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महिला क्रिकेट टीम का कम वेतन अपने कौशल को विकसित करने के लिए वो सुविधाएँ नहीं दिला पता क्यूंकि उनको मिलने वाली राशि बहुत कम होती है।
जब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने (BCCI) ने महिला और पुरुष क्रिकेट खिलाड़ियों की मुख्य अनुबंध सूची जारी की थी पर क्या किसी ने इस बात की ओर ध्यान दिया कि महिला क्रिकेट टीम की कप्तान और पुरुष क्रिकेट टीम के कप्तान और बाकी खिलाड़ियों को जो राशि मिलती है उसमें ज़मीन आसमान का अंतर है?
संसद ने 1976 में समान परिश्रमिक अधिनियम संवैधानिक प्रावधानों को अमल में लाने के लिए बनाया और इस अधिनियम की धारा चार के मुताबिक समान काम या एक जैसे तरीके के काम करने वाले किसी भी कर्मचारी को किसी भी संस्था या नौकरी में लिंग के आधार कम वेतन नहीं दिया जा सकता l इसी कानून की धारा 5 कहती है कि कोई भी मालिक समान कामों में कर्मचारियों की भर्ती करते समय महिलाओं के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकता।
पुरुषों और महिलाओं की कमाई के बीच का अंतर हमेशा से एक चिंतनीय विषय रहा है। पुरुष क्रिकेटर की तुलना में महिला क्रिकेटरों के वेतन को जब देखते हैं तो ये अंतर चौकाने वाला है। इस मुद्दे पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम
भारतीय महिला क्रिकेट टीम
भारतीय पुरुष टीम के कप्तान विराट कोहली , रोहित शर्मा और को वार्षिक 7 करोड़ रुपये मिलेंगे, जबकि महिला क्रिकेट टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर और एस. मंधाना, पूनम यादव को 50 लाख रुपये मिलेंगे। पूरे देश में इस असमान वेतन को लेकर हंगामा तो रहा पर बाद में सब शांत हो गया।
परन्तु जब पूरे देश में महिला और पुरुष के समान वेतन पर बहस छिड़ी तब स्मृति मंधाना ( भारत की सलामी बल्लेबाज, 2020) ने बहुत ही खुले ढंग से इस मुद्दे पर अपनी असहमति दी थी।
उनके अनुसार :
“हमें यह समझने की जरूरत है कि हमें जो राजस्व मिलता है वह पुरुष क्रिकेट के माध्यम से होता है। जिस दिन महिला क्रिकेट राजस्व अर्जित करना शुरू करेगी, मैं यह कहने वाली पहली व्यक्ति बनूँगी कि हमें उसी चीज की जरूरत है। लेकिन अभी हम ऐसा नहीं कह सकते। अभी एकमात्र फोकस भारत के लिए मैच जीतना, दर्शकों को आकर्षित करना और राजस्व अर्जित करना है और इसके लिए हमें प्रदर्शन करने की जरूरत है। यह कहना हमारी ओर से अनुचित है कि हमें पुरुषों के समान ही भुगतान करने की आवश्यकता है।”
यह तो स्मृति मंधाना का निजी मत है पर भारत में महिला क्रिकेटर्स अपनेआपको पुरुष समकक्षों की तुलना में नुकसान में पाती हैं क्योंकि उन्हें अपने कौशल को विकसित करने के लिए वो सुविधाएँ नहीं मिलती और उनको मिलने वाली राशि बहुत कम होती है।
स्त्री पुरुषों के समकक्ष काम करती हैं, लेकिन उनका वेतन हमेशा कम ही होता है। भारतीय कानून के मुताबिक प्रत्येक महिला को समान वेतन का अधिकार है। समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, यदि बात वेतन या मजदूरी की हो तो किसी के साथ भी लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
महिलाओं का उत्पीड़न रोकने और उन्हें उनका अधिकार दिलाने के लिए बड़ी संख्या में कानून पारित हुए हैं पर क्या कानूनों का सच में पालन होता है? यदि ऐसा होता तो भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव और अत्याचार अब तक खत्म हो चुका होता पर पुरुष प्रधान मानसिकता के चलते यह अभी तक संभव नहीं हो सका है।
मेरा तो प्रिय पाठकों से यही कहना है कि भेदभाव को छोटे स्तर से ही समाप्त करने की कोशिश की जाए।
मूल चित्र : BCCI.TV
I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...
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