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माँ, आपने बनारसी साड़ी क्यों पहन रखी है?

“मम्मी यह क्या पहना है? गर्मी के मौसम में शादी हो रही है और आप इतनी भारी बनारसी साड़ी पहन कर आई हैं? चंदेरी, शिफॉन पहन लिया होता।"

“मम्मी यह क्या पहना है? गर्मी के मौसम में शादी हो रही है और आप इतनी भारी बनारसी साड़ी पहन कर आई हैं? चंदेरी, शिफॉन पहन लिया होता।”

कितनी ही वर्षों के बाद आज रंजना ऐसे उत्सव में सम्मिलित होने जा रही है जिसमें पहनने के लिए उसके पास कीमती बनारसी साड़ी है और आभूषण भी हैं। जिंदगी में कितने ही मौके ऐसे आए जब रंजना को उत्सव में सिंथेटिक साड़ी पर चमकीला बॉर्डर लगाकर पहनना पड़ा या अपनी शादी की पुरानी घिसी पिटी साड़ियां पहननी पड़ी।

अपनी सभी रिश्तेदार महिलाओं को देखकर रंजना का मन भी होता था कि वह भी कीमती साड़ी पहनकर उत्सव में शामिल हो लेकिन ऐसा होना संभव नहीं था। इसके बाद भी उसकी बहुत अधिक इच्छा थी कि उसके पास बनारसी साड़ी हो। अब सारी जिम्मेदारियों से निबट कर बेटा बेटी दोनों का विवाह करने के बाद बेटी के देवर की शादी में शामिल होने के लिए दोनों पति-पत्नी आए थे।

पति को पेंशन मिल रही थी, मकान बन चुका था, बच्चों की पढ़ाई और शादी पर खर्च नहीं करना था क्योंकि यह सब काम हो चुके थे इसलिए रंजना ने पति के कहने पर शहर के बड़े शोरूम से बढ़िया बनारसी साड़ी खरीदी।

हल्का सा सोने का सेट पहन कर खुद को भाग्यशाली समझती हुई वह शादी में पहुंची। उसे देखते ही उसकी बेटी उसे एक तरफ ले गई और कहने लगी, “मम्मी यह क्या पहना है? गर्मी के मौसम में शादी हो रही है और आप इतनी भारी बनारसी साड़ी पहन कर आई हैं? चंदेरी, शिफॉन या जरी कोटा ही पहन लिया होता। सोने के सेट की जगह आपको हल्का सा डायमंड का लॉकेट और छोटे बुंदे ले लेने चाहिए थे।”

अब तक बहू भी पास आकर खड़ी हो गई थी। बोली तो कुछ नहीं पर रंजना की तरफ व्यंग्य भरी दृष्टि डाली। समधिन स्वागत करने आई तब रंजना ने देखा वह किसी पतले से कपड़े की कीमती हल्के रंग की जरी के किनारे की साड़ी पहनी थी और मोतियों का सेट पहने थी।

रंजना का मूड ऑफ हो गया। कितने अरमान से कितने सालों बाद वह यह साड़ी पहनकर किसी उत्सव में पहुंची थी और यहां तो उसकी साड़ी तथा साज सज्जा को पिछड़ा हुआ मान लिया गया।

किसी तरह से उत्सव संपन्न हुआ और रंजना अपने घर पहुंची। अगले दिन बेटी और बहू दोनों ही घर आ गई। बेटी ने फिर से माँ को कपड़ों के बारे में समझाना शुरु किया कि बनारसी साड़ी सर्दी के मौसम में अच्छी लगती है।अभी इतनी गर्मी में आप को हल्के कपड़े की साड़ी पहननी थी।

इसके बाद कहने लगी, “आप अपना ध्यान क्यों नहीं रखती? अगर समय-समय पर अपने लिए साड़ियां और जेवर लेती रहतीं तो आज यह दशा ना होती कि आपके पास किसी भी मौके पर पहनने का उचित कपड़ा ना होता।” बहू ने भी हाँ में हाँ मिलाई।

अब तक चुप चाप रंजना उन दोनों से कहने लगी, “आज तुम्हें जो रहन-सहन का स्तर मिला है यह इसलिए मिला है क्योंकि हम दोनों पति पत्नी ने तुम लोगों को अच्छा स्तर देना अपना लक्ष्य समझ लिया, साड़ी खरीदना नहीं।”

यह कहकर वह अपने कमरे में चली गई। अब तक बेटा भी बाहर आ गया था। दोनों बच्चे समझ नहीं पा रहे थे कि पापा की पोस्ट अच्छी थी फिर भी मम्मी ने अपने लिए कभी अच्छे और कीमती कपड़े क्यों नहीं खरीदे? बच्चों की उलझन को अशोक जी ने पहचान लिया वह बच्चों को बताने लगे कि कैसे उनकी जिंदगी बीती।

अशोक जी की आमदनी इतनी थी कि आराम से गुजारा चल जाए लेकिन उन दोनों का लक्ष्य था बच्चों को सर्वगुण संपन्न बनाना। इसके लिए अच्छे स्कूल की फीस और म्यूजिक क्लास, डांस क्लास, खेल की कोचिंग की फीस भी देनी पड़ती थी।

बच्चों को पौष्टिक भोजन मिलना ही चाहिए, उनकी यूनिफॉर्म, किताबे आदि समय से आनी चाहिए इसलिए कटौती करने का केवल एक स्थान था, वह था दोनों पति-पत्नी के कपड़े।

पुरुषों को हमेशा पेंट शर्ट ही पहननी होती है इसलिए इतनी दिक्कत नहीं थी, कम कपड़ों में ही काम चल जाता था। परेशानी रंजना के साथ थी। हर मौसम के लिए और हर उत्सव के लिए अलग-अलग प्रकार की साड़ियां चाहिए थीं।

उनके साथ मैचिंग ज्वैलरी भी चाहिए थी। यह सब लेने से हर साल ही बजट बिगड़ सकता था इसलिए रंजना ने खुशी से अपने ऊपर कपड़ों की कटौती स्वीकार कर ली।

शादियों और उत्सवों में वह किसी प्रकार से काम चला लेती थी। दूसरी महिलाओं को कीमती साड़ियां पहने आते देख कर भी उसके मन में हीन भावना नहीं आती थी क्योंकि उसके सामने उसका लक्ष्य था।

उधर बच्चों की पढ़ाई चलती रही और इधर मकान बनाने की भी जल्दी थी। अशोक जी की तनख्वाह तो बढ़ती गई पर पैसा मकान में लगता गया। रंजना अपने सिर पर छत की चाहत में खुशी से अपने ऊपर कटौती करती चली गई।

महिलाओं में आपसी मुकाबला बहुत होता है पर रंजना ने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया। आखिरकार दोनों बच्चे अच्छी नौकरी पा गए और विवाह भी हो गया। अब तक अशोक जी रिटायर हो चुके थे। फंड का काफी हिस्सा तो पढ़ाई, विवाह में लग गया था लेकिन मकान बन चुका था इसलिए अब कुछ राहत थी। पेंशन मिल ही रही थी।

बेटी के देवर के विवाह का अवसर आया तब अशोक जी ने रंजना से अपने लिए बनारसी साड़ी खरीदने के लिए कहा क्योंकि वह जानते थे कि रंजना हमेशा से इस साड़ी के लिए तरसती है। उन्होंने सोचा मौका भी अच्छा है सबके सामने साड़ी पहन सकती है।

रंजना ने खुशी से पति की इच्छा पूरी की और शादी में बनारसी साड़ी पहनकर पहुंच गई।उसे इस बात से मतलब नहीं था कि आजकल किस मौसम में कौन सी साड़ी पहनी जाती है, किस साड़ी के साथ कौन से आभूषण पहने जाते हैं क्योंकि उसे तो कभी अवसर मिला ही नहीं था अपनी मनपसंद साड़ी और जेवर खरीदने का।

बहू तो शादी के बाद घर में आई थी और पति की अच्छी पोस्ट के कारण ही उसका विवाह हुआ था इसलिए चुपचाप सुनती रही पर बेटी और बेटा शर्म से पानी पानी हो गए।

माता पिता ने उनके लिए कितने त्याग किए, तभी वे आज समाज में अच्छी पोजीशन पर हैं और उन्होंने कभी समझा ही नहीं कि किस प्रकार से वे लोग अपनी इच्छा मार रहे हैं।

बेटी को भी खुद पर शर्म आई कि उसने नौकरी करने के बाद भी कभी यह नहीं सोचा कि माँ के लिए अलग-अलग अवसरों की साड़ी ले आए बल्कि उन्होंने जो साड़ी पहनी उसके लिए भी उन्हें चार बातें सुना दी।

दोनों बच्चे रंजना के कमरे में गए और प्यार से उनकी अगल-बगल बैठ गए। बेटी माँ के कंधे पर मुंह छुपा कर कहने लगी, “मम्मी मुझे माफ कर दो, मैं कभी समझ ही नहीं पाई कि आप अच्छे कपड़े क्यों नहीं पहनती हैं।”

बेटा भी कहने लगा, “हमें बहुत गर्व है कि हमारे मम्मी पापा ने हमारे लिए इतना सोचा।”

अब चुप खड़ी बहू कहने लगी, “ठीक है तुम लोग मम्मी पापा का धन्यवाद करते रहो लेकिन मैं धन्यवाद नहीं करूंगी बल्कि अब मम्मी पापा की हर इच्छा पूरी करने का प्रयास करूंगी। मैं वायदा करती हूँ कि मम्मी पापा को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगी।”

बेटी अपने आंसू पोंछती हुई प्यार से बोली, “भाभी कहीं मेरा सेवा करने का हक ना मार लेना।”

आज रंजना को जैसे स्वर्ग मिल गया। खुशी के साथ उन्होंने बेटे बहू और बेटी को अपनी बाहों में समेट लिया।

मूल चित्र: Still from Movie Shubh Mangal Zyada Savdhaan

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