते हुए कहा, “हैलो समधी जी, कैसे हैं? सारी तैयारियां हो गईं? माफी चाहूंगा थोड़ी देरी हो गयी मुझसे फोन करने में। आप तो जानते ही है बेटियों की शादी में कितना काम होता है। कुछ काम था क्या? कहिये क्या सेवा कर सकता हूँ आपकी?”

“अशोक जी बात को गोल-गोल ना घुमाते हुए सीधे ही आपको बता देता हूँ। दरअसल हमें रश्मि का सच पता चल गया है कि उसके साथ 15 साल की उम्र में क्या हुआ था और इसी सच की वजह से उसकी पहले भी दो शादियां कट गई थीं। क्यों सही कहा ना मैंने?”

अशोक जी के हाथ से फोन छूट कर जमीन पर गिर गया और वो वही घुटनों के बल अपना सिर झुकाए हुए अशोक जी ने स्वीकृति में सिर्फ हाँ कहा और हाथ जोड़कर वापस हाथ में फोन लेकर के खड़े हो गए।

लड़खड़ाती जुबान से और फूटफूटकर रोते हुए सिर्फ इतना बोल पाए, “रश्मि निर्दोष है…”

रश्मि को हल्दी लग चुकी है। कल बारात आने वाली है। मेहमान घर में इकट्ठा हो चुके हैं और मनोज का रश्मि भी इंतजार कर रही है।

“सही कहा आप ने पर हम भी मजबूर हैं। समाज ऐसी लड़कियों को कहाँ स्वीकार करता है। हमारी एक शर्त है जो आप पूरी कर दें तो शायद बात बन जाए।”

“जी कहिये ना, मैं हर शर्त मानने को तैयार हूँ।”

“ठीक है फिर आप अपना बंगला हमारे बेटे के नाम कर दीजिए और सड़क वाली जमीन भी। वैसे भी आपका बेटा तो कौन सा इस छोटे शहर में रहने वाला है? आगे चल के वो किसी और को बेच दे इससे अच्छा की आप हमारे बेटे के नाम ही कर दीजिए।”

अशोक जी कुछ देर हिचकिचाए लेकिन फिर एक गहरी सांस ली और दृढ़ता से कहा, “अच्छा ठीक है, लेकिन बारात आने पर ही मैं ये काम करूँगा।”

“ठीक है पर ये बात हमारे और आप के बीच ही रहनी चाहिए।” राकेश जी ने कहाँ।

“आप निश्चिंत रहें।”

इधर सरला जी अशोक जी का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। पलकें घर की चौखट पे टिक गयी थी। अशोक जी को आता देख जैसे ही उनके पास जाने का सोचा तो उन्होंने आंखों से इशारे करके उनके बढ़ते कदमों को रोक दिया और सब ठीक होने का इशारा किया। सरला जी के क़दम वही रुक गए पर अनहोनी की आशंका उनको हो चुकी थी।

रश्मि दूर बैठी ये सब देख रही थी। उसने अपने माँ पापा के चेहरे की बेचैनी को भांपते हुए माँ से पूछा, “क्या हुआ माँ?”

सरला जी ने नजरें चुराते हुए मुस्कुराकर कहा, “कुछ तो नहीं, कुछ भी नहीं, ऐसे क्यों पूछ रही है बेटा, कोई बात नहीं। बस तू कल चली जायेगी ना बस यही सोच रही थी कि तब कैसे रहूँगी।”

लेकिन रश्मि का मन माँ की बात को सच मानने के लिए तैयार नहीं था। अगले दिन बारात आनी थी। अशोक जी ने फोन पर हुई सारी बात अपनी पत्नी और बेटे अमन को बुला के बतायी और कहा, “अब ये घर रश्मि के ससुराल वालों के नाम हो जाएगा।”

तब सरला जी ने कहा, “लेकिन फिर हम कहाँ जाएंगे जी और मुन्ना भी अभी पढ़ ही रहा है।”

अमन (रश्मि का भाई) ने कहा, “कोई बात नहीं माँ, दीदी की खुशी से बढ़ के ये घर नहीं हमारे लिए और एक साल बाद तो मेरा एमबीए भी पूरा हो जाएगा। फिर मेरी नौकरी लगते हम नया घर ले लेंगे तब तक कही किराए का घर देख लेंगे।”

इतना सुनते ही सरला जी रोने लगी, “किस बात की सजा मिल रही है हमें। काश, वो काली रात हमारे जीवन मे कभी ना आयी होती तो हमें ये दिन ना देखना पड़ता।”

दरवाजे के बाहर खड़ी रश्मि सारी बाते सुन चुकी थी अब सच्चाई उसके सामने थी।

इधर बारात भी दरवाजे पर आ चुकी थी। जयमाला से पहले राकेश जी ने अशोक जी को बुलाया। अशोक जी जैसे ही उनके पास गए और उनको एक अलग कमरे में लेकर आये तो उन्होंने तुरंत पूछा, “काम हो गया कि नहीं, अगर हो गया हो तो पेपर दीजिये और आगे की रस्में शुरू कीजिए।”

तभी दरवाजे को धक्का मारकर रश्मि ने दरवाजा खोलते हुए कहा, “हाँ, हो गया अंकल जी माफी चाहूँगी आपको इंतजार करना पड़ा। पीछे मुड़कर देखिये तो सही कौन खड़ा है आपके स्वागत में।”

पीछे पुलिस को खड़ा देखकर राकेश जी का गुस्सा सातवें आसमान पर हो गया।

राकेश जी गुस्से में तम्मतमाते हुए बोले, “लड़की तुम्हारी इतनी हिम्मत की हमारी बेइज्जती करो, चरित्रहीन कहीं की? अब समझा कि तेरे इसी तेवर की वजह से दो बार तेरी शादी कटी, तुझसे कौन शादी करेगा जो पहले ही अपनी इज्जत गंवा चुकी है।

जो महिलाएं और लड़कियां मर्यादा में रहना नहीं जानती उनके साथ यही सब होता है। वो तो तेरे बाप पे तरस खा के हम तैयार हो गए थे शादी के लिए। अगर तेरा सच यहाँ लोगों को पता हो जाये, तो कोई तुझसे आजीवन शादी नहीं करेगा और तू आजीवन कुँवारी ही रह जाएगी समझी?”

रश्मि ने कहा, “फिर तो बहुत अच्छी बात है। अगर कोई 15 साल की उम्र में मेरे साथ हुए ज़बरदस्ती को मेरे चरित्र से जोड़ के देखता है। अगर किसी महिला का बलात्कार होने से वो चरित्रहीन और अशुद्ध हो जाती है तो नहीं करनी मुझे शादी ऐसे घटिया सोच वाले इंसान से। नहीं बनना ऐसे परिवार का हिस्सा, जहाँ ऐसे इंसान रहते हो जिसकी सोच इतनी घटिया हो।

और औरतों को मर्यादा सिखाने वाले पुरूष अपनी मर्यादा क्यों भूल जाते हैं? किसी रिश्ते की शुरुआत सच से होनी चाहिये, मैंने अपने अतीत का सच आपके बेटे को बता दिया था, चाहे तो पूछ लीजिये अपने बेटे से। लेकिन मुझे नहीं पता था कि आप बाप-बेटे सच जान के उसका ऐसा फायदा उठाएंगे और खुद के सच पर ऐसा पर्दा डालेंगे। मनोज क्या तुम बता सकते हो ये औरत कौन है?”

पीछे खड़ी औरत को देखते दोनों बाप-बेटों के चेहरे का रंग उड़ चुका था।

अशोक जी आश्चर्य से रश्मि की तरफ देखने लगे। तो रश्मि ने कहा, “हाँ, पापा यही सच है। ये लड़की मनोज की प्रेमिका है जो इसके बच्चे की माँ बनने वाली है लेकिन मनोज ने इसे भी धोखे में रखा और हमें भी। ये आज सुबह से ही मेरे कमरे में आयी थी। मैं इन लोगों का असली घिनौना चेहरा सबके सामने लाना चाहती थी इसलिए किसी को कुछ नहीं बताया। इन लोगों पर शक तो मुझे पहले ही दिन से था, लेकिन कोई सबूत नहीं था मेरे पास। पापा मैंने मनोज को पहले दिन ही अपना सच बताया था।

तब मनोज ने कहा था कि ‘मुझे अच्छा लगा कि तुमने सब सच सच बता दिया इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं। मुझे फिर भी ये रिश्ता मंजूर है।’

मुझे नहीं पता था कि ये लोग इतनी गिरी हुई सोच रखते हैं। पापा ये घर आपका था और आपका ही रहेगा।

माँ रो-वो नहीं। तब मैं छोटी थी मुझे चारों तरफ अंधेरा और हर कोई गलत ही दिख रहा था। जिसने जैसे बोला मैंने वही किया और गलत के लिए आवाज़ नहीं उठा पायी, पर अब नहीं। अब मैं गलत बर्दाश्त नहीं करूंगी।

क्यों सिर्फ और सिर्फ औरत के ही चरित्र की परीक्षा होती है? क्यों हम औरतों को मर्यादा सिखाने वाले अपनी मर्यादा भूल जाते हैं? क्यों ये भूल जाते हैं कि एक चरित्रहीन पुरुष की वजह से ही कई औरतों और लड़कियों की ज़िन्दगी खराब हो जाती है। 

वो मेरे जीवन का अंधेरा था जो अब झट चुका है। अब मैं अपने डर पे जीत चुकी हूं माँ। क्या हुआ अगर मेरी शादी नहीं हुई तो? क्या बिना शादी के एक औरत समाज में सम्मान नहीं पा सकती? क्या औरत सिर्फ शादी करके ही पूरी हो सकती है? नहीं ना? आपने मुझे इतना पढ़ाया-लिखाया क्या इसी दिन-रात के लिए कि किसी के आगे आपको हाथ जोड़ना पड़े। मैं एक आत्मनिर्भर महिला हूँ माँ। मैं इस विवाह से इंकार करती हूँ।

पुलिस राकेश और मनोज को दहेज मांगने और धोखाधड़ी के जुर्म में गिरफ्तार करके ले जाती है। 

इस कहानी के माध्यम से मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ कि अब हम महिलाओं को अपने आत्मसम्मान की रक्षा खुद करनी होगी। अब एक लड़की के माता-पिता को मजबूर नहीं मजबूत बनना होगा, खुद भी और अपनी बेटी को भी मजबूत इरादों का बनाना होगा।

बेटियों को आश्रित नही आत्मनिर्भर बनाइये। महिलाओं को मर्यादा सिखाने वाले पुरुषों को स्वयं भी मर्यादा में रहने आना चाहिए। तभी महिलाओं के प्रति होते अपराध पर लगाम सम्भव है।


मूल चित्र: Malabar gold and diamonds via Youtube

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