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रास बिहारी की दुल्हन…

क्या उसकी आवाज़ जो उसने बड़ी मुश्किल से साहस कर एक बार उठायी थी पर कुचल दी गयी थी, क्या अब फिर से उठने की हिम्मत कर सकेगी?

क्या उसकी आवाज़ जो उसने बड़ी मुश्किल से साहस कर एक बार उठायी थी पर कुचल दी गयी थी, क्या अब फिर से उठने की हिम्मत कर सकेगी?

ट्रिगर : इस लेख में घरेलू हिंसा का विवरण है जो आपको परेशां कर सकता है 

आवाज़ उठाने और न्याय मिलने के बीच एक बेहद गहरी खाई है। कई आवाज़ें इस खाई को लांघने से पहले ही दम तोड़ देती हैं और जो मुट्ठी भर उस पार पहुँच पाती हैं, वो भी अक्सर न्याय के बहुत करीब पहुँच कर भी, घुटने टेक देती हैं।

क्यों?

इसका उत्तर जानने के लिए हम सब को अपने गिरेबान में झांकना होगा, उन पुलिस वालों, वकीलों, न्यायाधीशों की कड़क यूनिफार्म के भीतर भी झांकना होगा, जो साथ मिलकर उन आवाज़ों को एक एक कर कुचल देते हैं जो उनकी पितृसत्तात्मक सोच पर खरी नहीं उतरती।

मेरी ये कविता, ‘रास बिहारी की दुल्हन’ हमारे जनतंत्र के ऊँचे ऊँचे वादों पर से पर्दा उठा कर सच्चाई दिखाने का एक प्रयास है। ये एक कोशिश है तन्वी दयाल और आयशा जैसी लाखों औरतों के लिए जो या तो लावारिस की तरह सड़क पर पटक दी जाती हैं या नदी में ‘I Am Sorry Papa ‘ नोट के साथ आत्महत्या करने को मजबूर कर दी जाती हैं।

ये कविता मै मुंशी प्रेमचंद की कहानी – पंच परमेश्वर – को समर्पित करती हूँ

रास बिहारी की दुल्हन

रास बिहारी की दुल्हन

फॅमिली कोर्ट की

एक कोने की कुर्सी में

दुबक कर बैठी,

गले में सांप से लिपटे मंगलसूत्र में

ऐंठन कसे जा रही थी ।

 

और काले लबादों वाले

यमराज से कड़क, शानदार वकील

भारी किताबें,

मोटे दस्तावेजों की फाइल थामे

मीलॉर्ड मीलॉर्ड की कांव कांव करते

इधर से उधर मंडरा रहे थे ।

 

एक नज़र उसने अपने इर्द-गिर्द

और औरतों पर फेरी।

सब मानो

एक ही चक्की से पिसा अनाज हों।

 

कंधे ढीले,

पैर कस कर समेटे,

हाथ बार बार

आँचल को सीने पर टटोलते

और कान उस कांव कांव के बीच

बिखरे शब्दों के अधपके अर्थों से

झन्नाते हुए।

 

काले कोट और सफ़ेद शर्ट में

सब वकील एक से ही दीखते हैं

पर अगर आप गौर से देखेंगे

तो अच्छा-ख़ासा क्लास डिफरेंस

नज़र आएगा।

 

एक तरफ तो

चमचमाती मोटरगाड़ियों की तरह

पेटेंट लैदर के काले जूते और

लहलहाते काले कोट पहने

फर्राटेदार वकील थे,

जो अपने मुवक्किल को

अखाड़े में धकेलने से पहले

कूटनीति के बादाम खिला रहे थे।

 

और दूसरी ओर

बिना गियर वाली सादा साइकिल की तरह

कम फीस वाले

या सरकारी खर्चे के वकील

जो अपनी या जूतों की ब्रांड से बेपरवाह

बस एक कोने में

दीवार से टिके

अपने ही मुवक्किल से छिपते-छिपाते

दूसरी पार्टी को तौलते-मौलते

शाम की चाय के साथ

क्या आर्डर करना है

उसका हिसाब लगा रहे थे ।

 

रास बिहारी की दुल्हन

जो इतने सालों में

गुमनाम, बेपहचान

पति, रिश्तेदार और आस पड़ोस में

बस रास बिहारी की दुल्हन के नाम से

जानी जाती थी,

आज कमला देवी vs रास बिहारी

केस नंबर 109 की फाइल के तले

गोंते मार रही थी।

 

और रास बिहारी का चमचमाता वकील

अपने क्लाइंट पर

एक काले जोंक सा चिपका

‘एडवोकेट्स ओनली’ सेक्शन से

अपने प्रतिध्वंदी को

एक भूखे भेड़िये सा ताकता।

 

उसकी ऐंठन वाली ऊँगली को

नीला पड़ता देख कर

मन ही मन जीत के

जश्न मना रहा था।

 

कार्यवाही शुरू हुई।

फाइलें लगी,

कुर्सियां बटीं,

हाथ मिले,

पर्चे खिसके,

दरवाजे बजे,

पंच परमेश्वर के गान हुए।

 

मर्दों के अखाड़े में

सबसे ऊँची कुर्सी पर

काले कपड़ों में

माँ काली का रूप लिए

दुबक कर नहीं, तन कर बैठे

एक औरत को देख

रास बिहारी की दुल्हन के शरीर में

मानो नई जान फूँक दी हो,

कंधे उठ खड़े हुए

और मंगलसूत्र के ऐंठन ढीले पड़े

सांस के कतरे बह चले।

 

दलीलों पर दलीले शुरू हुई

कभी मोटरगाड़ी गुर्राई

तो कभी साइकिल की टिनटिनी बजी

दोनों पार्टियों को तराज़ू में तौला

सबूतों का नक्शा

कभी आढा कभी तिरछा बिछा

धाराओं के तीर चले

जो शातिर थे वो कूटनीति से बच निकले।

 

अगली तारीख

जज साहिबा का चैम्बर

रास बिहारी और उसकी दुल्हन

काउंसलिंग का पहला सेशन।

 

कार्यवाही शुरू,

दो तोले का हार,

सिल्क की यह साड़ी

तुम बस ग्रेजुएट

और लड़का कारोबारी।

 

खुशनसीब हो

सब कुछ तो है

फिर भी शिकायतें

दो-चार थप्पड़, गाली गलौच

हर घर में होता है।

 

पति है,

कभी कभी गुस्सा आ जाता है।

चलो घूमता है आवारा

पर ये तो मर्द की है फितरत

औरत हो बर्दाश्त करो।

अदालतों में हक़ की लड़ाई से नहीं

घर में प्यार से लगाम दो।

 

अपने साथ

अपने बच्चों का भविष्य मत झोकों

और इस तरह

फॅमिली कोर्ट में

एक और परिवार बिखरने से बच गया।

रास बिहारी और उसकी दुल्हन का केस

फैसले से पहले ही सुलट गया।

 

फॅमिली कोर्ट की इस तारीख के

करीब पांच साल बाद

रात के अँधेरे में

कोई

शहर के सरकारी अस्पताल में

अधमरी हालत में

रास बिहारी की दुल्हन को छोड़ गया।

 

दोनों हाथ कब्ज़ों से

टूटकर लटके हुए

मुँह पर, पेट और झांघो में

लाल, नीले, पीले निशान

सर एक तरफ से पिचका,

गले में एक इंच भीतर तक

दो तोले का मंगलसूत्र गड़ा।

 

रास बिहारी की दुल्हन

जो सालों से गुमनाम

खुद अपना नाम भूल गयी थी

आज देश के हर अख़बार के

पहले पन्ने पर सनसनी मचाये हुए थी।

 

मोर्चे निकले

‘महिलाओं आवाज़ उठाओ आवाज़ उठाओ ‘

के नारे उठे

कोई टीवी पर पीड़िता की जन्मपत्री खोले बैठा,

तो कोई जोश भरे डिबेट में

IPC की धारा 498 A की धज्जियाँ उड़ाता।

 

पति लालची, सास ससुर जल्लाद

माँ बाप जान कर भी अनजान

हर तरफ से ब्रेकिंग न्यूज़ के शोले

शूं शूं कर गिर रहे थे।

 

उच्च स्तरीय जांच पड़ताल शुरू हुई

शायद जल्द ही FIR भी कटेगी

अदालत में फिर से

मोटरगाड़ी और साइकिल की

रेस भी होगी

पर सवाल ये है

कटघरे में कौन कौन होगा? 

क्या उसकी आवाज़

जो उसने बड़ी मुश्किल से

साहस कर

एक बार उठायी थी

पर कुचल दी गयी थी,

क्या अब फिर से

इस कांव कांव से ऊँची

उठने की हिम्मत कर सकेगी?

क्या रास बिहारी की दुल्हन

कभी इस कोमा से जागेगी?

 

मूल चित्र: triloks from Getty Images Signature, via Canva Pro

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About the Author

Vartika Sharma Lekhak

Vartika Sharma Lekhak is a published author based in India who enjoys writing on social issues, travel tales and short stories. She is an alumnus of JNU and currently studying law at Symbiosis Law School, read more...

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