कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

महिलाओं के बढ़ते कदमों को देख डरते समाज के ठेकेदार…

अक्सर स्वाभिमानी स्वतंत्र महिलाओं को समाज के लिए विस्फ़ोटक बता, उनके लिए परस्पर षड़यंत्र रचने में लगे रहते हैं ये समाज के ठेकेदार।

अक्सर स्वाभिमानी स्वतंत्र महिलाओं को समाज के लिए विस्फ़ोटक बता, उनके लिए परस्पर षड़यंत्र रचने में लगे रहते हैं ये समाज के ठेकेदार।

घर हो या ऑफिस आत्मविश्वास से भरी स्वतंत्र महिलाएं समाज की रूढ़िवादी परम्पराओं को चुनौती देती आ रही हैं। हर क्षेत्र में अपने और अपने जैसी महिलाओं के लिए नए विकल्प खोल रही हैं। ऐसी महिलाएं अपनी स्वतंत्रता के साथ किसी तरह का समझौता न करते हुए मिसाल क़ायम करती हैं और यही बात समाज को खटकती है। अक्सर स्वाभिमानी स्वतंत्र महिलाओं को समाज के लिए विस्फ़ोटक बता, उनके लिए परस्पर षड़यंत्र रचने में लगे रहते हैं ये समाज के ठेकेदार।

क्यों समाज के एक बड़े वर्ग को महिलाएं पारंपरिक रूढ़ीवादी भूमिकाओं में ही पसंद आती हैं ? क्या कारण है कि स्वतंत्र और सशक्त महिलाएं उनमें किसी बड़े खतरे की तरह ख़ौफ़ पैदा करती हैं?

स्त्रियों को अपने नियंत्रण में रखते आ रहा है समाज

मेरी समझ से हमारे समाज ने ‘स्वतंत्र महिला’ शब्द के साथ कई तरह के नकारात्मक अर्थों को जोड़ दिया है। सदियों से स्त्रियों को अपने नियंत्रण में रखते आ रहे समाज में इस तरह की प्रवृत्ति स्वाभाविक भी है। यहाँ तक कि लिंग के आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव संबंधी कई प्रकार के नियम और प्रतिबंध लागू करवाने को पुरुष प्रधान समाज अपना दायित्व मानता है। 

विरोध में पुरुषों का ध्रुवीकरण

आश्चर्य यह भी है कि पुरुषों के बीच स्त्री-समर्थक आवाज़ अगर कहीं उभरती भी है, तो वह रूढ़ी-तोड़क सामाजिक ताक़त बन नहीं पाती है। लगने लगता है कि महिलाओं को पुरुष जितनी स्वतंत्रता न देकर उन्हें क़ाबू में रखने की मानसिकता समाज में बहुत गहरे समाई हुई है। इसलिए यह वर्ग समय-समय पर अपने बनाए नियमों में सुविधानुसार बदलाव करके स्त्रियों को बंधनमुक्त नहीं होने देने पर उतारू दिखता है। गोया यह रवैया उनकी नहीं बदलने वाली आदत बन गयी हो। अगर कोई स्त्री संगठन भी उनके बनाये नियमों के विरुद्ध आवाज़ उठाने का प्रयास करता दिख जाता है, तो इसके प्रतिरोध में पुरुषों का ध्रुवीकरण साफ़ नज़र आने लगता है। 

दूषित मानसिकता का विरोध करने वाली महिलाओं को स्वच्छंद कहता समाज 

कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश के धार ज़िले में मन को विचलित कर देने वाली घटना सामने आई। दो बहनों को उनके ही परिवार के भाइयों और माँ ने बड़ी बेरहमी से पीटा क्यूंकि वह दोनों फ़ोन पर किसी से बातें कर रही थीं।

हैरत की बात है कि वहां खड़े लोगों ने भी उनका साथ दिया। किसी ने वीडियो बनाकर उसको इंटरनेट पर डाल दिया। अत्याचार को रोकने की बजाय अत्याचारी का साथ देना और वीडियो बनाते रहना इस समाज की दूषित मानसिकता का ही परिचायक नहीं तो और क्या है ? जो महिलाएं ऐसी मानसिकता वाले समाज का विरोध करती हैं, उन्हें यह वर्ग स्वच्छंद महिलाएं कह कर अपमानजनक रुख़ दिखाता है।

स्वतंत्र महिला से ऊर्जा और देश की समृद्धि का बोध 

‘स्वच्छंद’ की जगह ‘स्वतंत्र’ कहना उन्हें क़बूल नहीं क्योंकि ‘स्वतंत्र’ सकारात्मक और सशक्त शब्द है। ‘स्वतंत्र महिला’ शब्द को भी नकारात्मक संदर्भ में देखना-दिखाना ग़लत मंशा को ही दर्शाता है। मुझे तो स्वतंत्र महिला शब्द सुनकर ऊर्जा और हमारे देश की समृद्धि का बोध होता है। मेरी नजर में अपने पैरों पर खड़ी शिक्षित स्त्रियां स्वतंत्र महिलाएं होती हैं। यानी जो अपने लिए निर्णय लेने में सक्षम हो। अपने विचारों को खुलकर नि:संकोच व्यक्त करने का साहस और शक्ति होना भी उसकी एक पहचान है।

दुर्व्यवहार का करारा जवाब देती महिलाएं

आर्थिक रूप से स्वयं को मज़बूत बनाना और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की क्षमता रखना स्वतंत्र महिलाओं की खूबी है। वो न सिर्फ़ अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार या अनादर का करारा जवाब देती हैं, बल्कि अन्य पीड़ितों के लिए भी आवाज उठाती हैं। ज़ाहिर है कि स्त्रियाँ परस्पर स्वतंत्रता को प्रतिस्पर्धा के रूप में नहीं देखतीं। अपना और अपने परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी उठाने में वो कभी पीछे नहीं हटती हैं।

स्वतंत्रता एक शक्तिशाली उपहार है

घरेलू महिला हो या कामकाजी, दोनों ही स्वतंत्र महिलाओं की श्रेणी में आती हैं। स्वतंत्रता एक शक्तिशाली उपहार है, जो एक महिला खुद को दे सकती है। उससे जो ताकत मिलती है, वह उसके लिए बहुत मायने रखती है। 

महिलाओं को समाज में अपने हक़ में जो थोड़ी-बहुत मज़बूत आवाज़ मिल भी रही है, उसे अभी काफी लंबा रास्ता तय करना है। आज जिन महिलाओं का अपने शरीर, करियर और जीवनशैली पर पहले से कहीं अधिक नियंत्रण है, वो महिलाओं की नई पीढ़ी के लिए उदाहरण बन रही हैं। उन्हें देख नयी पीढ़ी यह जान-समझ रही है कि ऐसी महिलाएँ समाज में दोयम दर्जे के स्थान पर नहीं, समान हैसियत वाली जगह पर हैं।

समाज में महिलाओं को सम्मान के साथ समान अधिकार देकर ही बेहतर समाज और बेहतर देश की उम्मीद की जा सकती है।

मूल चित्र : Photo by Rahul Pandit from Burst

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Ashlesha Thakur

Ashlesha Thakur started her foray into the world of media at the age of 7 as a child artist on All India Radio. After finishing her education she joined a Television News channel as a read more...

26 Posts | 79,637 Views
All Categories