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सरोगेसी की गुदगुदाती लेकिन गंभीर कहानी कहती है फिल्म मिमि

फिल्म मिमि के एक संवाद में कृति सेनन डाक्टर से कहती हैं, “पेट के बाहर किसी को मारना गलत है तो पेट के अंदर किसी को मारना कैसे सही है?”

फिल्म मिमि के एक संवाद में कृति सेनन डाक्टर से कहती हैं, “पेट के बाहर किसी को मारना गलत है तो पेट के अंदर किसी को मारना कैसे सही है?”

स्पोइलर अलर्ट**

 नेटफ़्लिक्स पर समृद्धि पोरी की मराठी फिल्म माला आई व्हायची से प्रेरित होकर निर्देशक लक्ष्मण ने मातृत्व, सरोगेसी और गोद लेने जैसे संवेदनशील विषय पर प्यार, इमोशन और ह्यूमर का फिल्मी तड़का मारकर एक कहानी कही है “मिमि”, जिसके सुर-पेंच और नट-बोल्ट थोड़े ढ़ीले हैं पर कृति सेनन ने अपने अभिनय से और पंकज त्रिपाठी ने अपने ह्यूमर से कहानी को बांध दिया है।

सरोगेसी जैसे विषय पर भारतीय कानून के पेंच काफी उलझे हुए हैं। मराठी में “माला आई व्हायची” के बाद तेलुगु में दो साल पहले “बेलकम ओबामा” आई थी जो पसंद की गई अब “मिमि” की बारी है।

“मिमी” हालांकि सोरेगेट मर्द्रस की पीड़ा, उनके अंतनार्द और उनकी तकलीफ को जो हमारे देश में सैकड़ों से ऊपर की संख्या में दर्ज़ है, उसे हूबहू पेश तो नहीं करती है। परंतु, मुख्य़धारा में सेरोगेसी और उससे जुड़ी तमाम समस्याओं को मुख्यधारा बहस में ला पटकने की पैरवी जरूर करती है।

कहानी क्या है फिल्म मिमि की

निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने रोहन शंकर के साथ मिलकर भानुप्रताप(पंकल त्रिपाठी) जो ट्रेवल डाईवर हैं, उनकी  गाड़ी से कहानी शुरू की है।

अमेरिकन कपल(एडन व्हाईटांक) और समर(एवलिन एडवर्डस) बताते भारत एक सरोगेट मदर की तलाश में आये हैं जो भानुप्रताप की गाड़ी से सफर कर रहे हैं। भानुप्रताप इनके लिए सेरोगेट मदर खोजने की जिम्मेदारी लेता है।

दंपत्ति को एक डांस परफांरमेंस के समय राजस्थान में रहने वाली मिमि जो बॉलीवुड में एक्ट्रेस बनने के लिए पैसे जुटा रही है, सेरोगेट के लिए पसंद आती है। भानु सेरोगेट मदर की सारी बात मिमि को बताता है और बीस लाख की मोटी रकम के बारे में भी बताता है। पैसे की चाहत और अपने सपने को सच करने की महत्वकांक्षा में मिमि तैयार हो जाती है, जिसमें उससे साथ साये की रहती है उसकी दोस्त शमा(साई तम्हंकर)।

अमरिकन दंपत्ति को जब गर्भ में बच्चे के अस्वस्थ होने की बात पता चलती है तो वह बच्चे को अपनाने से मना करके चले जाते हैं। यह बात मिमि को बुरी तरह से प्रभावित करती है।

मिमी बच्चे को जन्म देती है या नहीं? अमरिकन दंपत्ति का मन बदलता है या नहीं? मिमि के बच्चे को उसका परिवार और समाज स्वीकार करता है या नहीं? यह सब जानने के लिए आपको मिमि देखनी होगी जो दो घंटे से भी कम समय की कहानी है।

यकीन माने, पकंज त्रिपाठी के गुदगुदाने वाले अभिनय और कृति सेनन के जीवंत अभिनय में आप बंध जाएँगे।

क्यों देखनी चाहिए फिल्म मिमि

फिल्म मिमि के एक संवाद में कृति सेनन डाक्टर से अबॉर्शन के बारे में कहती हैं कि “पेट के बाहर किसी को मारना गलत है तो पेट के अंदर किसी को मारना कैसे सही है?” जाहिर है मिमि की कहानी केवल सेरोगेसी, सेरोगेट मदर्स के बारे में नहीं है। अबॉर्शन, भ्रूण हत्या, मातृत्व के साथ-साथ सही कानूनी कायदे के अभाव में सरकार और समाज की जिम्मेदारी के बारे में भी है।

कृत्ति जिस तरह अपने अभिनय के जाल में फंसाती हैं और इतने गंभीर विषयों पर दर्शकों को संवेदनशील बनाती हैं। पंकज त्रिपाठी सहज गुदगुदे अंदाज से समझाते भी हैं और गुदगुदाते भी हैं। उन्होंने अपने अभिनय से जिसतरह भानुप्रताप के चरित्र को ज़िंदा किया है शायद ही कोई अन्य कलाकार कर पाता।

कहानी में समाज ने जिस तरह सेरोगेट मर्दर और बच्चे को अपनाया है वह बहुत ही खूबसूरत पक्ष है। मिमि अपनी कहानी सुनाने के लिए किसी पुरूष के कंधे का सहारा नहीं खोजती है। तमाम पुरूष पात्र बस कहानी में सहयोगी की भूमिका में हैं। यह भी एक अलहदा पक्ष है कहानी का।

दूसरा अलहदा पक्ष सरोगेट मदर्स  और सरोगेट बच्चे को समाज के अपनाने का भी है। भारतीय समाज इतना सहज और सरल नहीं है जैसा इस फिल्म में दिखाया गया है, समाज ऎसा होना चाहिए इस बात से इंकार नहीं है।

फिल्म मिमि के फ़ैमिली ड्रामा में जो होना चाहिए वह सब है 

फिल्म में साई तम्हंकर, मनोज पहावा, सुप्रिया पाठन और अमरिकन दंपति के किरदार में एवलिन एडवर्ड्स और एडन व्हाईटांक का अभिनय काफी नपा-तुला होने से साथ-साथ संतुलित है। एक हल्के-फुल्के फैमली ड्रामा कहानी में जो चीजे होनी चाहिए वह सब मिमि के कहानी में है। पूरी फिल्म मनोरंजन के साथ कई संवेदनशील विषयों पर जागरूक करने का प्रयास करती है, इसलिए फिल्म जरूर देखनी चाहिए।

इस विषय को अभी लम्बा सफ़र तय करना है 

यह सही है कि मिमि अपनी कहानी में सरोगेसी और सरोगेट मदर्स के बारे में बहुत सारी बाते समेट नहीं पाती है, मसलन-भारत के कुछ हिस्सों में सेरोगेसी एक व्यवसाय की तरह फल-फूल रहा है, जिसके कारण शोषण और कई तरह के गैर-कानूनी पहलू भी सामने आ रहे हैं। इन विषयों पर लंबे समय से कानून बनाने की मांग भी उठ रही है। समय-समय पर संसद के सदनों में बहस और न्यायपालिका के कुछ फैसलों ने भी इस दिशा में हस्तक्षेप किया है। परंतु, वह सेरोगेट मदर्स के मातृत्व की पीड़ा को कम करने के लिए नाकाफी है।

इस दिशा में इससे जुड़े कई विषयों पर अभी लंबा सफर करना अभी बाकी है। मिमि उसकी हल्ली-फुल्की शुरूआत भर है।

मूल चित्र : Stills from trailer of Mimi, YouTube

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