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उसका साथ कोई नहीं दे रहा था ना घरवाले ना पुलिस वाले। घरवाले उस पर जुल्म कर रहे थे और पुलिस वाले उसका साथ देने के बजाय...
उसका साथ कोई नहीं दे रहा था ना घरवाले ना पुलिस वाले। घरवाले उस पर जुल्म कर रहे थे और पुलिस वाले उसका साथ देने के बजाय…
“माँ, आप बचपन में क्या बनना चाहती थीं?”
आज मेरी बेटी ने जब मुझे पूछा तो मैं सोच पड़ में गयी।
“बताओ ना माँ! प्लीज प्लीज! क्या बनना चाहती थीं आप?”
“तुम्हारे दिमाग में आज ये बाते कैसे आयी कि तुम्हारी माँ को बचपन में क्या बनना था?”
“वो आज आप जिस तरह से पड़ोस वाली आंटी के लिए सबसे भिड़ गयीं। पुलिस वालों से भी! मुझे लगा कि आपको पुलिस वाला बनाना था।”
“उसका साथ कोई नहीं दे रहा था ना घरवाले ना पुलिस वाले। घरवाले उस पर जुल्म कर रहे थे और पुलिस वाले उसका साथ देने के बजाय उसके घर का मामला बता रहे थे, इसीलिए मैंने उसका साथ दिया।
और सुनो, मैं बचपन से ही स्त्री बनना चाहती थी और तुम भी बड़े होकर पहले जो भी बनो, डॉक्टर इंजिनियर या पुलिस अफसर सबसे पहले स्त्री बनना।
एक स्त्री बनने का मतलब है मुसीबत में पड़ी हर स्त्री का साथ देना, समझी?”
“हाँ, मेरी प्यारी माँ मैं समझ गयी। मैं कुछ भी बनने से पहले एक स्त्री बनूँगी और मुसीबत में घिरी हुई हर औरत का साथ दूंगी!”
मूल चित्र : Still from Short Film Maa/Besurae, YouTube
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