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अपनी माँ को हमेशा अभाव में देखा था अवि ने इसलिए नौकरी मिलते ही इ.एम.आई ले कर घर में सुख सुविधा की चीज़ें जुटाने लगा।
सुबह सुबह दरवाजे पर डिलीवरी बॉय को देख सुमन जी चौंक उठी।
“ये वाशिंग मशीन की डिलीवरी है माँजी, बतायें कहाँ फिट करना है।”
“लेकिन हमने तो कोई मशीन आर्डर नहीं की।” आश्चर्य से डिलीवरी बॉय को देखती सुमन जी ने कहा।
“लेकिन पता तो यहीं का है। अविनाश वर्मा जी का घर है ना ये?”
बेटे का नाम सुनते सुमन जी एक झटके में समझ गई की डिलीवरी बॉय सही पते पर आया है। मन मसोस कर नई मशीन फिट करवाई और बेटे का इंतजार करने लगी।
शाम को अविनाश के आते ही सुमन जी के सुबह का गुस्सा फट परा, “ये इतनी महंगी मशीन क्यों आर्डर किया तूने अवि?”
“क्यों माँ आपको पसंद नहीं आया क्या? फुली ऑटोमेटिक मशीन है।” अनजान बनते हुए अविनाश ने कहा।
“बात पसंद की नहीं अवि, जरुरत की है और मुझे फिजूलखर्च बिलकुल भी पसंद नहीं। पहले वाली मशीन बिलकुल सही चल रही थी फिर इतने पैसे फ़साना कहाँ की समझदारी है?”
“ओह माँ! आप भी ना! अब आपका बेटा इतना कमा लेता है कि घर में वो हर सुख सुविधा जुटा सके जिसके लिये हम हमेशा तरसे हैं और फिर कल की बचत के लिये अपने आज में घुट-घुट के जीने में मुझे विश्वास नहींं।”
सुमन जी और अविनाश की ये बहस कोई पहली बार की बात नहीं थी ये आये दिन होता था। अवि, सुमन जी का इकलौता बेटा था सुमन जी के पति के जाने के बाद बहुत कठिनाई से साधारण नौकरी करते हुए उन्होंने अवि को पाला था।
अब अवि की नौकरी लग गई थी और सुमन जी भी रिटायर हो गई थी। जल्दी ही बहु लाने का सोच सुमन जी ने अपनी जमा पूंजी लगा एक सुन्दर मकान बनवा लिया। अपनी माँ को हमेशा अभाव में देखा था अवि ने इसलिए नौकरी मिलते ही इ.एम.आई ले कर घर में सुख सुविधा की चीज़ें जुटाने लगा।
सुमन जी दिखावे के बिलकुल खिलाफ थीं और इ.एम. आई से चीज़ों को खरीदना उन्हें बिलकुल नापसंद था इसलिए जब भी कोई नई चीज आती माँ बेटे में बहस जरूर होती। इस बार भी यही हुआ था अविनाश के बढ़ते खर्चे सुमन जी के माथे पर बल डाल देता।
एक दिन ऑफिस से अविनाश जल्दी आया देख सुमन जी चौंक उठीं।
“आज जल्दी क्यों आ गया अवि, तबियत तो ठीक है?”
बेटे का मुरझाया चेहरा देख सुमन जी परेशान हो उठीं। माँ को सामने देख अविनाश भी अपना सब्र खो दिया और माँ के गोद में सर रख रो पड़ा।
“माँ, ऑफिस घाटे में जा रहा है और सारे कर्मचारियों की सैलरी आधी कर दी गई है। कुछ की छटनी भी हो सकती है, मुझे डर है कहीं मेरे हाथ से भी ना ये नौकरी निकल जाये।”
“तो क्या हुआ, कोई और नौकरी मिल जायेगी।”
“लेकिन माँ ये सब इतनी जल्दी तो होगा नहीं और मेरे सर पे हर महीने हजारों का इ.एम.आई का कर्जा है। सैलरी आधी हो गई तो मैं वो कैसे दे पाऊंगा? अगर इ.एम.आई दे दिया तो घर खर्च कैसे चलेगा? अब मैं क्या करू माँ?”
अविनाश की बातें सुन सुमन जी भी परेशान हो उठी लेकिन धैर्य बना बेटे को तसल्ली दी, “चिंता मत कर बेटा मैं कुछ सोचती हूँ।”
सारी रात अविनाश करवटें बदलते रहा, माँ की रोक टोक अब समझ आ रही थी अविनाश को। कर्ज ले सुख सुविधा जुटाना बहुत महंगा पर रहा था आज अविनाश को।
“उठ बेटा ऑफिस भी तो जाना है और नई जगहों पे आपने रेज्युमे भी भेजना शुरू कर दो। देखना दो तीन महीने में नई नौकरी मिलते सब ठीक हो जायेगा।”
माँ, की बातें सुन अविनाश की ऑंखें झलक उठीं, “मुझे माफ़ कर दो माँ आपकी बात ना मानने का नतीजा आज मेरे सामने है, अब कैसे चलेगा सब कुछ?”
“नहीं बेटा तू आपने काम पे ध्यान दे और सैलरी के पैसों से कर्जे वापस कर दे और घर खर्च की बिलकुल चिंता मत कर। कुछ महीने आराम से निकल जायेंगे इतने पैसे हैं मेरे पास।”
“पैसे? लेकिन वो कैसे माँ?”
“मैं माँ हूँ अविनाश, सब जानती हूँ दुनियां देखी है मैंने और संघर्ष भी बहुत किया है। जो भी पुरानी चीज़ें बिकी उनके पैसे और घर ख़र्च से भी पैसे मैं जोड़ती रही हूँ क्यूंकि मैं जानती थी ये घर बनवाने के बाद मेरे हाथ खाली हो चुके थे और तुम्हारी बढ़ती महत्वकांशा किसी दिन हमें ऐसे मोड़ पे ना ला दे जिस पर हम आज खड़े हैं।”
अपनी माँ की बात सुन जहाँ एक ओर अविनाश शर्म और पछतावे से भर उठा वहीं अपनी माँ के दूरदर्शी सोच पे गर्व से भर उठा।
कुछ ही महीनों में अविनाश को नई नौकरी मिल गई और सुमन जी के सूझ बुझ से घर के खर्च भी आराम से निकल गए। इस पूरे घटनाक्रम से अविनाश भी अपनी चादर जितनी पैर फैलाना सीख गया था और जिंदगी में मिले इस सबक ने उसकी जिंदगी ही बदल दी।
मूल चित्र : Mother & Son still from Short Film Gibo, YouTube(for representational purpose only)
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